Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

प्रशांत दुबे को नेशनल रीच मीडिया अवार्ड

पत्रकारिता के क्षेत्र में टीबी (तपेदिक) पर उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रशांत दुबे को वर्ष 2019 के प्रतिष्ठित नेशनल रीच मीडिया अवार्ड के लिए चुना गया है| श्री दुबे को यह अवार्ड “टीबी में स्टिग्मा की महत्वपूर्ण भूमिका” पर विशेष लेखन के लिए दिया जा रहा है| राष्ट्रीय स्तर के इस अवार्ड के लिए देश भर के पत्रकारों के बीच से स्थानीय भाषा श्रेणी में, भोपाल के प्रशांत कुमार दुबे, जो डाउन टू अर्थ (हिंदी) में प्रकाशित उनकी स्टोरी टीबी से जुड़े कलंक के लिए सम्मानित किये गये, वहीं केरल स्थित रिचर्ड जोसेफ, राष्ट्रीय दीपिका में टीबी के संभावित उन्मूलन पर उनकी कहानी के लिए पुरुस्कृत किये गए। वर्ष 2010 से लगातार हर वर्ष दिए जाने वाला यह प्रमुख अवार्ड श्री दुबे को वर्ष 2016 में भी दिया जा चुका है|

श्री दुबे को यह अवार्ड हैदराबाद में आयोजित एक भव्य समारोह में यूएसएआईडी मिशन के निदेशक कीथ सिमंस, काउंसल जनरल हैदराबाद ज्योल, स्टाप टीबी पार्टनरशिप की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डाक्टर लुसिका के अलावा रीच की कार्यकारी निदेशक डाक्टर राम्या अनंतकृष्णन ने प्रदान किया|

इस मौके पर अंग्रेजी भाषा की श्रेणी में, इंडियास्पेंड में केरल की टीबी प्रतिक्रिया पर दिल्ली की स्वतंत्र पत्रकार मेनका राव को पुरुस्कार दिया गया, साथ ही साथ नई दवाओं के रोलआउट पर उनकी कहानी के लिए द हिंदू बिजनेसलाइन की मैत्री पोरचा को भी सम्मानित किया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस वर्ष, भारत भर से 400 से अधिक प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। सभी प्रविष्टियों का मूल्यांकन एक प्रतिष्ठित जूरी द्वारा किया गया, जिसमें सुश्री सुतापा देब, टीवी पत्रकारिता पुरुस्कार विजेता; सुश्री ब्लेसिना कुमार, सीईओ, टीबी कार्यकर्ताओं के वैश्विक गठबंधन; सुश्री प्रभा महेश, टीबी एडवोकेट और सलाहकार बोर्ड सदस्य; श्री सुब्रत मोहंती, टीबी और फेफड़ों के रोग के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय संघ; सुश्री शोभा शुक्ला, कार्यकारी निदेशक और प्रबंध संपादक, नागरिक समाचार सेवा; और डॉ. सुंदरी म्हसे शामिल थे।

REACH की कार्यकारी निदेशक, डॉ. राम्या अनंतकृष्णन ने इस मौके पर टिप्पणी करते हुए कहा, “भारत में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि लोग टीबी, इसके लक्षणों के बारे में जान पाएं, देखभाल करें और इसे एक साध्य रोग की तरह लें। प्रशिक्षित पत्रकारों द्वारा उच्च-गुणवत्ता की रिपोर्टिंग इस सूचना के अंतर को पाट सकती है, टीबी से जुड़े कलंक को दूर कर सकती है और पीड़ितों के जीवन को बचा सकती है ”।

Advertisement. Scroll to continue reading.

श्री दुबे ने इस मौके पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हम पत्रकारों को यह ध्यान में रखना होगा कि हम अन्धविश्वास और स्टिग्मा को समझ कर स्टोरी करें| उन्होंने कहा कि अभी भी टीबी को गरीबो की बीमारी कहा जाता है जबकि यह बीमारी तो सोच की है| स्टिग्मा को रेखांकित करना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि यह एक व्यक्ति के सम्मानपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है|

https://www.youtube.com/watch?v=55NezS4H4_4
Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement