~सिद्धार्थ ताबिश
नए नए लोग जब ओशो को पढ़ना शुरू करते हैं तो कुछ दिन बाद वो हर किसी को “खुल कर जीना” सिखाने लगते हैं.. हर किसी को समझाने लगते हैं कि जीवन का रस जिस भी ऊँचाई तक जाके ले सकते हो ले लो.. फिर वो चाहे बात आपकी कामवासना की हो या दैनिक जीवन की.. ये लोग आपको हर “एक्सट्रीम” तक जाने के लिए प्रोत्साहित करने लगते हैं.
ये कहते हैं कि अगर शराब पी रहे हो तो ख़ूब पियो.. इतना पियो कि पी पी कर उस से मोह भाग हो जाए.. सेक्स करना है तो इतना करो.. इतना करो कि कर कर के मोह भंग हो जाए और तुम आध्यात्म के रास्ते पर आगे बढ़ जाओ.. इन्होने ओशो को ऐसे समझा होता है और वही सबको समझाते हैं
अब अगर आप इस नज़र से देखेंगे तो जो लोग रोज़ शराब पी कर नाली में पड़े होते हैं उनका अब तक मोह भंग हो जाना चाहिए था और उन्हें आध्यात्म के रास्ते पर बढ़ जाना चाहिए था.. जो औरतें या मर्द वेश्यावृति करते हैं तो उस हिसाब से उनका अब तक मोह भंग हो जाना चाहिए था और उनकी कुण्डलिनी जागृत हो जानी चाहिए थी.. मगर ऐसा कुछ होता है? आसपास कितने शराबियों को आध्यात्मिक बनते देखा है आपने? पीकर नाली में पड़े रहने वालों को अस्पताल के सिवा आपने आश्रम में देखा है क्या?
अगर आप ये कहें कि कामवासना में डूबकर और उसे भोगकर ही सिद्धार्थ बुद्ध बने थे तो बुद्ध की तरह हजारों लाखों राजाओं और बादशाहों ने कामक्रीड़ा और यौवन का आनंद लिया.. रंगमहल में बरसों पड़े रहे.. तो क्या उन में से कुछ एक भी बुद्ध जैसे बन सके?
तो क्या ओशो की बातों को ऐसे समझने वालों के हिसाब से अगर कोई हिंसक होता है और लोगों का खून करने लगता है तो उसे खून पर खून करते जाना चाहिए जब तक उसे मर्डर से विरक्ति न उत्पन्न हो जाए? या जिसे जानवरों के शिकार का शौक है उसे सारे जानवर मारकर पूरा जंगल साफ़ कर देना चाहिए और ये तब तक करना चाहिए जब तक विरक्ति न हो जाए शिकार से?
ओशो क्या इसी चरम तक पहुँचने की बात करते हैं?
ओशो ने अपने ही एक प्रवचन में बुद्ध के जीवन कि एक घटना सुनाई है. एक शाम बुद्ध प्रवचन दे रहे थे.. सारे शिष्य बैठे हुवे सुन रहे थे.. वहीँ पास से गुज़रता एक चोर और एक वेश्या भी आ कर बैठ गयी.. और दोनों भी प्रवचन सुनने लगे.. जब प्रवचन समाप्त हुवा तो रोज़ की तरह बुद्ध ने कहा कि “चलो, हम सब अब संध्या कार्य के लिए चलें”.. ये बात बुद्ध ने अपने शिष्यों से कही.. क्यूंकि उनका रोज़ का संध्या कार्य था “ध्यान” इसलिए वो सब ध्यान करने चले गए.. चोर भी उठा और उसने मन में सोचा कि तथागत ने मुझ से ये कहा है कि मैं अपने संध्या कार्य यानि “चोरी” के लिए जा सकता हूँ.. ऐसे ही वेश्या ने “संध्या कार्य” से अपना “अर्थ” निकाला और वो वेश्यावृति के लिए चली गयी.. इन दोनों को ये लगा कि बुद्ध ने उन्हें उनके कार्य करने की अनुमति दे दी है.. इसलिए बिना ग्लानि के वो काम अब कर सकते हैं.
