मीडिया में जब फॉलो अप नहीं होते तो स्वयंभू देशभक्त सरकार का यह कारनामा शर्मिन्दा करता है
संजय कुमार सिंह-
आपको याद होगा, इस साल अक्तूबर में एक खबर आई थी, महंगे आईफोन बनाने वाली कंपनी ऐप्पल ने अपने उपयोगकर्ताओं को फोन हैकिंग से अलर्ट करने वाली सूचना दी थी। अब खबर है कि इस अलर्ट के बाद भारत सरकार ने ऐप्पल को निशाना बनाया है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार सार्वजनिक तौर पर सवाल किया कि ऐप्पल की अपनी व्यवस्था तो दोषी नहीं है और ऐप्पल के उपकरणों (फोन) की सुरक्षा के मामले में जांच की घोषणा की। इतने भर से सवाल उठता है कि यह संयोग है या सामान्य व्यवहार? पर जवाब देने पाने, सुनने या उसका इंतजार करने का रिवाज अब कहां रह गया है।
इसलिए आपको बताता चलूं कि वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर के अनुसार मोदी प्रशासन के अधिकारियों ने ऐप्पल इंडिया के प्रतिनिधियों से संपर्क कर मांग की कि कंपनी अपनी चेतावनी के राजनीतिक प्रभाव को कम करने में मदद करे। यही नहीं, विदेश से ऐप्पल के सुरक्षा विशेषज्ञों को तलब किया गया और उनपर दबाव डाला गया कि वे उपयोगकर्ताओं को दी गई चेतावनी का वैकल्पिक स्पष्टीकरण दें। संवेदनशील मामलों पर बातचीत नाम न बताने की शर्त पर की गई। खबर के अनुसार, जानकारों में से एक ने कहा, वे वास्तव में नाराज थे।
दूसरी ओर, खबर यह भी है कि ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) ने भारतीय प्रतिभूति कानून के कथित उल्लंघन में अदाणी के भाई के शामिल होने पर अदाणी से प्रतिक्रिया लेने के लिए मेल किया उसके 24 घंटे के अंदर ओसीसीआरपी के पत्रकार आनंद मंगनाले के फोन में पेगासस प्लांट हो गया। खबर के अनुसार 23 अगस्त को ओसीसीआरपी ने अदाणी को ईमेल करके अपनी रिपोर्ट के लिए टिप्पणी मांगी और इसके 24 घंटे के अंदर उनक फोन में पेगासस प्लांट हो गया था।
यही नहीं, अदाणी मामले में मंगनाले और नायर की रिपोर्ट अगस्त में प्रकाशित होने के बाद अदाणी और मोदी के गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद की पुलिस ने एक स्थानीय निवेशक की शिकायत का जवाब देने के लिए दोनों को समन भेजा था। उसने इन पर अदाणी के बारे में “बेहद झूठी और दुर्भावनापूर्ण” रिपोर्ट जारी करने का आरोप लगाया था। अहमदाबाद पुलिस ने प्रारंभिक जांच के भाग के रूप में फाइनेंशियल टाइम्स के दो ब्रिटिश पत्रकारों को भी तलब किया है। इनलोगों ने ओसीसीआरपी की जांच में सहयोग किया था।
ओसीसीआरपी ने कहा कि उसने मंगनाले और नायर को संभावित गिरफ्तारी से बचाने के लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट में सफलतापूर्वक अपील की है, लेकिन दोनों पत्रकार अभी भी पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए अदालत में लड़ रहे हैं। एक दिसंबर को अपनी पहली सुनवाई में, ओसीसीआरपी पत्रकारों को पता चला कि उनके मामले में एक बेहद शक्तिशाली वकील स्थानीय पुलिस की ओर से विशेष तौर पर बहस कर रहा था। वह और कोई नहीं, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता थे। यह तथ्य भी वाशिंगटन पोस्ट की खबर का हिस्सा है।
