साध्वी प्रज्ञा का बयान-
”मैं मुंबई जेल में थी. जांच आयोग के एक सदस्य ने करकरे से कहा कि यदि साध्वी के खिलाफ सबूत नहीं है तो हिरासत में रखना गलत है. लेकिन करकरे ने कहा कि मैं सबूत लाउंगा. कुछ भी करूंगा. इधर से लाउंगा-उधर से लाउंगा लेकिन साध्वी को नहीं छोड़ूंगा. यह उसकी कुटिलता, देशद्रोह और धर्मविरुद्ध था. वह मुझसे सवाल पूछता तो मैं कहती कि मुझे नहीं मालूम, भगवान जाने. उसने पूछा कि क्या सबूत लेने भगवान के पास जाना पड़ेगा? यातनाओं से परेशान होकर मैंने उससे कहा कि तेरा सर्वनाश होगा. जब जन्म या मृत्यु होती है तो सवा महीने सूतक लगता है. ठीक सवा महीने बाद करकरे को आतंकियों ने मार दिया. उस दिन सूतक का अंत हो गया.”
(दैनिक भास्कर से)
वैसे तो भारी बयान के बाद आए उनके खंडन का कोई खास मतलब नहीं है फिर भी वे चुनाव लड़ रही हैं, जीत गईं तो हमें-आपको प्रभावित करने वाले कानून बनाएंगी और उनका समर्थन करने वाली पार्टी को बहुमत मिला तो उनकी और उनकी तरह ही सोचने वाली सरकार बन जाएगी. इसलिए उन्होंने जो कहा है, उसे वोट लेने की कोशिश मानते हुए खंडन पर भी गौर करने की जरूरत है. उनका खंडन इस प्रकार है,
”वह (हेमंत करकरे) आतंकियों की गोली से मरे. वह निश्चित रूप से शहीद हैं. मैं उनका सम्मान करती हूं. बयान वापस लेती हूं. माफी मांगती हूं. यह मेरी निजी पीड़ा है. मैंने महसूस किया कि देश के दुश्मनों को मेरे बयान से फायदा हो रहा है. इसलिए मैं बयान वापस लेती हूं.”
(दैनिक भास्कर से)
भाजपा ने प्रज्ञा के बयान पर विवाद होने के बाद शुरू में एक बयान जारी किया जिसमें करकरे को श्रद्धांजलि दी गई पर प्रज्ञा की टिप्पणी को जायज ठहराने की कोशिश की गई.
”भाजपा का स्पष्ट नजरिया है कि दिवंगत हेमंत करकरे आतंकवादियों से लड़ते हुए वीरता पूर्वक शहीद हुए. भाजपा ने उन्हें हमेशा शहीद माना है. इस संबंध में साध्वी प्रज्ञा का बयान उनकी निजी राय है संभवतः वर्षों की शारीरिक और मानसिक यातना के कारण जिसका सामना उन्होंने किया है.”
(द टेलीग्राफ से मुमकिन है यह बयान मूल रूप से हिन्दी में हो हिन्दी से अंग्रेजी तथा फिर अंग्रेजी से हिन्दी करने में मामूली अंतर हो).
इसके साथ तथ्य यह है कि करकरे ने ही हिंदुत्ववादी आतंकियों के भारत और उसके बाहर फैले नेटवर्क को उजागर किया था. इस नेटवर्क में आरएसएस पदाधिकारी, सैन्य अधिकारी, डॉक्टर, कुछ भगवाधारी साधु इत्यादि शामिल थे. इनमें से एक भोंसले मिलिट्री स्कूल का अधिकारी भी था. ये स्कूल प्रमुख हिंदुत्ववादी नेता बीएस मुंजे ने शुरू किया था. द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ”करकरे की मौत से कुछ दिन पहले तक मोदी ने बार-बार उनके नेतृत्व वाले महाराष्ट्र एंटी टेरोरिस्ट स्क्वैड पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया था. इसी टीम ने मालेगांव ब्लास्ट के पीछे के आंतकी नेटवर्क का पता लगाया था और लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित तथा प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया था. उन्होंने गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित और देशहित के खिलाफ कहा था. अब 11 साल बाद मोदी ने उस संदिग्ध आतंकी को लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार बनाया है जिसे करकरे ने गिरफ्तार किया था, जिसने उन्हें मौत का श्राप दिया था.”
