कृष्ण कांत-
राहुल गांधी आजाद भारत में पहले नेता हैं जिनकी छवि बर्बाद करने के लिए अरबों रुपये लगाकर बाकायदा राष्ट्रीय अभियान चलाया गया. वजह थी चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने से इनकार करना और आदिवासियों का साथ देना. जब वे ताकतवर थे, सत्ता में थे तो कॉरपोरेट का साथ देने की जगह आदिवासियों का साथ दिया और इसकी कीमत चुकाई. उनकी छवि धूमिल करने के लिए उनके खिलाफ राष्ट्रीय अभियान चला दिया गया.
यह अभियान 2010 में शुरू हुआ और बाकायदा करोड़ों-अरबों का तंत्र बनाया गया. कम से कम तीन कॉरपोरेट घरानों ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी नुमाइंदगी करने वाले एक वकील एवं पूर्व मंत्री के साथ मिलकर यह अभियान चलाया, जिसमें दो मीडिया घराने, कुछ पालतू संपादक और पत्रकार शामिल थे. इस अभियान के तहत राहुल गांधी के खिलाफ सालों तक लगातार खबरें प्लांट की गईं ताकि देश की जनता उन्हें गंभीरता से न ले. मीडिया में राहुल गांधी के खिलाफ क्या छपना है यह वो वकील नेता तय करता था.
पत्रकार रोहिणी सिंह और अभिसार शर्मा ने मिलकर यह खुलासा किया है. उनके मुताबिक, हुआ ये कि कॉरपोरेट समूह वेदांता नियामगिरि, ओडिशा में खनन करना चाहता था. आदिवासियों ने इसका विरोध किया. संघर्ष बढ़ा तो बात दिल्ली तक पहुंची. राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासियों की आवाज सुनी जाएगी. सरकार खनन की इजाजत नहीं देगी. राहुल गांधी के इस स्टैंड से वेदांता ग्रुप तो कांग्रेस के खिलाफ गया ही, बाकी कॉरपोरेट घरानों में भी घबराहट बढ़ने लगी. संदेश ये गया कि राहुल गांधी सत्ता में आए तो जनता के साथ खड़े होकर कॉरपोरेट का विरोध करेंगे. इसी बीच अंबानी समूह में मोदी और शाह के एक करीबी को टॉप पोजिशन पर बैठाया गया. इसे लेकर कांग्रेस और अंबानी में दूरी पैदा हुई.
उस समय तक राहुल गांधी मीडिया में छाए रहते थे. हालांकि, बहुत कोशिश के बावजूद वे किसी कॉरपोरेट से नहीं मिलते थे. कॉरपोरेट जगत के लोगों को लगा कि अगर राहुल गांधी मजबूत हुए तो उनके लिए हो सकता है अच्छा परिणाम न हो.
नतीजतन कुछ मजबूत औद्योगिक समूहों ने राहुल गांधी को बदनाम करने का अभियान ज्वाइन किया. दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से कुछ एक कांग्रेसियों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. अगर आप व्हाट्स एप विश्विद्यालय के जरिए राहुल गांधी को जानते हैं तो आपको यह कहानी रास नहीं आएगी, लेकिन अगर आप राहुल गांधी को गंभीरता से सुनते हैं, कोरोना, नोटबंदी, अर्थव्यवस्था आदि पर उनकी सच होती भविष्यवाणियों को जानते हैं, मीडिया पर उस वकील नेता के प्रभाव के बारे में परिचित हैं, राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे चरित्र हनन अभियान का अंदाजा है तो आपको यह कहानी हैरान नहीं करेगी। जानने वाले जानते हैं कि राहुल गांधी नेता जैसे भी हों, लेकिन उनकी छवि खराब करने के लिए इस देश में राष्ट्रीय अभियान चलाया गया। जहरीली आईटी सेल उसी मिथ्या अभियान के तहत वजूद में आई थी जिसने भारतीय राजनीति को रसातल पहुंचाया है।
शीतल पी सिंह-
काला पानी/सेल्यूलर जेल/सावरकर बनाम अन्य
राहुल गांधी ने सावरकर के जरिए आजादी की लड़ाई में योगदान को लेकर व्हाट्स ऐप विश्वविद्यालय द्वारा पढ़ाए गए इतिहास के फर्जीवाड़े को जेरे बहस ला दिया है।
जिन्होंने (ज्यादातर ने) इतिहास तब से पढ़ना शुरू किया जबसे वे व्हाट्स ऐप पर पहुंचे,फेसबुकियाए या रिटायर होकर टीवी पर ग्लू हो गए, उन सबको इस बहस ने एकाएक तगड़े झटके दे डाले हैं।
पिछले पंद्रह सालों में सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया पर क़ब्ज़े के ज़रिये करीब सौ साल चली आजादी की लड़ाई के असंख्य बलिदानियों में से संघी घराने ने सावरकर को अपना और आजादी की जंग में अपने विचार का रोल माडल बताकर स्थापित किया है।
उनकी सारी कुर्बानी का आधार सेल्यूलर जेल में बिताए उनके दस वर्ष हैं जहां से गांधी जी की मदद और अंग्रेज़ी सरकार से लगातार की गई उनकी विनतियों ने उन्हें काले पानी से मुक्ति दिलाई।
क्या सावरकर काले पानी की सजा पाए इकलौते थे ? यदि नहीं तो बाकी कितने कौन क्यों थे ? इस पर संघी घराना गायब क्यों रहता है? उनमें से कितनों ने माफ़ी मांगी/छूटे? या उन्होंने कुछ और किया ? उनमें से कौन कौन दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ा? क्यों और कोई नहीं जुड़ा?
संलग्न हैं इस बाबत कुछ सीधे सीधे कोरे तथ्य!
सेलुलर जेल में अनेक भारतीय क्रांतिकारियों ने अपना बन्दी जीवन व्यतीत किया, महावीर सिंह,दीवान सिंह कालेपानी, योगेन्द्र शुक्ला,शदन चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह भकना ,भाई परमानंद,हरे कृष्ण कोनार,शिव वर्मा, अल्लामा फजले हक खैराबादी, सुधांशु दास गुप्ता, विनायक दामोदर सावरकर, जयदेव कपूर, आशुतोष लाहिड़ी, होतीलाल वर्मा, बटुकेद्वार दत्त, बाबू राम हरी, नानीगोपाल मुखोपाध्याय, सरदार गुरमुख सिंह, पंडित परमानन्द, बरिंद्र कुमार घोष, इंदु भूषण रॉय, पृथ्वी सिंह आज़ाद, पुलिन दास, त्रिलोकी नाथ चक्रबर्ती, गुरुमुख सिंह, शचींद्रनाथ सान्याल, कुछ मुख्य नाम थे।
1933 में महावीर सिंह, मोहन किशोर नामदास, मोहित मोइत्रा ब्रिटिश जेल के अत्याचारों के विरुद्ध बेमियादी भूख हड़ताल करते हुए जबरन फीडिंग का मुक़ाबला करते हुए शहीद हुए।
कुल करीब 80,000 से ज्यादा हिंदुस्तानी ब्रिटिश सरकार द्वारा काला पानी की सजा काटने भेजे गए ।
173 स्वाधीनता सेनानियों को सेल्युलर जेल में फांसी दी गई ।
धीरेंद्र चौधरी काला पानी से सफलतापूर्वक निकल भागे और 147 ऐसे प्रयासों में इकलौते रहे , बाकी शहीद हुए।
सावरकर के अलावा काले पानी की सजा काटने वाले किसी भी दूसरे स्वाधीनता सेनानी को ब्रिटिश सरकार की पेंशन न मिली ।
इनमें से कई काले पानी की सज़ा काटकर निकले तो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए और फिर गिरफ्तार किए गए और देश के आजाद होने पर ही छूटे। जबकि ठीक इसी समय सावरकर भारतीय नौजवानों को ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती करवाकर जर्मन सेना से मुकाबले में भेजने का अभियान चलाते रहे।
(महावीर सिंह, मोहित मोइत्रा और मोहन किशोर नामदास)
शैलेश श्रीवास्तव
November 19, 2022 at 3:50 pm
अभिसार कितना बड़ा ढोंगी और कांग्रेस का चापलूस है ये जनता सब जानती है
anu sharma
November 25, 2022 at 9:00 pm
this is true information that bjp spent atleast 2000 crore to plant fake news abt rahul gandhi.. itna bada dar rahul gandhi se?? accha hai. ab bjp ke gart me jaane ka samay aa gaya jaldi hee yeh gande naale me doob jayegi