संजय कुमार सिंह
इस साल अक्तूबर में ऐप्पल के आईफोन का उपयोग करने वालों को ऐप्पल की तरफ से मिले संदेश, उससे संबंधित खबर और उसके बाद जो सब हुआ उससे लग तो रहा था कि ऐप्पल दबाव में है लेकिन ‘मेक इन इंडिया’ के निमंत्रण के बाद भारत सरकार यह सब करेगी इसकी संभावना कम लग रही थी। वाशिंगटन पोस्ट की खबर से साफ है कि सरकार ने ही सब किया और सरकार कैसे काम करती है। इसमें यह भी साफ है कि सरकार किसी को भी बदनाम कर सकती है। इसके लिए मंत्री झूठ बोल सकते हैं। पार्टी की राजनीति का खुलासा करने वाले तथ्य और सबूत को केंद्रीय मंत्री प्रैंक कह सकते हैं। खबर के अनुसार सोशल मीडिया पर, सरकार समर्थक प्रभावशाली लोगों ने मामले को और गंदा कर दिया। (यह दूसरी किस्त है)
मोदी सरकार के आईटी सेल और उसकी ट्रोल सेना के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है और अभी इतना ही याद दिलाना काफी होगा कि पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने इसपर एक किताब लिखी थी, ‘आई एम अ ट्रोल’। इसमें उन लोगों की सूची भी है जो सोशल मीडिया पर लोगों को परेशान और जलील करते हैं तथा प्रधानमंत्री उन्हें फॉलो करते हैं और ऐसे कुछ लोगों ने अपनी प्रोफाइल पर भी लिख रखा है, गौरवान्वित हूं कि प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं। ऐसे लोगों को फॉलो करने के प्रधानमंत्री के अपने तर्क हैं और इसपर काफी चर्चा हो चुकी है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आर्थिक सलाहकारों में से एक, संजीव सान्याल ने एक्स पर बताया कि, ऐप्पल के हैकिंग अलर्ट में, कंपनी ने लक्ष्य किये गये अपने उपयोगकर्ताओं को एक्सेस नाउ से सलाह करने का सुझाव दिया है।
खबर के अनुसार यह एक डिजिटल अधिकार समूह है और सान्याल ने बताया कि इसे चर्चित, उदार फाइनेंसर और लोकोपकारी जॉर्ज सोरोस से धन प्राप्त हुआ है। सोरोस को भारतीय दक्षिणपंथियों द्वारा अक्सर एक ऐसे पैसे वाले के रूप में चित्रित किया जाता है जो भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिशों का मास्टरमाइंड है। भाजपा की सोशल मीडिया टीम के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर अपने 7,65,000 फॉलोअर्स से पूछा, “इसमें भयावह साजिश देख रहे हैं?” इसका मतलब था, ऐप्पल, एक्सेस नाउ, सोरोस और विपक्षी राजनेता सरकार पर हैकिंग का झूठा आरोप लगाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के उप मंत्री, राजीव चन्द्रशेखर ने 31 अक्टूबर को घोषणा की कि “इन खतरे की सूचनाओं और … ऐप्पल के सुरक्षित होने के दावों” की सरकारी जांच शुरू कर दी गई है। सरकार से सवालों का पुलिन्दा प्राप्त करने के बाद, भारत के बाहर से एक ऐप्पल सुरक्षा विशेषज्ञ नवंबर में यहां आये और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के दिल्ली कार्यालयों में अधिकारियों से मुलाकात की। यहां अधिकारियों ने फिर मांग की कि दी गई चेतावनियों के लिए वैकल्पिक स्पष्टीकरण दिया जाये। जाहिर है, इसके जरिये यह प्रचारित किया जाना था कि सरकार की ओर से हैकिंग की कोशिश का संदेश ऐप्पल की तकनीकी या किसी और गलती से गया था वह सत्य नहीं है। अखबार ने दावा किया है कि घटनाओं से परिचित तीन लोगों ने यह जानकारी दी।
दूसरी ओर, ऐप्पल ने अधिकारियों के सामने अपने काम का बचाव किया और कहा, “ऐप्पल जब सूचना भेजता है तो उसका मतलब है ‘आग’ और बेहतर होगा कि आप (ग्राहक) आश्वस्त रहें कि आग लगी है।“ कंपनी के लिये काम करने वाले एक व्यक्ति ने कहा। अधिकारियों के साथ इस संवेदनशील मामले में इनलोगों ने गुमनाम रहने की शर्त पर चर्चा की। वाशिंगटन पोस्ट ने सरकार से ऐप्पल पर दबाव डालने से संबंधित सवाल किया तो जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक बयान में कहा: “हमने रिपोर्ट किए गए मामले में तकनीकी जांच शुरू कर दी है। अब तक, ऐप्पल ने जांच प्रक्रिया में पूरा सहयोग किया है।
तकनालॉजी नीति से संबंधित एक भारतीय समाचार वेबसाइट, मीडियानामा के संस्थापक निखिल पाहवा ने कहा कि मोदी सरकार ने एक जानी-पहचानी रणनीति अपनाई है। वह अपनी जांच खुद करती है। वैसे भी, आप भारत सरकार से खुद उसकी जांच नहीं करवा सकते हैं। लेकिन भारत सरकार के मामले में हम अक्सर जो देखते हैं उसे मैं ‘पतंग-उड़ाना’ कहूंगा। यह स्थिति को शांत करने या किसी और दिशा में मोड़ने के लिए किया जाता है और इसके तहत कोई संदेश दे दिया जाता बै या कुछ प्रचारित कर दिया जाता है।”
एप्पल के लिए दुविधा
सिलिकॉन वैली की कंपनियों पर पहले भी भारत सरकार के दबावों को नजरअंदाज करने की मजबूरी रही है। वाशिंगटन पोस्ट ने इस साल पाया कि फेसबुक और एक्स दोनों ने अपने प्लेटफार्म पर गुप्त भारतीय सैन्य प्रचार और हिंसा के आह्वान को उजागर किया, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें हटाने में संकोच किया। दोनों मामलों में, कंपनियों के भारतीय कार्यालयों के अधिकारियों ने अमेरिकी मुख्यालय में सहकर्मियों को सरकार के साथ टकराव और उनके व्यवसाय को खतरे में डालने के जोखिमों के बारे में चेतावनी दी। लेकिन उद्योग विश्लेषकों और ऐप्पल के साथ काम करने वाले लोगों के अनुसार, इस शरद ऋतु में ऐप्पल और मोदी प्रशासन के बीच टकराव दोनों पक्षों के लिए बेहद नाजुक था और गतिरोध में समाप्त हुआ।
अपनी ओर से, ऐप्पल भारत को राजस्व बढ़ाने वाले देश के रूप में देख रहा है क्योंकि अन्य बाजारों में बिक्री कम हो गई है। वेडबुश सिक्योरिटीज के विश्लेषक डैनियल इवेस के अनुसार, भारत 2025 में ऐप्पल की बिक्री का 10 प्रतिशत लेने की राह पर है, जो इस समय 4 प्रतिशत है। “चीन के बाहर भारत एप्पल की रणनीति का दिल-दिमाग दोनों होगा।” दूसरी ओर, मोदी प्रशासन इस समय एक हाई-प्रोफाइल डिवाइस (फोन) निर्माता को नाराज नहीं करना चाहता है। इसे वह देश में रोजगार के मौके पैदा करने के लिए अपने “मेक इन इंडिया” अभियान के भाग के रूप में देख रहा है। इसे राहुल गांधी के मेड इन मध्य प्रदेश वाले बयान और उसके जवाब में मूर्खों के सरदार की झुंझलाहट से जोड़ कर देखिये तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी और वैकल्पिक बयान तो आये ही थे। बाकी जो सब बताया गया है, हुआ ही था। ऐप्पल के साथ काम करने वाले लोगों ने कहा कि हैकिंग चेतावनियों पर सरकार की जवाबी कार्रवाई को इन तथ्यों से जोड़ कर देखा जाना चाहिये। संभव है इसी कारण ऐप्पल को इतने पर छोड़ या गया हो।
दूसरी ओर यह भी सही है कि ऐप्पल इंडिया के अधिकारियों ने शुरू में मोदी सरकार के अधिकारियों को चेतावनियों के संबं में शंका लिए ज्या चारा प्रदान किया हो लेकिन ऐप्पल आखिरकार सिलिकॉन वैली की अन्य कंपनियों की तुलना में कम झुका। घटनाओं से परिचित लोगों के अनुसार, ऐप्पल ने नवंबर में भारत के साथ शिखर सम्मेलन के बाद कोई नया बयान जारी नहीं किया यानी दबाव में नहीं आया।
