Arvind Kumar Singh-
साथी राजीव कटारा को याद करते हुए… इस तस्वीर को गौर से देखेंगे तो एकदम बायें श्री कमर वहीद नकवी ( नकवीदा), उनके बगल में राजीव कटारा और फिर दाढी में मैं हूं। तस्वीर बोट क्लब की है और साल 1988-89 का है। राजीव गांधी की सरकार थी और बोट क्लब पर हम लोगों ने विरोध प्रदर्शन और धरना दिया था जिसमें काफी बड़ी संख्या में पत्रकार शामिल हुए थे। यह धरना उमेश डोभाल हत्याकांड के खिलाफ था। उमेश डोभाल की पहाड़ पर शराब माफिया ने हत्या की थी, जो अमर उजाला के संवाददाता थे।
राजीव कटारा को मैं राजीव ही कहता था। वे भी मुझे अरविंद। कभी कभी मैं राजीव भाई कह देता था और वे अरविंदजी। राजीव के व्यक्तित्व पर बहुत से साथियों ने बहुत सी बातें लिखी हैं, लेकिन एक बात उसमें मिसिंग थी कि मीडिया पर हमले के लेकर राजीव बेहद सजग औऱ सचेत थे। इंडियन एक्सप्रेस पर सरकारी छापे के दौरान मैं वहां मौके पर था जब छापा चल रहा था। बाद में हेमवती नंदन बहुगुणा और कई नेता वहां पहुंचे तो भी मैं अरूण शौरी के कमरे में था। एक्सप्रेस के छापे को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट बनाने में राजीव ने मेरी मदद की। पत्रकारों पर कहीं भी हमला होता था तो राजीव उसका विरोध करते थे। यही नहीं मीडिया से संबंधित मेरी तमाम रिपोर्टों को राजीव पढ़ते थे और मुझे सलाह भी देते थे कि इस मामले पर मौन नहीं रहना चाहिए। लेकिन बात यहीं तक नहीं थी, सती प्रथा के मुद्दे पर प्रभाषजी के खिलाफ भी राजीव और हम लोगों ने मुहिम चलायी थी।
दिल्ली आने के बाद पत्रकारिता में जिन मित्रों के मैं बहुत करीब रहा उनमें राजीव कटारा, अमरेंद्र राय, अरिहन जैन, अनंत डबराल, ओम पीयूष, अन्नू आनंद, अजय श्रीवास्तव, सुभाष सिंह जैसे मित्र बेहद खास थे। जो हमसे बड़े थे और जिनका स्नेहपात्र रहा उसमें सेंगर दादा (श्री वीरेंद्र सेंगर) और आलोक तोमर के राजीव भी प्रिय थे। दिल्ली आने पर राजीव ने मेरी लोकल रिपोर्टिंग में काफी मदद की। आलोक पुराणिक, मैं और अरिहन जैन तो एक साथ रहते ही थे और मित्र मंडली का जमावड़ा बना रहता था।
राजीव जहां भी रहे अपनी विद्वता और कामकाज से एक छाप छो़ड़ी। किताबों से उनको खास लगाव था औऱ हमारी पीढ़ी के वे सबसे अधिक पढ़ने लिखने वाले पत्रकार थे। संबंधों के निर्वहन में राजीव का कोई जवाब नहीं था। अपने मित्रों को राजीव हमेशा याद रखते थे। उनका ध्यान ऱखते थे। मैने बहुत कम बार राजीव को फोन किया होगा लेकिन राजीव ने संबंधों में कभी गैप नहीं आने दिया। एक बार मैं नगालैंड की लंबी यात्रा पर था। राजीव ने फोन करके कहा कि मुझे नगालैंड पर ऐसा आलेख चाहिए जिसे पढ़ने वाला आदमी पूरे प्रांत को समझ ले।
मैंने लिखा तो उसमें कुछ और तथ्य राजीव ने शामिल कराए। वे हमेशा मौके बेमौके फोन करके खबर ले लेते थे। मैने उनको फोन किया था कादम्बिनी के बंद होने के बाद। कहा कि बहुत पत्रकारिता आपने कर ली अब आगे का समय आनंदकाल के रूप में लीजिए। राजीव हंसे..कहा कि अरविंद तुम्हारे तरह खेती बाड़ी होती तो मैं ऐसा ही सोचता। मैंने कहा कि तुम वैसे भी बैठे तो नहीं रहोगे। अपने पुराने लिखे पढ़े को व्यवस्थित कर किताबों को आकार दो। बहुत सी बातें हुईं और राजीव बीच बीच में ठहाका लगाते रहे।
राजीव का निधन हुआ तो मैं बाहर था। निधन की खबर के बाद सेंगर दादा को फोन पर पूरी खबर ली। कोरोना काल में 2020 ने बहुत से प्रिय लोगों को हमसे छीन लिया लेकिन राजीवजी का जाना पत्रकारिता की बहुत बड़ी क्षति है। आपको विदा राजीव भाई। हम आपको कभी भूलेंगे नहीं।