खबर के अनुसार पेगासस प्लांट करने का पता एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा किये गये एक विश्लेषण से चला। खबर के मुताबिक, अक्तूबर के अंत में ऐप्पल की चेतावनी 20 से ज्यादा लोगों को मिली थी और इनमें से कई सरकार या उनके पुराने सहयोगी गौतम अदाणी के आलोचक रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल की नेता, दक्षिण भारत के कम्युनिस्ट नेता और देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के प्रवक्ता शामिल हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि ये नाम सब लोग जानते हैं और जब चेतावनी की खबर आई थी तो खूब चर्चा हुई थी। जिन पत्रकारों को चेतावनी मिली थी उनमें दो खास हैं – आनंद मंगनाले और रवि नायर।
खबर के अनुसार ऐमनेस्टी को नायर के फोन में पेगासस की घुसपैठ की कोशिश के संकेत नहीं मिले। हालांकि, परिष्कृत हमले के बाद ऐसा होना या संकेत नहीं मिलना असाधारण नहीं है। अखबार ने लिखा है कि अदाणी की एक प्रवक्ता ने हैकिंग के किसी प्रयास में उनके शामिल होने का खंडन किया और ओसीसीआरपी पर बदनाम करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया। यही नहीं, अखबार ने यह भी लिखा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के शिखर के अधिकारी हिरेन जोशी ने टिप्पणी देने से मना कर दिया। दूसरी ओर, ऐप्पल ने लिखित सवालों का जवाब लेने से मना कर दिया।
वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, हम जानते हैं कि पेगासस सिर्फ सरकारों को बेचा जाता है और यह भी कि मंगनाले के फोन पर हमला अदाणी को मेल भेजने के कुछ घंटे बाद ही हुआ। मंगनाले ने कहा, मेरा इशारा किसी की ओर नहीं है पर यह संयोगों का गड़बड़झाला है। खबर के अनुसार बर्खास्त सासंद महुआ मोइत्रा का फोन भी हैक हुआ लगता है। अखबार की खबर के अनुसार भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि हैकिंग के किसी भी सबूत को जांच के लिए भारत सरकार को दिया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि हैकिंग या जासूस अपराध है, भारत में पेगासस का उपयोग अगर सरकार नहीं कर रही है तो पेगासस की बिक्री के घोषित या ज्ञात शर्तों के अनुसार यह काम कोई अपराधी समूह नहीं दूसरा देश करवा रहा हो सकता है।
ऐसे में शिकायत या सूचना की जांच कराना देश और जन हित में जरूरी है और सरकार का काम। यह तर्क मायने नहीं रखता है कि शिकायतकर्ता या पीड़ित ने अपना फोन जांच के लिए नहीं दिया। उसे देश हित में जब्त किया जाना चाहिये और जांच होनी ही चाहिये भले उसे दूसरा फोन उसके फोन में मौजूद डाटा के क्लोन के साथ दिया जाये। लेकिन इस आधार पर जांच नहीं कराना किसी देशविरोधी को अपराध की छूट देना है या फिर यह भी ईवीएम जैसा मामला है जो स्पष्ट किया जाना चाहिये पर किया नहीं जा रहा है।
वाशिंगटन पोस्ट की इस खबर के बाद तो लगता है कि यह जासूसी सरकार ही करवाती है। आप जानते हैं कि भारत सरकार ने ना तो पेगासस खरीदना स्वीकार किया है और ना ही इससे इनकार किया है। वाशिंगटन पोस्ट की इस खबर के अनुसार, ओसीसीआरपी के लिए काम करने वाले पत्रकारों ने सीमा शुल्क विभाग वालों के ऐसे दस्तावेजों का पता लगाया जिसके अनुसार भारत के खुफिया ब्यूरो ने ऐसे हार्डवेयर वाले शिपमेंट प्राप्त किये हैं जो पेगासस के विनिर्देशनों से मेल खाते हैं और तेल अवीव के पास एनएसओ के कार्यालय से हैं।
