बेतूल जिला सत्र न्यायालय ने मजीठिया मामले में पत्रिका के पदाधिकारियों आरआर गोयल और अरुण चौहान के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। दरअसल श्रम निरीक्षक ने पत्रिका से मजीठिया देने को लेकर जानकारी मांगी थी। पत्रिका ने जांच में भी सहयोग नहीं किया, जिसके बाद श्रम निरीक्षक ने जिला कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में जांच में सहयोग न करने का केस लगाया। इस पर कोर्ट ने पत्रिका अखबार के मध्य प्रदेश के दो बड़े पदाधिकारियों आरआर गोयल और अरुण चौहान के खिलाफ वारंट जारी कर दिया है। उधर, पत्रिका से ही मिली एक अन्य जानकारी के मुताबिक पत्रिका के एक कर्मचारी ने तबादला किए जाने के खिलाफ पत्रिका प्रबंधन पर केस कर दिया है।
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मजीठिया वेतन मान नहीं देने के आरोप में कर्मचारी भी कंपनी के जिम्मेदार अधिकारियों के नाम सीधे केस कर सकते हैं। जिसमें क्रिमिनल मानहानि, आर्थिक क्षति पहुंचाने, मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का मामला शामिल है। और यह सब सैलरी स्लीप और सीए की रिपोर्ट से स्वतः सिद्ध हो जाता है।
पत्रिका भोपाल मैं संपादक और डिप्टी न्यूज़ एडिटर की तानाशाही
पत्रिका भोपाल मैं कई महीनो से अराजकता का माहौल है, संपादक आलोक मिश्र और डिप्टी न्यूज़ एडिटर आलोक पांडेय की तानाशाही से रिपोर्टर परेशांन हैं सार्वजनिक रूप से रिपोर्टर्स को बेज्जत करना इनकी रोज की आदत हो गई है, बेचारे रिपोर्टर चुपचाप प्रताड़ना सहने को मजबूर हैं मॅनॅग्मेंट सुनने को तैयार नहीं है पहले रीजनल डेस्क इंचार्ज को संपादक ने गली गलौज कर बहार किआ अब सिटी डेस्क इंचार्ज अरविन्द खरे को डिजिटल मैं बैठा दिया वजह सिर्फ इतनी सी थी की खरे ने सिर्फ इतना कह दिया था की मीटिंग के अलावा समय कहाँ मिलता है. पत्रिका मैं इन दिनों मिश्रा और पांडेय की जुगल जोड़ी ने हालात ख़राब कर रह्खे हैं. कहीं कोई सुनवाई नहीं है. रिपोर्टर्स को दिन मैं तीन बार प्लान देना पड़ता हैं. रात को जाते समय टीम लीडर को अगले दिन का एडवांस प्लान. सुबह आकर फिर प्लान और शाम को फिर. बात यहीं आकर ख़तम नहीं होती इसके बाद शुरू होता है मीटिंग का खेल. सुबह १०.३० बजे का समय रिपोर्टर्स के आने का है, पर संपादक और डिप्टी न्यूज़ एडिटर रिपोर्टर्स को दोपहर तक बैठकर रखते हैं. एक और दो बजे के बाद ही रिपोर्टर्स जा सकते हैं. यदि किसी ने कह दिया की न्यूज़ पर जाना है तो उसकी आफत. शाम को ५ बजे वापस भी आना है. ८ बजे तक न्यूज़ देना है. इसके बाद फिर शुरू होता है रिपोर्ट्स की सार्वजनिक बेज्जती करने का खेल. पांडेय ने एक दो रिपोर्टर्स को साथ कर रखा है बाकि सभी की बेज्जती तो तय है. ख़बरें भी उन्ही की लगाई जाती हैं जो खास हैं. बाकि की ख़बरें पेंडिंग. पूछना भी गुनाह ही की क्यों नही लगी.
ख़बरों की आड़ मैं कमाई की जा रहे है. नगर निगम मैं तो मुहीम ही इसलिए चलाई जाती हैं की बाद मैं सेटिंग के बाद बंद कर दे
कई रिपोर्टर्स ने संसथान छोड़ने का मन बना लिया है कई तो पत्रकारिता छोड़ने के मूड मैं हैं. सम्मानीय कुलिश जी के अथक प्रयासों से खड़ा हुआ पत्रिका आज बदजुबान और चापलूसों की बदौलत यहाँ तक पहुच गया है.
रिपोर्ट्स ने कई बार उच्च पदाधिकारियों को इसकी सूचना दी है पर इसके बाद पताड़ना और भी बाद गई है. नौकरी से बहार करने की धमकी दी जाती है.