Connect with us

Hi, what are you looking for?

मध्य प्रदेश

PRESS से हो, तो क्या नियम-कानून तोड़ने का हक़ मिल गया तुम्हें?

Dinesh Dard : पलासिया से इंडस्ट्री हाऊस की ओर वाले पैदल पथ (फुटपाथ) पर यूँ तो अक्सर दुपहिया-चार पहिया वाहनों का दौड़ना चलता रहता है, जो नियम के ख़िलाफ़ है। मगर मान लो फुटपाथ खाली हो और आपका कहीं पहुँचना बहुत ही ज़रूरी हो, तो मजबूरी में उस पर से गुज़रना समझ में आता है। लेकिन उसमें भी एक अपराध बोध ज़रूर होना चाहिए कि उन्होंने पैदल यात्रियों का अधिकार छीना। मगर इनमें अपराध बोध तो दूर, इन्हें तो ये एहसास तक नहीं होता कि ये ग़लत कर रहे हैं।

<p>Dinesh Dard : पलासिया से इंडस्ट्री हाऊस की ओर वाले पैदल पथ (फुटपाथ) पर यूँ तो अक्सर दुपहिया-चार पहिया वाहनों का दौड़ना चलता रहता है, जो नियम के ख़िलाफ़ है। मगर मान लो फुटपाथ खाली हो और आपका कहीं पहुँचना बहुत ही ज़रूरी हो, तो मजबूरी में उस पर से गुज़रना समझ में आता है। लेकिन उसमें भी एक अपराध बोध ज़रूर होना चाहिए कि उन्होंने पैदल यात्रियों का अधिकार छीना। मगर इनमें अपराध बोध तो दूर, इन्हें तो ये एहसास तक नहीं होता कि ये ग़लत कर रहे हैं।</p>

Dinesh Dard : पलासिया से इंडस्ट्री हाऊस की ओर वाले पैदल पथ (फुटपाथ) पर यूँ तो अक्सर दुपहिया-चार पहिया वाहनों का दौड़ना चलता रहता है, जो नियम के ख़िलाफ़ है। मगर मान लो फुटपाथ खाली हो और आपका कहीं पहुँचना बहुत ही ज़रूरी हो, तो मजबूरी में उस पर से गुज़रना समझ में आता है। लेकिन उसमें भी एक अपराध बोध ज़रूर होना चाहिए कि उन्होंने पैदल यात्रियों का अधिकार छीना। मगर इनमें अपराध बोध तो दूर, इन्हें तो ये एहसास तक नहीं होता कि ये ग़लत कर रहे हैं।

पैदलपथ से दनदनाते हुए निकल जाना तो जैसे ये अपना अधिकार समझते हैं। उस पर बेशर्मी की हद ये, कि अगर कोई पैदल यात्री पैदलपथ पर चल रहा है, तो पीछे से हॉर्न बजा-बजाकर रास्ता देने को कहेंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दुःख की बात तो ये है कि इन बेशर्मों में सबसे अव्वल तो वही युवा वर्ग है, जिनके दम पर हम फिर से विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे हैं। अरे लानत है ऐसे बद्तमीज़ और पढ़े-लिखे अनपढ़ युवाओं पर, जो नियम-अनुशासन का पालन करना अपनी जवानी की तौहीन समझते हैं। यार विश्वगुरु के पथ पर बाद में क़दम बढ़ाना, पहले अपने शहर की सड़कों पर तो चलना सीख लो।

युवाओं के अलावा मैंने कई बार उन बेशर्मों की कारों को भी फुटपाथ से गुज़रते देखा है, जिनके काँच पर “+” (डॉक्टर) का निशान लगा होता है। एक बार मैंने रास्ता नहीं दिया, तो भीतर से ही दयनीय चेहरा बनाकर इशारा करने लगे कि, जैसे- “बस, यहीं तक जाना है।” आख़िर मुझे रास्ता देना ही पड़ा। और वो डॉक्टर अपने परिवार के साथ नियम-कानून का पोस्टमार्टम करता हुआ निकल गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी तरह नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों में शिक्षक वर्ग के तथाकथित अनपढ़ शिक्षक भी आते हों, तो कह नहीं सकता। क्योंकि इनके वाहनों पर तो डॉक्टर-वकील जैसा कोई निशान होता नहीं है, जो मैं पहचान जाऊँ।

ख़ैर, अब वो क़िस्सा बताता हूँ जिसकी वजह से आज मुझे इतना तल्ख़ लहजा अख्तियार करना पड़ा। दरअस्ल, आज फिर मेरा उसी फुटपाथ से गुज़रना हुआ। दोपहिया वाहन तो सड़क छोड़ मेरे अगल-बगल से गुज़र गए। मगर इस बार मेरे पीछे कार थी, जो हॉर्न दे-देकर चलना हराम किए दे रही थी। मैंने पलटकर देखा, तो ड्राईवर के बगल वाली सीट पर एक सांवली-सी मोटी औरत/लड़की बैठी थी। शायद वही पत्रकार हो। उसकी साइड वाली ही स्क्रीन पर लाल हर्फ़ों में लिक्खा था PRESS. अरे भई, PRESS वाले हो, तो क्या तुम्हें कानून-कायदा तोड़ने का लाइसेंस मिल गया ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

कार पर PRESS लिक्खा देखना था कि मेरा पारा चढ़ गया। आख़िर, मैं भी पत्रकारिता से जो तआल्लुक़ रखता हूँ। प्रेस का नुमाइंदा और इतना ग़ैरज़िम्मेदार। बस, यही सोचकर गुस्सा आ गया। मैंने सख़्त ऐतिराज़ जताते हुए उसकी ओर रुख़ किया। कार (MP09…..9767 पूरा नम्बर याद नहीं रहा) की खिड़की का शीश चढ़ा हुआ था। मैंने इशारे में ही उसको बताया कि “अक्कल के अंधे, सड़क के रास्ते जा ना। फुटपाथ पर क्या अंधे की तरह भटक रहा है।” बहरहाल, भैंस के आगे बीन बजाने से क्या लाभ ? और यह सब ये लोग आगे इंडस्ट्री हाउस तिराहे पर “रेड सिग्नल” होने की वजह से करते हैं। ज़रा देर सिग्नल के ग्रीन होने का इंतेज़ार नहीं कर सकते।

ख़ैर, अब दिक्कत ये है कि पत्रकार जैसे ज़िम्मेदार लोग ही अगर ऐसी ग़ैरज़िम्मेदाराना हरकत करेंगे, तो बाकी लोगों से उम्मीद ही क्या की जा सकती है ? मुझे तो लगता है कि ज़रूर ये कोई प्रेसनोटिया छाप और प्रेस कॉन्फ्रेंस में गिफ़्ट के लिए लार टपकाने टाइप की पत्रकार रही/रहा होगी/होगा। चाहे जो भी हो, करते तो ये पत्रकार वर्ग की नुमाइंदगी ही है ना। समाज को आईना दिखाने वाला यही वर्ग अगर ऐसी गुस्ताख़ियाँ करेगा, तो ग़लत करने वाले दूसरे लोगों को किस मुँह से सच्चाई का पाठ पढ़ा सकेगा ? और मान लो, अगर तुम अव्वल दर्ज़े के बेशरम हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ख़ुद ग़लत होकर दूसरों को अनुशासित रहने का और सच्चाई का उपदेश (ज्ञान) दे रहे हो, तो अपनी आवाज़ में ईमानदारी वाला वज़न कहाँ से लाओगे ? वो वज़न तो तुमको तुम्हारी ईमानदारी और ज़मीर की ताक़त से ही मिलेगा, किसी ब्यूरोचीफ़ या संपादक की चरणवंदना करने से नहीं।

(बेजा लफ़्ज़ों के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ।)

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंदौर के युवा पत्रकार और गीतकार दिनेश दर्द के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
3 Comments

3 Comments

  1. Bossmedias

    January 18, 2016 at 5:03 am

    शानदार लेख ये लोग प्रेस,अधिवक्ता,डॉक्टर, पुलिस, भारत सरकार लिखकर न जाने क्या जताना चाहते है असल में जिनके वाहनों पर ये लिखा होता है वो अव्वल दर्जे के बदमाश होते है जो अपने आपको तो दिखाते तो बड़ा है जबकि न इनका कोई नाम होता है न कोई काम इन्हें दल्ला कहे तो कोई अतिसयुक्ति न होगी ।

  2. gulrez

    January 18, 2016 at 5:29 am

    Quite true. No one has right to break or avoid traffic rules.

    • मनीष कुमार

      April 21, 2019 at 2:27 pm

      आखिर प्रेस पर कानुनी सिकंजा कसेगा कैसे कुछ बताएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement