Ashwini Kumar Srivastava : अबकी बार…. ध्रुवीकरण की हर कोशिश बेकार! काठ की हांडी है हिंदुत्व, दोबारा नहीं चढ़ती… भोपाल से ईमानदार छवि वाले सांसद आलोक संजर का टिकट काटकर हिंदुत्व के आतंकवाद का प्रतीक बन चुकीं प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ भोपाल बल्कि पूरे देश की राजनीति में हिंदुत्व का ध्रुवीकरण करने की आखिरी कोशिश की है ….इससे पहले उन्होंने मंदिर मुद्दा उठाकर या अन्य कई तरीकों से यह कोशिश की मगर नाकाम रहे ….लिहाजा बम और गोली यानी आतंकवाद के जरिए हिंदुत्व लाने की आरोपी प्रज्ञा को मैदान में उतारकर उन्होंने हिन्दुओं के बीच यह संदेश दे दिया है कि वह अगर उनके पीछे एकजुट हो जाएंगे तो कट्टरता का हर तरीका अपनाकर वह हिंदुत्व ले ही आएंगे…लेकिन वह ऐसा करके वही गलती कर रहे हैं , जो इससे पहले भाजपा और संघ के लोग कर चुके हैं ….
यह तो सभी को पता है कि सैकड़ों जाति और समुदायों में बिखरा हिंदुत्व अगर हाल- फिलहाल के भारत के इतिहास में कभी ध्रुवीकरण के जरिए एकजुट हुआ है तो केवल दो ही मौकों पर ….एक जब लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर बनाने के नाम पर रथयात्रा निकाली थी और अयोध्या में कार सेवा का आह्वान किया था ….दूसरा जब आडवाणी जी के ही वरदान से बने मगर उनके लिए ही राजनीतिक भस्मासुर बन गए नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों के बाद खुद को कट्टर हिंदुत्व का मसीहा बनाकर 2014 का चुनाव लडा था …
हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के उन दोनों मौकों पर बिखरा हुआ हिन्दू समाज एकजुट हुआ …मगर जैसा कि अवश्यंभावी था, ठीक उसी तरह वह सत्ता मिलते ही वापस बिखर कर इतिहास भी बन गया ….क्योंकि आडवाणी ने जब बिखरे हिन्दू समाज को एकजुट करके सत्ता दिलाई तो वह यह भूल गए थे कि उस एकजुट समाज में भी मूल तत्व जाति ही तो है …उनकी यह गलती उन्हीं के लिए सबसे भारी साबित हुई और चूंकि उनकी जाति यानी सिंधी एकजुट हिंदुत्व में नगण्य हैसियत रखती है इसलिए एकजुट हिंदुत्व ने सबसे पहले उन्हें ही उनकी हैसियत याद दिलाई … आडवाणी समझदार थे और मरता क्या न करता की तर्ज पर जातीय सोपान के शीर्ष पर बैठी सबसे ताकतवर ब्राह्मण जाति के अपने ही सहयोगी अटल बिहारी वाजपेई को सत्ता सौंप कर उनके पिछलग्गू बनकर इस उम्मीद में दिन काटने लगे कि शायद कभी तो इस एकजुट हिन्दू समाज को उनका योगदान याद आएगा ….
मगर जातीय कुनबों में सत्ता का संघर्ष शुरू हो चुका था …कट्टर हिंदुत्व और ध्रुवीकरण कल की बात हो चुकी थी …हर जाति अपना अपना सिक्का जमाने में जुटी थी …कमान चूंकि संघ के जरिए ब्राह्मण जाति के हाथ में थी लिहाजा अन्य सवर्ण को अपने साथ जगह जगह पर उनकी जातीय ताकत के हिसाब से सत्ता का शेयर देकर संघ हिंदुत्व का मजा लूटने लगा …. जातियों के इसी संघर्ष में कल्याण सिंह, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार जैसे पिछड़े वर्ग के लोध कुर्मी आदि नेता हाशिए पर जाने लगे ….दलित तो बेचारे क्या संघर्ष कर पाते इस एकजुट और कट्टर हिंदुत्व के राज में ….
