संजय कुमार सिंह-
सच स्वीकारने की बजाय पाखंड का झूठ… सरकार और उसके लोग (भाजपा और भक्त पढ़ सकते हैं!) सच के मुकाबले पाखंड का जो झूठ परोसते हैं उसे बताना मीडिया का काम है। लेकिन मीडिया को कुंद करके गुलाम बनाकर उससे प्रचार करवाया जा रहा है। पैसे देकर और डरा-धमका कर भी। जो मान गए वो मजे में हैं जो नहीं माने उनके लिए ग्राहकी है, कॉरपोरेट टेकओवर है। पर वह अलग मुद्दा है।
मीडिया में और सोशल मीडिया में भी चर्चा उसी की होती है जो चमकता है बाकी पीटीआई और यूएनआई जैसी स्वायत्त एजेंसी के हाल पर भी रोना चाहिए लेकिन उसकी अपनी कहानी है। ऐसे माहौल में द टेलीग्राफ सच को पूरे दमखम से और धारदार तरीके से पेश करता है। हिन्दी वालों का दुर्भाग्य कि उनके लिए यह सब पढ़ना, समझना संभव नहीं है। और इसीलिए, अब भी भाई लोग नहीं चाहते कि लोग अंग्रेजी सीखें। हिन्दी के प्रचार या समर्थन के नाम पर अंग्रेजी का विरोध इसीलिए होता है। वरना अंग्रेजी न जानने वालों को हिन्दी अखबारों में नौकरी न मिले।
ऐसे में सच भले ही भारत में नहीं छप रहा है विदेशों में दिख तो रहा ही है। भले यहां के मतदाताओं के लिए उसे लीप पोत दिया जाता है। फिर भी, मीडिया की हालत और उससे संबंधित प्रचार की टेलीग्राफ की यह खबर और प्रस्तुति अद्वितीय है। पढ़ना चाहें तो लिंक कमेंट बॉक्स में है। आज तो यही अखबार खुलेगा लेकिन भविष्य में पढ़ने के लिए आर्काइव में जाकर आज की तारीख 03.12.2022 डालनी होगी।
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