नरेन्द्र मोदी की यह राय सार्वजनिक होने के बाद क्या जांच अधिकारियों को यह संकेत नहीं मिल गया होगा कि सरकार इस मामले में क्या चाहती है और इसलिए उन्हें क्या करना चाहिए. उधर, हेमंत करकरे की मौत के कारणों का जिक्र मुंबई हमले में मारे गए एक और पुलिस अधिकारी अशोक कामते की पत्नी विनिता कामते की किताब में है. इसका वर्णन उन्होंने पुलिस के वायरलेस संदेशों के आधार पर किया है और ये संदेश उन्हें आरटीआई से मिले थे. इसका जिक्र वीर सांघवी ने अपने कॉलम काउंटर प्वाइंट में जुलाई 2010 में किया था और यह इंटरनेट पर उपलब्ध है. पुस्तक से यह स्थापित होता है कि मुंबई पुलिस ने जान-बूझकर हेमंत करकरे को दगा दिया था. उदाहरण के लिए करकरे ने कामा हॉस्पीटल में अतिरिक्त बल भेजने की मांग की जहां कसाब और उसके साथी इस्माइल सक्रिय थे.
मुंबई पुलिस का कंट्रोल रूम मुख्यालय पर है जो अस्पताल से दो मिनट की दूरी पर है लेकिन आधे घंटे तक कोई फोर्स नहीं भेजी गई. नतीजतन कसाब और इसमाइल बगैर किसी चुनौती के पैदल चलते हुए रंग भवन लेन की ओर बढ़े. दोनों को वहां देखा गया पर कंट्रोल रूम ने करकरे को इसकी सूचना नहीं दी. करकरे ने समझा कि कसाब और इस्माइल कामा हॉस्पीटल में पुलिस से जूझ रहे होंगे और अनजाने में ही उनकी गाड़ी रंग भवन लेन पहुंच गई. इसके बाद हुई गोलीबारी में करकरे, अशोक कामते और विजय सलासकर को मार डाला गया. कसाब और इस्माइल उन्हें सड़क पर छोड़कर उनकी गाड़ी लेकर निकल भागे.
कंट्रोल रूम को पता था कि मुख्यालय से कुछ दूरी पर पुलिस वाले सड़क पर पड़े हैं. लेकिन उन्हें चिकित्सा सहायता भेजने में 40 मिनट लगे. इस दौरान अशोक कामते की मौत हो गई. अब ऐसा लगता है कि करकरे को भी बचाया जा सकता था. इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला है बुलेट प्रूफ जैकेट होने के बावजूद उन्हें गोली कैसे लगी. किताब के अनुसार बुलेट प्रूफ जैकेट खराब था पर एक दूसरा बयान यह भी है कि उन्हें गर्दन पर ऐसी जगह गोली लगी जहां बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं होना था और यह भी कि ये गोली उस हथियार की नहीं थी जो कसाब के पास था. बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीद में भ्रष्टाचार का मामला अलग है.
हालांकि, हेडलाइन्स टुडे ने लिखा है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार उन्हें कंधे और सीने में गोली लगी. इसलिए करके की मौत का कारण बुलेट प्रूफ जैकेट खराब होना और साजिशन किसी अन्य का गोली मारना भी हो सकता है.
वीर सांघवी ने लिखा है, मैंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से पूछा कि क्या सरकार विनिता कामते की किताब में सामने आए तथ्यों की जांच कराएगी. इस पर उनका कहना था कि सरकार की जांच में तो मुंबई पुलिस की तारीफ की गई है. इससे ज्यादा की जरूरत नहीं है. श्रीमती कामते की पुस्तक के बारे में उन्होंने लिखा कहा था, एक दुखी महिला से सहानुभूति हो सकती है पर सरकार भावनाओं से निर्देशित नहीं हो सकती है.