ऐसे ही ओशो समेत अनेक महात्माओं के प्रवचन का हाल होता है.. बात किसी के कही जाती है.. उसे समझता कोई और है और वो आगे दूसरे लोगों को समझाता है.. प्रवचन से पहले ओशो के पास उनके शिष्यों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों की लिस्ट पहुंचा दी जाती थी.. ओशो उन्हीं प्रश्नों के जवाब देते थे.. जिनको वो जवाब देते थे, उनमें से ज़्यादातर को वो जानते थे.. उनके तमाम प्रवचनों में नब्बे प्रतिशत से अधिक सिर्फ़ लोगों के सवालों के जवाब हैं और उन्हीं प्रवचनों को लोग सबसे ज्यादा एक दूसरे से शेयर करते हैं और उसी में अपने जीवन की समस्याओं के समाधान ढूंढते हैं
अब सोचिये आप कि ओशो के पास कोई परम हनुमान भक्त ब्रहमचारी व्यक्ति जाता है और वहीँ आश्रम में रहता है.. फिर कुछ दिनों बाद ओशो उसको संबोधित करते हुवे “काम” पर पूछे गए उसके सवालों का कोई जवाब देते हैं.. तो आप सोचिये कि चालीस साल से ब्रहमचर्य साधे हुवे व्यक्ति को वो क्या सलाह देंगे? वो पहले तो उसको उसके ब्रहमचर्य के “अहंकार” से मुक्त करवाएंगे.. उसे दिल खोलकर “काम क्रीड़ा” में सम्मिलित होने के लिए उत्साहित करेंगे.. उसे ऐसा समझायेंगे कि जैसे बिना “काम” को जाने उसका कुछ भी नहीं होगा.. वो उस से सिर्फ़ और सिर्फ़ “काम” की चर्चा करेंगे और काम को “महिमामंडित” करेंगे.. ये ज़रूरी है उस “ब्रहमचारी” के लिए.. मगर इसी सवाल के जवाब को बाक़ी लाखों शिष्य भी सुनते हैं.. इसका ऑडियो और विडियो भी बनता है और इसकी किताब भी छप जाती है
अब इसी प्रवचन को सुनने के बाद एक ओशो शिष्य आदरणीय “श्री विजय माल्या जी” के पास जाता है.. और उनसे “काम” पर चर्चा करता है.. वो ओशो का वही प्रवचन उनके सामने दोहराता है और उन्हें और ज़्यादा कैलेंडर गर्ल को जॉब देने के लिए प्रोत्साहित करता है.. उनको समझाता है कि वो अगर इसी तरह और ज़्यादा से ज़्यादा “कामक्रीड़ा” में डूबे रहे तो आने वाले समय में उनको विरक्ति हो जायेगी और वो बुद्ध बन जायेंगे.. और इस बात का असर ये होता है कि श्री विजय माल्या जी दो पानी के याच और ख़रीद लेते हैं.. पचास और कुँवारी लड़कियों को काम पर रख लेते हैं और याच में बने स्विमिंग पूल में पानी कि जगह किंगफ़िशर बियर भर के उसी में गोते लगाने लगते हैं.. उनकी कामक्रीड़ा को ओशो के शिष्य ने “वैध” बना दिया उनके लिए
तो देखा आपने कि ओशो ने बात किस से कही, वो पहुंची कहाँ, और उसका असर क्या हुवा.. ऐसे ही सबकी बातें, चाहे बुद्ध हो या कोई और, ऐसे ही पहुँचती हैं लोगों तक
अगली पोस्ट में मैं ओशो के “होश” या साक्षीभाव की बात करूँगा.. क्यूंकि ज़्यादातर लोगों ने जवाब में उसी का ज़िक्र किया है
~सिद्धार्थ ताबिश
RAVINDER KUMAR
April 29, 2022 at 9:23 am
भाई साहब शायद आपने ओशो को सही से पढ़ा नहीं या फिर सुन भी ना पाए। ओशो ने कई बार इस बात को दोहराया है कि शराब कमजोर आदमी पीता है। शराब वह पीता है जो केवल क्षणिक सुख चाहता है। असली सुख पाने वाला ध्यान करता है। परमपिता परमेश्वर को याद करता है। इसी तरह से काम को लेकर भी ओशो ने यही कहा कि काम वासना मन को विचलित करती है। लेकिन काम पर अगर अधिकार पाना है तो ध्यान से ही वो हासिल होगा। बाकी आपकी अपनी राय यह हो सकती है। अगर ठीक से समझेगे तो बेहतर लिख पाएंगे।