Om Thanvi : राहुल अपनी पार्टी के नेताओं के साथ जाकर मोदी से मिल आए। संसद में पंद्रह विपक्षी दलों के सहयोग से पनपी एकता टूट गई। मुलाक़ात का फ़ायदा मोदी ने अपने हक़ की ख़बरों के प्रसार (‘हमें मिलते रहना चाहिए, राहुलजी’!) से उठाया है, जिसमें उनका प्रचार-तंत्र माहिर है। इससे कांग्रेस को क्या हासिल हुआ? क्या राहुल मोदी के ग़ुब्बारे की हवा निकालने जा रहे हैं? या अगले संसद सत्र (और फिर उससे अगले) का इंतज़ार करेंगे? तब तक तो मोदी कई ग़ुब्बारे और फुला चुके होंगे। भोले जन-मानस को ग़ुब्बारे पसंद हैं, जब तक वे फुस्स न हों। अगर राहुल गांधी के पास ठोस तथ्य हैं तो संसद के कवच की परवाह न कर उन तथ्यों को जनता के सामने अविलंब रख देना चाहिए। भूचाल न सही, आँधी-तूफ़ान सही! वरना इतना शोर उठाकर अब ग़ुब्बारे से कतराना उनके ही गले की घंटी बन जाएगा।
Sanjaya Kumar Singh : राहुल गांधी का नरेन्द्र मोदी से मिलना – बहुत ही बचकाना है। भाजपा उसका फायदा उठा रही है। गलत संदेश फैलाया जा रहा है। जो नहीं हुआ वो बताया जा रहा है – तो इसकी जड़ मुलाकात में ही है। और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ राहुल दोषी हैं। हालांकि, इससे राहुल के बारे में मेरी राय नहीं बदलेगी। पर राहुल का बचाव करना मेरा काम नहीं है। और मौके का फायदा भाजपा उठाये तो उसकी पोल खोलना मैं जरूरी नहीं समझता।
पत्रकार द्वय ओम थानवी और संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.