श्राप से हेमंत करकरे की मौत के दावे और संदिग्ध मौत तथा उसकी जांच न होने जैसे तथ्य के साथ यह भी जानना जरूरी है कि साध्वी प्रज्ञा पर मालेगांव ब्लास्ट में क्या आरोप हैं और क्या सबूत हैं. बाद में क्या हुआ. दैनिक जागरण की एक खबर के अनुसार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपने पूरक आरोप पत्र (मई 2016) में कहा कि उसके पास साध्वी और अन्य पांच आरोपियों के धमाके में शामिल होने के सबूत नहीं हैं. इससे पिछले साढ़े सात साल से जेल में बंद साध्वी के बाहर निकलने का रास्ता साफ हो गया है.
वहीं कर्नल पुरोहित समेत नौ अन्य आरोपियों के खिलाफ एजेंसी ने पुख्ता सबूत होने का दावा किया है. वैसे इन आरोपियों के खिलाफ भी अब महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण क़ानून (मकोका) के तहत केस नहीं चलेगा. एनआईए ने मुंबई एटीएस पर साजिश के तहत मकोका लगाने का आरोप लगाया है.
29 सितंबर 2008 की रात 9.35 बजे महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके में सात लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए थे. इसकी जांच एटीएस मुंबई को सौंपी गई थी. एटीएस ने शुरू में 16 लोगों को गिरफ्तार किया था, लेकिन 2009 और 2011 में केवल 14 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मकोका हटाने के लिए कई अर्जियां लगाई. 2011 में केस की जांच एनआईए को सौंपी गई. एनआईए के उस समय के महानिदेशक शरद कुमार ने कहा था कि चार्जशीट गहन जांच और ठोस सबूतों पर आधारित है और केस को कहीं से कमजोर नहीं होने दिया गया है.
जब तक उनकी जांच पूरी नहीं हो गई थी, एजेंसी ने साध्वी व अन्य आरोपियों की जमानत याचिका जमकर विरोध किया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस धमाके में एक मोटरसाइकिल इस्तेमाल की गई थी. यह प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी. महाराष्ट्र एटीएस ने हेमंत करकरे के नेतृत्व में इसकी जांच की और इस नतीजे पर पहुँची कि उस मोटरसाइकिल के तार गुजरात के सूरत और अंत में प्रज्ञा ठाकुर से जुड़े थे. एटीएस चार्जशीट के मुताबिक प्रज्ञा ठाकुर के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा सबूत मोटरसाइकिल उनके नाम पर होना था. इसके बाद प्रज्ञा को गिरफ़्तार किया गया. उन पर (मकोका) लगाया गया.
चार्जशीट के मुताबिक जांचकर्ताओं को मेजर रमेश उपाध्याय और लेफ़्टिनेंट कर्नल पुरोहित के बीच एक बातचीत पकड़ में आई जिसमें मालेगांव धमाके मामले में प्रज्ञा ठाकुर के किरदार का ज़िक्र था. मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने की थी, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी. एनआईए की चार्जशीट में उनका नाम भी डाला गया. मालेगांव ब्लास्ट की जांच में सबसे पहले 2009 और 2011 में महाराष्ट्र एटीएस ने स्पेशल मकोका कोर्ट में दाखिल अपनी चार्जशीट में 14 अभियुक्तों के नाम दर्ज किये थे.
एनआईए ने जब मई 2016 में अपनी अंतिम रिपोर्ट दी तो उसमें 10 अभियुक्तों के नाम थे. इस चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह को दोषमुक्त बताया गया. साध्वी प्रज्ञा पर लगा मकोका हटा लिया गया और कहा गया कि प्रज्ञा ठाकुर पर करकरे की जांच असंगत थी. पूरा मामला बहुत ही गंभीर है. यह सब लिखते हुए और भी बहुत सारी चीजें मिलीं जिससे आरएसएस, शिवसेना और भाजपा की भूमिका संदिग्ध लगती है और इसे समझने की जिज्ञासा होती है. इस संबंध में ढूंढ़ते हुए मुझे यू ट्यूब पर एक वीडियो मिला. यह मशहूर पत्रकार निरंजन टाकले का भाषण है इसमें वे मालेगांव ब्लास्ट और आरएसएस के आंतकवाद की कहानी और उपलब्ध सबूतों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। पूरा मामला समझना चाहें तो इसे देखिए। लिंक यह रहा-
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट.
sanjeev
April 21, 2019 at 4:45 pm
कांग्रेस के कहने पर हमेंत कर करे ने ऐसा किया था।