Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

रजनीश के पत्र!

सुशोभित-

रजनीश की समस्त पुस्तकें बोली गई हैं- सिवाय पत्र-संकलनों के। पत्र ही लिखे गए हैं। किन्तु वे भी पत्र की तरह लिखे गए थे, पुस्तक की तरह नहीं। लिखे जाते समय यह ख़्याल नहीं था कि कालान्तर में उन्हें सँजोकर उनसे पुस्तकें बनाई जाएँगी। पत्र किसी एक व्यक्ति को सम्बोधित थे, पुस्तक की तरह सर्वसाधारण को लगाई टेर उनमें न थी, अलबत्ता अब पढ़ें तो वो सार्वकालिक और सार्वभौमिक ही लगते हैं। एक से एक की कही गई बात अब सबके लिए सम्यक हो गई है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रजनीश का पहले से पहला पत्र 25 जुलाई 1956 का मिलता है, जो सागर विश्वविद्यालय से सहपाठी-मित्र डॉ. कमल सिंह ठाकुर को लिखा गया था। किन्तु उनके अधिकतर पत्र 1960 के बाद के हैं। ये 1972 तक लिखे जाते रहे, फिर कड़ी टूट गई। 1970 के बाद अंतिम के एक-दो वर्षों के बहुतेरे पत्र अंग्रेज़ी में लिखे गए थे। रजनीश की अंग्रेज़ी की हस्तलिपि भी हिन्दी की तरह सुघड़-सुलेख थी। वे काली स्याही से छोटे-छोटे अक्षर काढ़ते थे। हिन्दी के पत्र लगभग हमेशा “मेरे प्रिय, प्रेम” से शुरू होते। अंत में हमेशा की तरह “रजनीश के प्रणाम” और चिर-परिचित दस्तख़त। कुछ पत्र टाइपराइटर से लिखे गए हैं। 60 के दशक के आरम्भ के कुछ पत्रों में ‘चिदात्मन्’ सम्बोधन है। ‘साधना पथ’ के प्रवचनों में भी यही सम्बोधन था।

रजनीश के ये पत्र दो तरह के हैं। एक, किसी प्रयोजन से मित्रों, सहचरों, आयोजकों को लिखे गए। दूसरे, साधकों को लिखे गए निजी पत्र। ये दूसरे वाले पत्र ही महत्व के हैं। इनकी शैली अंतरंग है। उनमें बोधकथाएँ, दृष्टान्त, रूपक हैं। अनेक पत्रों में प्रकृति-चित्रण है, जैसे आत्मलेखा हो, निजी डायरी के पन्ने हों। कुछ पत्रों में साधकों के लिए निर्देश हैं, प्रोत्साहन है, ध्यान में उनकी प्रगति के बारे में पूछ-परख की गई है और आगे अग्रसर होने का आवाहन किया गया है। इन पत्रों में रजनीश का स्वर अत्यंत सौम्य है, उसमें माधुर्य है, लगभग स्त्रैण रीति की कोमलता है। रजनीश का प्रखर विद्रोही रूप तो बहुत चर्चित हुआ है, किन्तु इन पत्रों से झलकने वाला कोमल-राग एक भिन्न रजनीश-छवि को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है। कही गई बात और लिखी गई बात में यों भी बहुत अंतर चला आता है। लिखी गई बात सदैव अधिक सुचिंतित होती है, आत्मीय होती है। रजनीश वाकपटु थे, ओजस्वी वक्ता थे, किन्तु उनके पत्र पढ़कर लगता है लेखन की क्षमता भी उनमें कम न थी।

20 अगस्त 1969 का पत्र है : “मेरे प्रिय, प्रेम। सत्य आकाश की भाँति है। क्या आकाश में प्रवेश का कोई द्वार है? तब सत्य में भी कैसे हो सकता है? पर यदि हमारी आँखें बंद हों तो आकाश नहीं है। आँखों का खुला होना ही द्वार है।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

2 जनवरी 1971 का पत्र : “मेरे प्रिय, प्रेम। प्रार्थना में प्राणों का पक्षी अज्ञात की यात्रा पर निकल जाता है, और वही यात्रा करने योग्य है। शेष सब भटकाव है।”

15 दिसम्बर 1970 : “मेरे प्रिय, प्रेम। अब मैं हूँ भी? देखो कहीं दिखलाई देता हूँ? पारदर्शी हो गया हूँ स्वयं को खोकर। बहुत बार मेरा मैं विनम्र नहीं मालूम पड़ता, क्योंकि वह मेरा है ही नहीं, और जिसका है, उसके लिए क्या विनम्रता, क्या अहंकार?”

Advertisement. Scroll to continue reading.