खबर के अनुसार और अलग ट्वीट से भी पता चलता है कि द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन को भी 30 अक्तूबर की ऐप्पल की चेतावनी मिली थी। ऐमनेस्टी ने पाया कि मंगनाले के फोन से छेड़छाड़ करने वालों ने ही वरदराजन के फोन के साथ ऐसी कोशिश की थी। खबर के अनुसार वरदराजन के फोन में पेगासस डालने की कोशिश 16 अक्तूबर को हुई थी। इस संबंध में अखबार ने एक ईमेल आईडी भी सार्वजनिक किया है और बताया है कि इसपर भेजे गये मेल से कोई जवाब नहीं आया। खबर के अनुसार वरदराजन के फोन में पेगासस डालने की कोशिश कामयाब नहीं हुई क्योंकि जिस तकनीक या तरीके का इस्तेमाल किया गया उसका पता सितंबर में चला था और ऐप्पल ने इस लिहाज से फोन को दुरुस्त कर दिया था।
वरदराजन के आईफोन का सॉफ्टवेयर अद्यतन किया हुआ था। वरदराजन उस समय कोई संवेदनशील खबर नहीं कर रहे थे लेकिन न्यूजक्लिक के संस्थापक की गिरफ्तारी के खिलाफ हो रहे विरोध का नेतृत्व कर रहे थे। आप जानते हैं कि न्यूजक्लिक मोदी और अदाणी के खिलाफ खबरें चलाता रहा है और इस कारण मुश्किल में है। खबर है कि उनके साथ गिरफ्तार उनके सहयोगी ने सरकारी गवाह बनने की अनुमति मांगी है। आपको याद होगा कि ऐप्पल के चेतावनी संदेश के बाद एक संदेश आया था जिसमें कहा गया था कि इस तरह के हमलों का पता लगाना खतरे से संबंधित खुफिया संकेतों पर निर्भर करता है औऱ ये संकेत अक्सर पूरी तरह सही नहीं होते है और अपूर्ण रहते हैं।
यह संदेश चौंकाने वाला और गैर जरूरी था। अब लगता है कि यह दबाव में दिया गया होगा। खबर के अनुसार डिजिटल अधिकारों के एक अमेरिकी प्रशंसक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे इसे कंपनी का गलत कदम मानते हैं। खबर के अनुसार कंपनी के भारतीय प्रतिनिधि भारी दबाव में थे लेकिन ऐप्पल के दूसरे लोगों ने उनके दृढ़ बने रहने पर जोर दिया। हालांकि उनने इसपर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद ऐप्पल इंडिया के कॉरर्पोरेट कम्युनिकेशन के अधिकारियों ने निजी तौर पर भारतीय प्रौद्योगिकी पत्रकारों से अपनी रपटों में इस बात पर जोर देने के लिए कहना शुरू किया कि ऐप्पल की चेतावनी गलत अलार्म हो सकती हैं।
सरकार की छवि सुधारने के लिए
यही नहीं, यह भी कहा गया कि भारत ही नहीं, 150 देशों में उपयोगकर्ताओं को इसी तरह की चेतावनियाँ जारी की गई थीं। ऐसा तीन भारतीय पत्रकारों ने कहा जो ऐप्पल के साथ अपने संबंध बनाए रखने के लिए गुमनाम रहना चाहते हैं। इन पत्रकारों ने कहा कि इस मार्गदर्शन ने प्रभावी रूप से ऐप्पल की अपनी सुरक्षा टीम पर संदेह पैदा कर दिया और मोदी सरकार संदेह के घेरे से बाहर हो गई। यही नहीं भाजपा के प्रचारकों और गोदी वालों के बीच एक मेमो बांटा गया जिसने इसी तरह की चर्चा को बढ़ावा दिया।
द पोस्ट ने ऐसा एक मेमो देखा है जिसमें कहा गया है कि “युगांडा के कई राजनीतिक नेताओं” सहित 150 देशों में ऐप्पल उपयोगकर्ताओं को हैकिंग से संबंधित ऐसे अलर्ट प्राप्त हुए थे और ऐप्पल के ऑपरेटिंग सिस्टम में सुरक्षा कमजोरियां थीं। यह मेमो जिस शाम जारी हुआ, सरकारी अधिकारियों ने गुमनाम रूप से भारतीय आउटलेट्स को बताया कि उन्हें संदेह है कि एप्पल के आंतरिक सिस्टम में किसी “एल्गोरिदमिक खराबी” के कारण हैकिंग से संबंधित नोटिस उत्पन्न भेजा गया था। यही नहीं, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा कि नोटिस प्रैंक “एक शरारत” हो सकते हैं।
(यह खबर का आधा हिस्सा है। अगले हिस्से में बताया गया है कि कैसे इसे भी चीनी हमले की न्यूजक्लिक जैसी कहानी बनाने की कोशिश की गई। इसमें सरकार को क्या दिक्कते हैं। इसमें गुरपतवंत सिंह पन्नून से लेकर फेसबुक और ट्वीटर की भी कहानी है। सब अगली किस्त में।)
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट.