फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार Om Thanvi जी और वरिष्ठ पत्रकार Ambrish Kumar जी ने कभी इशारों में और कभी नाम लेकर कुछ लिखा है. मैंने दोनों की पोस्ट पढ़ी है और पढ़कर अच्छा नहीं लगा. बहुत बुरा लगा.
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जनसत्ता के 26 साल : अब दफ्तर से घर को निकल रहा- ओम थानवी
जनसत्ता के संपादक एवं लेखक ओम थानवी न संस्थान में लंबी पारी खेलते हुए अपने कार्यकाल के आखिरी दिन अपने फेसबुक वाल पर लिखा – ”अब दफ्तर से घर को निकल रहा हूं। बरसों के पिटारे में से अपने निजी कागजात और असबाब लेकर। मेरी खुशनसीबी थी कि जनसत्ता में 26 साल (दस साल चंडीगढ़, सोलह बरस दिल्ली) काम किया। एक ही अखबार में इतनी लंबी संपादकी पता नहीं कितनों को नसीब हुई होगी। जनसत्ता में अगर कहीं कुछ सार्थक कर पाया तो अपने सहयोगियों, लेखकों, स्तंभकारों, व्यंग्यचित्रकार और चित्रकारों की बदौलत। जो नहीं कर सका, उसका जिम्मेदार मैं हूं। इतना ही है कि काश कुछ साधन और मिल पाते। पर, ‘जो नहीं है उसका गम क्या’!
अफवाहें उड़ाने वालो, देख लेंगे, तुम्हारे दुष्प्रचार में ताकत है या हमारे सच में : ओम थानवी
कुछ समय पहले बदमाशों ने, न सुहाने वाले एक आलोचक – जो टीवी पर भी बेबाक रहते हैं – के बारे में अफवाह उड़ाई कि उनकी पत्नी भाग गई हैं। अफवाह ऐसी कि कोई उनसे पुष्टि भी करना चाहे तो कैसे करे लेकिन कल मेरे बारे में उन लोगों ने थोड़ी रियायत बरती, सो मित्रों ने मुझे फोन कर बता भी दिया। उन कुछ के श्रीमुख से देशद्रोही, गद्दार, विदेशी एजेंट आदि जुमले तो रोज सुनते हैं; सो इसमें भी हैरानी नहीं हुई कि अब वे शराबी-कबाबी-व्यभिचारी कहें; कौन जाने कल बलात्कारी-हत्यारा या तस्कर भी कहने लगें। ऐसे गलीज तत्त्वों से कोई गिला नहीं।
फेसबुक पर फर्जी प्रोफाइल, कई बेतुके और फूहड़ मित्र
दरियादिली जागी और अनब्लॉक करने लगा, तब पूछा गया कि ब्लॉक करते ही क्यों हैं। इसका एक जवाब तो यह कि गरिमाहीनता या फूहड़ता को किसी सीमा तक ही बरदाश्त किया जा सकता है। दूसरे, मित्रों की तादाद फेसबुक ने खुद पांच हजार पर लॉक कर रखी है। तो ईमानदार संवाद के ख्वाहिशमंद मित्रों को क्यों न जोड़ा जाय।
ऐसे आरोपों के दौर में मीडिया की न बचाव-मुद्रा अच्छी, न हमलवार : ओम थानवी
नेताओं की गाली पड़ते ही मीडिया गोलबंद अर्थात एक हो जाता है। मनमोहन सिंह ने मीडिया पर कपट का आरोप लगाया था, मोदी ने बाजारू कहा, केजरीवाल ने सुपारीदार, वीके सिंह और अन्य अनेक नेता भी भद्दी उपमाएं इस्तेमाल कर चुके हैं। भद्दे प्रयोगों का निश्चय ही प्रतिकार होना चाहिए।
इतना भी हवा-हवाई मत करो भाई, मोदीजी पर नजर हम भी रखते हैं : ओम थानवी
एक पत्रकार ने ट्वीट किया कि मोदी फ्रांस में हैडफोन के बिना फ्रेंच कैसे सुन रहे थे? बाद में साफ हुआ कि मोदी के पास एक कान वाला इयरपीस था जो दूसरी तरफ से ओझल था। फिर एक पत्रकारा ने लिखा कि मोदी लुई वीतों का शॉल ओढ़े हुए थे, हाथकरघे का शॉल पेरिस में ज्यादा फबता। हालांकि मोदी महंगे पहनावे के लिए जाने जाते हैं, पर जो नहीं था वह नहीं था। लुई वीतों ने इनकार करते कहा कि वे तो ऐसे शॉल बनाते ही नहीं। ऐसे ही उस शॉल पर मोदी के नाम वाला ‘एनएम-एनएम’ लिखा ट्वीट भी मैंने देखा जिसकी पुष्टि नहीं होती; बहुत संभव है कि वह भी फोटोशॉप का खेला हो।
‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी को ‘मुअनजोदड़ो’ पर ‘बिहारी पुरस्कार’
नयी दिल्ली : ‘जनसत्ता’ के संपादक एवं लेखक ओम थानवी को वर्ष 2014 का 24वां बिहारी पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। के.के. बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक सुरेश ऋतुपर्ण ने थानवी को उनकी यात्रा वृत्तांतपरक चर्चित पुस्तक ‘मुअनजोदड़ो’ के लिए यह पुरस्कार देने की घोषणा की है। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2011 में हुआ था। थानवी को पुरस्कार के रूप में 1 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिह्न प्रदान किया जाएगा। इससे पूर्व उन्हें शमशेर सम्मान, सार्क सम्मान, केंद्रीय हिंदी संस्थान सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। वह निरंतर लेखनरत रहते हुए वर्तमान में साहित्य, समाज, राजनीति, शिक्षा, पत्रकारिता आदि विषयों पर त्वरित टिप्पणियों के लिए हिंदी क्षेत्र में सुप्रसिद्ध हैं।
मीडिया कौन सा दूध का धुला है, बाजारू या बिकाऊ कहने पर आपत्ति जताना ठीक नहीं : ओम थानवी
वीके सिंह कहते हैं, देश का दस फीसद मीडिया ‘बाजारू’ है। लगता है वे लिहाज करने लगे वरना, मेरा खयाल है, यह प्रतिशत कहीं ज्यादा ही होगा।
हमने प्रभाष जोशी का असहाय चेहरा देखा है
हम जिन्हें प्रभाष जोशी से बेहतर संपादक मानते हैं, वे क्यों अरविंद केजरीवाल का पक्ष लेंगे, इसके लिए मामूली सबएटीटर होकर भी हमने ओम थानवी के खिलाफ सवाल उठाये थे तो आज मेरा सवाल जनपक्षधर सारे लोगों से है कि जनपक्षधरता आपपक्ष क्यों बनती जा रही है।