जो स्वयं शून्यवत् हो, वह जब दूसरों के भीतर के शून्य को पुकारता है तो उसकी भाषा में प्रशान्ति चली आती है। साथ ही, उसमें स्नेह होता है, निमंत्रण होता है और अनंत की पुकार होती है। ऐसा आभास होता है कि ये पत्र किसी दूसरी दुनिया से लिखे जा रहे हैं, यह डाक एक दूसरे आयाम से आई है। उसमें परातत्व की झलक होती है। रजनीश के पत्रों में वही तत्व उतर आया है।

रजनीश के सैकड़ों पत्रों में से सर्वाधिक दो स्त्रियों को लिखे गए हैं। चाँदा की मदन कुँवर पारिख को लिखे पत्र ‘क्रान्तिबीज’ और ‘भावना के भोजपत्रों पर’ में संकलित हैं। रजनीश उन्हें अपने पूर्वजन्म की माता कहते थे। पुणे की सोहन बाफना को लिखे पत्र ‘पथ के प्रदीप’ नामक पुस्तक में संकलित हैं। माथेरान में एक शिविर के बाद जब वे विदा हो रहे थे तो सोहन फूट-फूटकर रो पड़ी थीं। रजनीश चुपचाप उन्हें देखते रहे। फिर बहुत ही कोमलता से कहा, “रोने वाली क्या बात है सोहन, मैं तुम्हारे साथ ही हूँ।” फिर मानो मनुहार करते हुए कहा, जैसे कि सोहन कोई किशोरी बालिका हों, “अच्छा तुम चुप हो जाओ, मैं तुम्हें रोज़ एक पत्र लिखूँगा।” सोहन ने आँसू पोंछ लिये किन्तु इस वचन पर विश्वास नहीं किया। भला आचार्यश्री को अवकाश कहाँ? वो तो देशाटन करते हैं, रेलगाड़ी में सोते हैं और दिन में चार से पाँच जगह व्याख्यान देते फिरते हैं। किन्तु वे चकित रह गईं जब रजनीश के पत्र नियमित उन्हें मिलने लगे- कई बार तो दिन में दो चिटि्ठयाँ। रजनीश ने उन्हें सौ पत्र लिखने का वचन दिया था, किंतु शताधिक ही पत्र लिखे। विश्ववंद्य व्यक्ति के इतने पत्र पाकर सोहन धन्य हुईं, संन्यस्त होकर मा योग सोहन का नाम धारण किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘पथ के प्रदीप’ के उस पहले संस्करण का प्रकाशन सागर की संत तारण तरण जयंती समारोह समिति ने किया था। रजनीश इस संस्था के अध्यक्ष थे और इसके अनेक आयोजनों से प्रतिश्रुत थे। इसका कार्यालय जबलपुर के जवाहरगंज में था और रजनीश ने अनेक पत्र इस समिति के लेटरहेड से लिखे हैं।

रजनीश के पत्रों से जो पुस्तकें बनी हैं, उनमें ‘क्रान्तिबीज’, ‘भावना के भोजपत्रों पर’ और ‘पथ के प्रदीप’ के अलावा ‘प्रेम के फूल’, ‘अंतर्वीणा’, ‘प्रेम के स्वर’, ‘प्रेम की झील में अनुग्रह के फूल’, ‘ढाई आखर प्रेम का’, ‘पद घुंघरू बाँध’, ‘जीवन-दर्शन’ इत्यादि सम्मिलित हैं। चार पत्र-संग्रहों का एक संकलन ‘तत्वमसि’ शीर्षक से भी प्रकाशित किया गया है। अंग्रेज़ी में लिखे 200 पत्रों का एक भिन्न संकलन ‘अ कप ऑफ़ टी’ शीर्षक से आया है। ‘शून्य के स्वर’ और ‘मौन की धड़कनें’ शीर्षक से दो और पत्र-संग्रह प्रकाशित करने की योजना बम्बई के दिनों में रजनीश के सचिव योग चिन्मय ने बनाई थी। जाने उन संग्रहों का क्या हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रजनीश के पत्र आत्मीय हैं, सुंदर हैं, प्रगाढ़ हैं और साधक के लिए तो पाथेय हैं, सम्बल और दिशासूचक हैं। इन पत्रों को सहज ही हृदयंगम कर लेना चाहिए।

“आकाश आज तारों से नहीं भरा है। काली बदलियाँ घिरी हैं और रह-रहकर बूँदें पड़ रही हैं। रातरानी के फूल खिल गए हैं और हवाएँ सुवासित हो गई हैं। मैं हूँ, ऐसा कि जैसे नहीं हूँ, और न होकर होना पूर्ण हो गया है। एक जगत है जहाँ मृत्यु जीवन है, और जहाँ खो जाना, पा जाना है। एक दिन सोचा था बूँद को सागर में गिरा देना है। अब पाता हूँ कि यह तो सागर ही बूँद में गिर आया है।” [‘क्रान्तिबीज’, पृष्ठ 135]

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरा लक्ष्य पाठकों को यह बताना है कि रजनीश केवल अमेरिका, शीला, वाइल्ड वाइल्ड कंट्री, सेक्स गुरु, सम्भोग से समाधि ही नहीं हैं, जिसके लिए दुनिया उन्हें जानती है। रजनीश के समग्र का यह गौण अंश भी नहीं। मेरा आवाहन है कि वास्तविक रजनीश को खोजो, पहचानो और सहेजो। १९६४ से १९७४ तक कि अनिंद्य आचार्य प्रतिमा को अवलोको। इससे रजनीश का कुछ भला नहीं होगा, आपका ही होगा। आपकी चेतना का स्तर उठेगा। -सुशोभित

1 Comment

1 Comment

  1. Prabhakar M Tiwari

    November 11, 2022 at 9:34 pm

    लेकिन इतने अरसे बाद अचानक रजनीश प्रेम उमड़ने की कोई खास या ठोस वजह?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement