साथ मिलेगा…भरपूर मिलेगा पंकज श्रीवास्तव उर्फ ‘पंकज परवेज’। आप बस जाकर मुट्ठी ताने रहिए मुट्ठीगंज में….सॉरी कर्नलगंज में। सुना है आप सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) में होल टाइमर थे। कब थे ये तो नहीं पता लेकिन “लाल फरेरे तेरी कसम, इस जुल्म का बदला हम लेंगे”…। लेकिन परवेज भाई अभी तो कुछ ही महीनों पहले आपने फेसबुक पर अपना नाम बदल लिया था, पंकज श्रीवास्तव से ‘श्रीवास्तव’ हटाकर ‘परवेज’ रख लिया था। आज देख रहा हूं कि बर्खास्तगी विलाप में आप ‘परवेज’ नाम को हटाकर दोबारा ‘वास्तव में श्री’ हो गए हैं। खैर मजाक छोड़िए अब तो हम आपको परवेज भाई ही कहेंगे।
लेकिन परवेज भाई हम आपकी कातर पुकार सुनकर मदद को दौड़े उससे पहले कुछ सवाल हैं जिनका जवाब अगर आप दे सकें तो कुछ गलतफहमियां दूर हो जाएं। पहला सवाल तो ये कि आपके ही वामपंथी छात्र संगठन के लिए अपना भविष्य चौपट कर देने वाले लोग लगातार आईबीएन-7 और तमाम दूसरे चैनलों में प्रताड़ना और छंटनी के शिकार हुए तब आपने क्या उनका साथ दिया ? आप ही के समकालीन और ‘आईसा’ में अपनी ऐसी-तैसी कराने वाले अधेड़ होते नौजवानों ने नौकरी पाने के लिए आपसे मदद की गुजारिश की, लेकिन आपने मदद तो दूर उनका फोन भी उठाना गंवारा नहीं समझा। माना कि नौकरी के लिए सिफारिश करना आपके सैद्धांतिक तेवर के खिलाफ था, तो क्या आपने अपने संस्थान में रिक्रूटमेंट के लिए परमस्वार्थी, आत्मकेंद्रित, कौवारोरकला निपुण चूतरचालाक आशुतोष जी के साथ मिलकर कोई पारदर्शी सिस्टम बनाया ? क्या आपने खुद पैरवी के जरिए अमर उजाला, स्टार न्यूज और आईबीएन-7 में जगह नहीं हथियाई ? कहिए तो नाम बता दूं…लेकिन जाने दीजिए आपके चक्कर में उन भले लोगों की इज्जत का कीमा क्यों बनाया जाय।
पंकज भाई न जाने कितने लोग आए दिन मक्कारों की मंडी मीडिया में नौकरी से निकाले जाते हैं। कई लोग तो सच में सीपीआई-एमएल में होलटाइमर रह चुके हैं लेकिन वो लोग इस कदर बर्खास्तगी विलाप तो नहीं करते। मैंने देखा है उन लोगों को भूखे रहकर दिन गुजारते लेकिन क्या मजाल कि दीनता उनके पास फटक भी जाए। क्या मजाल कि मजबूरी उन्हें किसी के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर सके। आपको नहीं पता लेकिन आपसे बहुत काबिल कई कॉमरेड अनुवाद और घोस्ट राइटिंग जैसे दोयम दर्जे के काम करते हुए इसी दिल्ली में गुजर-बसर कर रहे हैं। वही लोग जिनका बौद्धिक पंगु पालीवाल, अकर्मण्य-अहंकारी आशुतोष और पेंदी रहित पंकज परवेज ने अनुराग जैसे अंधभक्तों को शिखंडी बनाकर बध कर डाला। लेकिन वो लोग तो नहीं गए प्रेस क्लब के दरवाजे पर पेट्रोल की शीशी लेकर ‘आत्मदाद’ लेने।
शर्म कीजिए पंकज भाई सात-आठ सालों में ठीक-ठाक मालमत्ता बना लिया हैं, काहे नौटंकी कर पब्लिक के सामने खुद को नंगा कर रहे हैं। होलटाइमर रहे हैं और अब कोई आर्थिक संकट भी नहीं है, तो क्यों नहीं किसी कायदे के काम में लग जाते। आप कह रहे हैं कि मित्रों की प्रतिक्रिया देखकर हौसला बढ़ा है। कमाल करते हैं अपने चैनल के चेहरे पर ‘हौसला’ चिपकाकर उसका हौसला तो पस्त कर दिया और अब चले हैं खुद का हौसला बढ़ाने।
लेखक के. गोपाल से संपर्क anujjoshi1969@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
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Comments on “पेंदी रहित पंकज परवेज उर्फ पंकज श्रीवास्तव के विलाप के पीछे की कुछ कहानियां”
ndtv में नौकरी मिल जाएगी पंकज परवेज को,वहां ऐसे भरे पड़े है।
ये क्यों नहीं लिखते यशवंत कि पंकज श्रीवास्तव तुम्हारे साथ अमर उजाला में काम करता था, तुम्हारा हम प्याला हम निवाला था। खटक गई तो ऐसे भड़ास निकाल रहे हो, प्यारे। यही है तुम्हारा मीडिया जेहाद……….।