नतीजा यह हुआ कि कट्टर हिंदुत्व को वाजपेई ने उसी जातिवादी समाज में बदल दिया , जिसे बड़ी मुश्किल से हिंदुत्व की हांडी पर चढ़ाकर आडवाणी ने सत्ता की खिचड़ी पकाई थी …लेकिन भंवरे ने खिलाया फूल टाइप गति को प्रदान हो चुके आडवाणी दोबारा न तो फिर कभी वहीं खिचड़ी पका पाए और न ही हिंदुत्व की कमजोर , पिछड़ी , दलित व वंचित उन जातियों में हिंदुत्व को लेकर वह उत्साह ही बाकी रहा, जो वाजपेई के नेतृत्व में सवर्ण जातियों के सत्ता संघर्ष से बिल्कुल बाहर निकल कर मूक दर्शक बने हुए थे …
लिहाजा मुलायम, मायावती, कांशीराम, लालू जैसे नेताओं ने हिंदुत्व की कमजोर और सत्ता संघर्ष से बाहर जातियों को थामकर राजनीति का वह चूल्हा ही ठंडा कर दिया , जिस पर यह हांडी चढ़ती थी…
फिर नरेंद्र मोदी का दौर आया और उन्होंने भी अपने राजनीतिक गुरु का ही फार्मूला अपनाया और एक बार फिर उन्होंने ध्रुवीकरण का खेल खेला ….नतीजा भी वही हुआ …सरकार बन गई ….लेकिन सब कुछ सीखकर अपने गुरु को ठिकाने लगाने की जल्दी में वह इस पर विचार करना ही भूल गए कि जहां से खुद उनके गुरु भी रास्ता नहीं ढूंढ़ पाए थे, उसके आगे जाना कैसे है … इसी चक्कर में मोदी भी वही गलती करते दिखाई दे रहे हैं, यानी हिंदुत्व के दोबारा ध्रुवीकरण की …जबकि इस बार भी अटल राज की ही तरह हिंदुत्व में 2014 से ही सत्ता का वही सवर्ण जातीय संघर्ष चला है , जिससे बाहर होकर बाकी जातियों ने फिर कट्टर हिंदुत्व से मुंह मोड़ लिया है … जाहिर है, अब उन्हें वापस कट्टर व एकजुट हिन्दू समाज बनाना कम से कम मोदी के बस का तो नहीं ही रहा …और जो मोदी मोदी कर रहा है अर्थात सवर्ण समाज ….तो वह तो मोदी मोदी करेगा ही… उसी तरह जैसे कि अटल के दौर में उसे यही लग रहा था कि आडवाणी के दौर जैसा ही हिन्दू समाज है , जो एकजुट होकर फिर से हिंदुत्व का परचम लहराएगा….और राजपाट सवर्णों को सौंप देगा
अब उन्हें यह कौन समझा पाएगा कि तब अटल रहे हों या अब मोदी हों या उनके पीछे खड़ा संघ…..कोई लाख करे चतुराई …. काठ की हांडी दोबारा चढ़ सके न रे भाई….
Dilip Khan : प्रज्ञा सिंह ठाकुर मालेगांव बम धमाके की अभियुक्त है. इस धमाके में कई लोगों की मौत हुई थी. इनके और कर्नल पुरोहित के ख़िलाफ़ मरहूम हेमंत करकरे ने काफ़ी ठोस साक्ष्य पेश किए थे. 2008 के मुंबई हमले में रहस्यमयी तरीक़े से करकरे की हत्या हो गई. जब केंद्र में मोदी सरकार बनी तो एक सरकारी वक़ील ने खुलेआम कहा था कि एनआईए पर केस कमज़ोर करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. एनआईए ने कई गवाहों के सबूत ग़ायब कर दिए. फिर भी प्रज्ञा ठाकुर को बरी नहीं किया जा सका. इन दिनों ‘हेल्थ ग्राउंड’ पर ये ज़मानत पर बाहर हैं. जेल में रहने लायक स्वास्थ्य नहीं है, लेकिन चुनाव लड़ने लायक है. मतलपब ये हुआ- मोदी सरकार आतंकवादियों के साथ!
देश में पहली बार किसी बड़ी पार्टी ने आतंकवाद के किसी मुख्य अभियुक्त को टिकट दिया है. प्रज्ञा सिंह ठाकुर सिर्फ़ ‘आरोपी’ नहीं है, अभियुक्त है. वो मालेगांव बम धमाके में ज़मानत पर बाहर है. मोदी सरकार के दबाव में NIA द्वारा केस कमज़ोर करने के बावजूद उसे बरी नहीं किया गया है.
समझौता बम धमाके के आरोपी असीमानंद ने अदालत से कहा था कि अभिनव भारत और RSS प्रचारक सुनील जोशी वाले गुट ने ‘जेहादी आतंकवाद’ के ख़िलाफ़ बदले के लिए धमाके करवाए. सिर्फ़ मालेगांव ही नहीं, समझौता एक्सप्रेस धमाके, अजमेर दरगाह धमाके और मक्का मस्जिद धमाके में भी इन्हीं संगठनों के हाथ थे.
इनमें से ज़्यादातर धमाकों में साध्वी प्रज्ञा का नाम आया था, लेकिन चार्जशीट 2008 में मालेगांव में हुए बम विस्फोट में ही दायर किया गया. इनका लक्ष्य होता था मुस्लिम बहुल इलाक़ों में बम फोड़ना. साध्वी प्रज्ञा ने मालेगांव में बम फोड़ने के लिए अपनी मोटरसाइकिल दी. उसी मोटरसाइकिल में विस्फोटक रखकर धमाका किया गया.
साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के कई ऑडियो टेप पकड़े गए, जिनमें बम धमाकों की योजना बनाई जा रही थी. NIA ने 2016 में चार्जशीट दायर की. तब तक केंद्र में मोदी जी की सरकार बने दो साल हो चुके थे. मकोका का चार्ज साध्वी प्रज्ञा के ऊपर से हटा दिया गया.
NIA पर केस कमज़ोर करने का दबाव था. मज़बूती से केस लड़ रहीं सरकारी वक़ील को बदल दिया गया. फिर भी, UAPA के तहत अभी भी प्रज्ञा पर मुक़दमा चल रहा है. उस पर आतंकवादी हमला करने, आतंकवादी घटना की साजिश रचने, हत्या करने, आपराधिक षडयंत्र करने और समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने जैसे आरोप तय किए जा चुके हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार श्रीवास्तव और दिलीप खान की एफबी वॉल से.