वाशिंगटन में कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के एक फेलो स्टीवन फेल्डस्टीन ने कहा, “एप्पल बहुत ही नाजुक लाइन पर चल रहा है। उसे डिजिटल अधिकारों और गोपनीयता की रक्षा के अपने मुख्य ब्रांड के लिए खड़े होने की जरूरत है, लेकिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण बाजार में वह अपनी स्थिति को खतरे में नहीं डालना चाहता है।” यह बात सही लगती है और ऐप्पल के सामान्य कर्मचारियों का भी कहना है कि कंपनी ऐसे समय में जब अपराध और निगरानी बढ़ रही है, अपने उपकरणों को यथासंभव सुरक्षित बनाने की अपनी प्रतिबद्धता से समझौता नहीं कर सकती है। पिछले साल, ऐप्पल ने लॉकडाउन मोड पेश किया था। यह एक विकल्प है जिसका उपयोग पेगासस या इसी तरह के स्पाइवेयर को प्लांट करने की इलेक्ट्रॉनिक संभानाओं की संख्या को काफी कम कर देता है। लॉकडाउन में काम कर रहे फोन पर कोई संक्रमण नहीं पाया गया है।
पूर्व कर्मचारियों और कंपनी के साथ काम करने वाले लोगों का कहना है कि ऐप्पल कई आंतरिक सिग्नल से यह निर्रित करता है किसी खास हैकिंग प्रयास के पीछे कोई देश है। इसलिये गलत या झूठे अलार्म की आशंका कम है। ऐप्पल ने हाल के वर्षों में अपनी सुरक्षा और खतरा-अनुसंधान टीमों का विस्तार किया है, मानवाधिकार पृष्ठभूमि वाले प्रौद्योगिकीविदों के साथ-साथ खुफिया एजेंसी के दिग्गजों को भी काम पर रखा है और यह खुद एक छोटी खुफिया एजेंसी की तरह पूछताछ करती है। यदि इसे किसी असामान्य चीज़ का पता लगता है, तो यह उसी गतिविधि को कहीं और खोजता है और फिर अधिक हैकिंग तकनीकों और पीड़ितों को खोजने के लिए सुरागों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ता है। हैकिंग के कई प्रयासों में, नियमों से अलग कुछ घटित होता है। ऐप्पल के एक पूर्व कर्मचारी ने कहा, यह उतना ही स्पष्ट हो सकता है किसी रेस्तरां में आने वाला कोई य्ति पहले तो तीन डेजर्ट का ऑर्डर दे और अगली एंट्री में छह ऐपेटाइज़र का।
संभवतः इसीलिए, ऐप्पल ने अपने बुनियादी ढांचे को कथित तौर पर हैक करने के लिए एनएसओ पर मुकदमा दायर किया और फॉरबिडन स्टोरीज़ कंसोर्टियम द्वारा दुनिया भर में दुर्व्यवहारों को उजागर करने के बाद नवंबर 2021 में राज्य प्रायोजित हमलों की चेतावनी देना शुरू कर दिया। (एंड्रॉइड फोन पर हमले भी आम हैं, लेकिन उनके विभिन्न निर्माता हैं।) वाणिज्य विभाग ने उसी महीने एनएसओ को ब्लैकलिस्ट कर दिया, जिससे उसे अमेरिकी कंपनियों के साथ सौदों से रोक दिया गया।
अलर्ट ने हैकिंग गतिविधि को उजागर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, खासकर जब सूचित किए गए लोग बाद में अपने फोन की जांच कराते हैं। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि खोजों से हैकिंग के तरीकों का पता चला है जिन्हें बाद में ब्लॉक किया जा सकता है। इससे सबसे शक्तिशाली हैकिंग टूल बेचने वालों के लिए यह और महंगा हो जाएगा।
सिटीजन लैब के एक शोधकर्ता जॉन स्कॉट-रेलटन ने कहा, “एप्पल की चेतावनियों ने स्पाइवेयर के दुरुपयोग का पता लगाने के खेल को मौलिक रूप से बदल दिया है। उनकी चेतावनियाँ शक्ति संतुलन को बदल देती हैं।” विवाद और इस कारण इसपर ज्यादा ध्यान दिये जाने से मामला व्हाइट हाउस तक पहुंच गया है, जिसने इस साल सहयोगी सरकारों के साथ उन कंपनियों से खरीदारी नहीं करने का प्रण किया था जिनके उपकरणों का दुरुपयोग सत्तावादी शासन द्वारा किया जा रहा था। भारत इस प्रतिज्ञा में शामिल होने वाली सरकारों में नहीं है।
इस साल, भारत सरकार द्वारा खतरा माने जाने वालों को हैक करने के अन्य संकेत मिले हैं। हाल के हफ्तों में, आईवेरीफाई ने न्यूयॉर्क स्थित सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नून के फोन की जांच की। इनके बारे में अमेरिकी अभियोजकों का कहना है कि उन्हें एक भारतीय अधिकारी ने हत्या के लिए निशाना बनाया था। मुख्य कार्यकारी डैनी रोजर्स ने कहा कि आईवेरीफाई इंजीनियरों ने पाया कि उसके एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स गंभीर रूप से क्रैश हो गए थे, जो हैकिंग के प्रयासों से शुरू हो सकते थे। जुलाई में दो दिनों के दौरान एक एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप की गतिविधि का जिक्र करते हुए, रोजर्स ने कहा: “एक पंक्ति में आठ सिग्नल क्रैश चीखते हैं कि कोई आपको हैक करने की कोशिश कर रहा है।”
रोजर्स ने कहा कि वो क्रैश हैकिंग के प्रयास का सबूत नहीं थे, लेकिन परेशान करने वाले थे क्योंकि अन्य सबूत थे कि पन्नून को निशाना बनाया गया था। पन्नून ने द पोस्ट को बताया कि मई में, वे कनाडा में रहने वाले सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर के अकाउंट से टेलीग्राम पर चैट कर रहे थे। जब बातचीत बंद हो गई और पन्नून ने निज्जर को फोन किया, तो निज्जर ने कहा कि उसने कुछ समय से टेलीग्राम का उपयोग नहीं किया है। कुछ हफ्ते बाद, 18 जून को, निज्जर को एक पार्किंग स्थल में नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोली मार दी – कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सितंबर में घोषणा की थी कि यह हत्या “विश्वसनीय रूप से” भारत सरकार से जुड़ी हुई थी।
पन्नुन ने द पोस्ट को बताया कि उनका खुद का फोन पहले भी दो बार हैक हो चुका है। अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत द्वारा स्पाइवेयर के कथित उपयोग पर सीधे तौर पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकार “वाणिज्यिक स्पाइवेयर के प्रसार और दुरुपयोग के बारे में बहुत चिंतित है, जिसका उपयोग दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों को नष्ट करने और मानवाधिकारों के हनन को सक्षम करने के लिए किया जा रहा है। हम दुनिया भर के सहयोगियों के साथ साझेदारी में इस तकनीक के दुरुपयोग और इससे होने वाले खतरों का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और हम समान विचारधारा वाले अन्य भागीदारों का अपने साथ जुड़ने के लिए स्वागत करते हैं।
पत्रकार अभी भी निशाने पर हैं
आधिकारिक तौर पर, ऐप्पल की भारतीय जांच जारी है, लेकिन मामले की जानकारी देने वाले लोगों ने कहा कि कंपनी पर दबाव कम हो गया है। अगला कदम भारत के साइबर सुरक्षा कार्यालय की एक रिपोर्ट है, लेकिन इसकी कोई समय सीमा नहीं है। भारतीय मीडिया ने बताया है कि भारतीय अधिकारी अब मानते हैं कि ऐप्पल की राज्य प्रायोजित हैकिंग की चेतावनियाँ वास्तविक थीं, लेकिन अपराधी बीजिंग हो सकता है। वैसे तो चीन भारत का महान क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी और एक विलक्षण हैकर है लेकिन उसे कभी भी सार्वजनिक रूप से पेगासस के किसी भी उपयोग से नहीं जोड़ा गया है। इजरायली रक्षा मंत्रालय को स्पाइवेयर की सभी बिक्री की पुष्टि करनी चाहिये।
अब जब ऐप्पल और नई दिल्ली के बीच तनाव कम हो गया है, हैकिंग के प्रयासों का सामना करने वाले पत्रकारों को दबाव बना हुआ है और वे इसे महसूस कर रहे हैं। नवंबर और दिसंबर में, ओसीसीआरपी के साथ काम कर चुके एक तीसरे भारतीय पत्रकार को एक हैकर से फ़िशिंग ईमेल प्राप्त हुए, जिसने खुद को व्हिसलब्लोअर के रूप में पेश किया और कॉर्पोरेट दस्तावेज़ों को लीक करने की कोशिश की। ओसीसीआरपी की सुरक्षा टीम के अनुसार, ईमेल में मैलवेयर था, जो प्रेषक की पहचान करने में सक्षम नहीं है। इस तरह, वाशिंगटन पोस्ट की खबर तो जो है सो है ही, ऐप्पल का अपना काम भी अद्वितीय है और इस कारण भी वह भारत सरकार से भिड़ंत में टिक पाया और निश्चित रूप से उसे आगे मंजूरी मिलेगी। दूसरी ओर इससे भारत में पत्रकारों को अपने काम और खबरों की गुणवत्ता पर भी विचार करने की जरूरत है।
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