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सुख-दुख

…. क्योंकि उसका प्रेस, सरकार, पैसा, ज़मीन, कारख़ाने और कोर्ट पर क़ब्ज़ा

देखो भई तुम उसे फाँसी देना चाहते थे, ३० को ही सुबह सुबह देना चाहते थे तुमने दे दी । जो रोकना चाहते थे वे हार गये तुम जीत गये ।

देखो भई तुम उसे फाँसी देना चाहते थे, ३० को ही सुबह सुबह देना चाहते थे तुमने दे दी । जो रोकना चाहते थे वे हार गये तुम जीत गये ।

कांग्रेस वाले भी एक कश्मीरी को ऐसे ही फाँसी पर लटकाने में “जीत” चुके हैं । दोनों पार्टियों ने “देशभक्ति” साबित की और दोनों ने देश के कुछ सिरफिरों, बेवक़ूफ़ों , देशद्रोहियों की बात नहीं सुनी । कोर्ट ने भी नहीं सुनी, राष्ट्रपति जी ने भी नहीं सुनी । देश बच गया ! ऊपर वाले का लाख लाख शुक्र , वरना …….मुझे नहीं मालूम क्या हो जाता ?

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अब ! 

क्या सीमा पर सीजफायर नहीं टूटेगा ? हमारे संतरी स्निपर के शिकार नहीं होंगे ? घुसपैठ बन्द हो जायेगी ? पाकिस्तानी और ISIS के झंडे कश्मीर में नहीं फहरेंगे ? फिर गुरुदासपुर /बंबई नहीं होगा ? या इनमें से एकाध भी कम हो जायेगा ?

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या अनपढ़ अधपढ़ हिन्दू नौजवान FB/Twitter पर अपनी जीत की ग़लतफ़हमी में और भड़काऊ पोस्ट्स डालेगा ? हिन्दुओं एक हो पे और तेज़ी से जुटेगा ? प्रशान्त भूषण / रवीश जैसों को निबट लेने/ निबटा देने के आह्वान तेज़ करेगा ?

मुस्लिम धर्मांन्ध नौजवान और बेचैन नहीं होगा?हिन्दुओं और हिन्दुस्तान से और नफ़रत नहीं पालेगा ?अपने आप और अपने मज़हब के दायरे में घेरा और तंग नहीं कर लेगा ? अपने ही देश से और बेगाना नहीं हो जायेगा ?

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समाज का एक हिस्सा/वर्ग अभी जश्न के मूड में है । वह समझता है कि उसकी कुटिलता कुटिलता न होकर उसकी योग्यता है । उसका प्रेस, सरकार, पैसा, ज़मीन, कारख़ाने और कोर्ट पर क़ब्ज़ा है । वह दलितों के नरसंहार के मामलों से बरी हो जाता है । आदिवासियों की हिंसक बेदख़ली पर भी कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता । सांप्रदायिक दंगों में रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी वह आज़ाद है ।

वह जीतता जा रहा है और जीत उसकी आदत बन चुकी है , उसे भ्रम नहीं यक़ीन है कि वह कभी हार नहीं सकता । वह जीत के लिये ही बना है । उसे अपने डी एन ए पर पक्का भरोसा है !

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आप क्या समझते हैं ? उसकी जीत शाश्वत है ?

वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह के एफबी वाल से

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0 Comments

  1. Sanjeev

    July 31, 2015 at 10:31 pm

    मेले में पूरी भीड़ घुमती रहती है 5 लोग चिल्लाना शुरू करते हैं उलटी सीधी हरकते करते हैं , बेमतलब आते जाते लोगो को परेशान करते हैं ,इसका मतलब ये नहीं की मेले में घूम रहे लोग उन्हें चुप नहीं करा सकते लेकिन सारे खामोश रहना पसंद करते हैं | वही बात उनलोगों पर भी लागु होती है जो सोशल मीडिया पर देशभक्त होने का गुमान पाल लेते हैं अब देशभक्त ये यु तो हो नहीं जायेंगे इसके लिए इन्हें देशद्रोही की तलाश रहती है , और जो चुप है उस भीड़ की तरह वो न तो देशभक्त हो सकता है न देशद्रोही तो चिनिहित उसे किया जाता है जो उन चुप लोगो में थोडा मुखर होने की कोशिश करता है फिर वो पांच मिलकर उसपर भौकना शुरू करते हैं | इसका मतलब ये नहीं है की पूरा देश ऐसा सोचता है बल्कि इनकी संख्या बहुत कम है और इन चुप लोगो की तादात हजार गुना है मगर ये चुप हैं | ये कुछ नाकाबिल किस्म के लोग हैं जीने अपने नाकाबिलियत छुपाने के लिए देशभक्ति का चोला ओढना पड़ता है | हाथ में बधी सर पर लाल टिका , दिमाग में धर्म का गोबर और कंधे पर इंसानियत की लाश |

  2. राजेश भारती

    August 1, 2015 at 6:18 am

    पहली बात आँख के बदले आँख का तरीका पूरी दुनिया नकार चुकी है….अब इसे बदलना चाहिए…..दूसरों के डीएनए पर सवाल वही उठाता है जिसे अपने डीएनए की असलियत पता हो,…जीत हमेशा शाश्वत रहेगी….इस बारे में बचपन से सुनते आये हैं….अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा….सबकी मृत्यु निशिचित है.

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