सुशोभित-
“डरा हुआ तानाशाह, एक मरा हुआ लोकतंत्र बनाना चाहता है।” राहुल गांधी की इस बात में बहुत जान है। यह इस युग का नारा बनने के योग्य है!
तानाशाह डरपोक है। वह ख़ुद को दिखाता तो है बहुत दिलेर, चौड़ी छाती वाला, पर है कायर। उससे कहा जाये कि आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस अटेंड करनी है तो हकलाने लगेगा, घिग्घी बँध जायेगी। यह टेलीप्रॉम्प्टर के बिना एक वाक्य नहीं बोल सकता। मैंने कहीं पढ़ा और पढ़कर मुझे हँसी आई कि छत्रपति शिवाजी के बाद हिन्दुओं में सबसे बड़ा शूरवीर यही पैदा हुआ है। यह शूरवीर एक अनस्क्रिप्टेड सवाल का सामना नहीं कर सकता- न देश में न विदेश में। दस साल में इसने एक प्रेसवार्ता नहीं की।
अगर मैं कहूँ कि महात्मा गांधी बलवान थे- तो उनका शरीर देखकर आप कह सकते हैं ये डेढ़ पसली के, कृशकाय, मरियल आदमी बलवान कैसे? लेकिन हिमालय पर्वत जितना आत्मबल था। लोगों के बीच रहते थे, गाँव-गाँव नंगे पाँव घूमते थे, दंगाग्रस्त इलाक़ों में जाते थे, हरिजन-बस्ती में निवास करते थे और कभी सुरक्षा-इंतज़ाम नहीं लेते थे। गांधी की प्रार्थना-सभा में जब चाहे, जो चाहे उठकर बोल सकता था, कुछ भी पूछ सकता था, व्यवधान डाल सकता था, गालियाँ बक सकता था, बम फेंक सकता था। कोई रोक-टोक नहीं। पता है क्यों? क्योंकि छुपाने के लिए कुछ नहीं है, जीवन खुली किताब है। और जीवन खुली किताब इसलिए है कि एक पैसे की कभी चोरी नहीं की। डर किस बात का?
तानाशाह की दाढ़ी में कौन-सा तिनका है जो यह इतना डरता है?
श्रेय लेने में अव्वल- मानो रॉकेट इसी ने उड़ाया था, भाला इसी ने फेंका था। खिलाड़ी पदक जीतकर आयें तो फ़ोटो खिंचाने को तत्पर। खिलाड़ी आन्दोलन करें तो चुप। प्रतिकूल प्रश्न आते ही यह एकदम से चुप्पी साध जाता है, सफ़ाई तक नहीं देता। यह केवल एकालाप करता है, अपनी सुनाता है। कोई इससे कुछ पूछे नहीं, इसका बंदोबस्त इसने कर दिया है। मीडिया की लगाम कस दी है। वह तो भला हो यूट्यूब का, जो रवीश कुमार और ध्रुव राठी आज भी आवाज़ उठाते रहते हैं। एक दिन यह उनके चैनलों पर भी रोक लगवा देगा। विपक्ष के नेताओं को यह या तो ख़रीद लेता है, या उनके पीछे हाउंड-डॉग्स की तरह एजेंसियाँ लगा देता है, या जेल में डाल देता है। कारोबारियों से यह चंदा-वसूली करता है, उन्हें एजेंसियों का डर दिखलाकर। अवैध चंदे से चुनाव लड़ता है, चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाता है। राजकाज छोड़कर रैलियों में अनर्गल बोलने के लिए उड़ता रहता है। इसका कोई निजी जीवन नहीं है। कैमरे के बिना यह कुछ करता नहीं। माँ की शवयात्रा में भी यह कैमरा लेकर गया।
यह रामराज्य है क्या? रामराज्य ऐसा होता है क्या? धर्म की तो पहचान ही सत्य, न्याय, ईमानदारी, निष्ठा से होती है। धर्म मंदिर से नहीं होता, मूर्ति से नहीं होता, चरित्र से होता है। और चरित्र विज्ञापनों से नहीं बनाया जा सकता। चरित्र आत्मबल से बनता है। भारत गांधी का देश था, है और रहेगा। और जिस दिन जनता इसको कुर्सी से हटायेगी और इसके घपले सामने आयेंगे, उस दिन लोगों को शर्म आयेगी कि हमने किस अधर्मी-विधर्मी को सिर आँखों पर बैठाया था।