यशवंत सिंह जी
भड़ास4मीडिया
नमस्कार.
आपसे कहा था कि ३ जनवरी को वो पूरी कहानी लिखूंगी जो इंडिया न्यूज़ के मेरे चार महिने के कार्यकाल में और उसके बाद मेरे साथ घटित हुई।
३ जनवरी इसलिए क्योंकि ३ अक्टूबर वो तारीख थी जिस दिन इंडिया न्यूज़ के एच आर डिपार्टमेंट के किसी ऐसे शख्स ने मुझे फोन किया था जिसे मैं जानती तक नहीं और कहा कि ‘बेटियां’ शो को एंकर करने का आपका कॉन्ट्रैक्ट टर्मिनेट किया जा रहा है।
अफसोस, करार खत्म होने का कतई नहीं था क्योंकि ये उस तकलीफ से बहुत कम था जो मैं हर दिन चैनल में काम करते हुए सह रही थी…कभी कैमरे में चिप नहीं तो कभी चिप करप्ट। मैंने अपनी तकलीफें बयां करती एक मेल चैनल के संपादक को भेजी भी थी। अफसोस इस बात का था कि लॉक-इन पीरियड के बावजूद करार तोड़ने का गैर-कानूनी काम करना ही था तो कम से कम चैनल के संपादक, राणा यशवंत एक बार मुझसे बात करने की ज़हमत तो उठा लेते, इतना सम्मान तो देते मुझे कि एचआर के किसी शख्स से फोन न करवाते। मैं बिना कोई लड़ाई झगड़ा किये या मुआवज़ा मांगे चैनल छोड़ देती।
लेकिन इस चैनल में यही रिवाज़ है ऐसा मुझे बाद में बताया गया…
खैर, टर्मिनेशन को मेल पर मंगाने और सितंबर की तनख्वाह लेने के लिए तक मुझे संघर्ष करना पड़ा। अपमानित हुई… गुस्सा भी आया…और आखिरकार डेढ़ महीने बाद जो टर्मिनेशन मेल आई, उसमें मुझ पर जो इल्ज़ाम लगे वो पढ़ने के बाद तो समझ ही नहीं आया कि मैं हंसूं या रोऊं…बहरहाल मेरे वकील ने नोटिस का जवाब तो भेज ही दिया…और ये स्पष्ट कर दिया कि मेरे पास हर इल्ज़ाम के जवाब में पुख्ता सबूत हैं और मैं चाहूं तो कोर्ट जा सकती हूं।
लेकिन कहते हैं न कि गुस्से या पीड़ा में कभी अपने विचार व्यक्त नहीं करने चाहिए सो मैंने ३ महीने इंतज़ार किया….
इस दौरान अपनों का भी पता चला… बहुत फोन आए, लोग मिले…सबने अपने अपने हिसाब से सलाह दी और मैंने सबको ध्यान से सुना। कुछ ने तो ये तक कहा कि तुम कानूनी केस लड़ो, हम सब मिल कर पैसे जुटाएंगे क्योंकि बहुत लोग इस चैनल की कारगुज़ारियों के भुग्तभोगी हैं। लीगल एक्सपर्ट्स ने कहा कि आपको ये केस लड़ना चाहिए क्योंकि ये पूरी तरह से आपके पक्ष में है। कुछ साथियों ने कहा चुप रहो, भूल जाओ, क्यों इस नकारात्मकता में पड़ना, जबकि कुछ ने कहा कि तुमको विस्तार से लिखना चाहिए। मैं ३ महिने तक इन दोनों सलाहों के बीच झूलती रही। बहुत लोगों ने ये भी समझाया कि एक चैनल के खिलाफ लिखोगी तो कहीं और नौकरी नहीं मिलेगी… ये डर तो हम सबके मन में होता ही है…इसी डर के चलते कई तथाकथित दोस्त भी चुप रहे कि क्या पता कल उन्हें इसी चैनल में नौकरी मांगने जाना पड़े।
लेकिन बीते दिनों में जब जब लैपटॉप उठाया पूरी कहानी लिखने के लिए, तो सिर्फ और सिर्फ दुख हुआ, अफसोस हुआ कि कैसे कैसे लोग एक चैनल के अहम पदों पर बैठे हैं, कई ज़ख्म दोबारा हरे होने लगे….कड़वी यादें ताज़ा हो गईं….
इसलिए अब नए साल में बीते साल के गढ़े मुर्दे उखाड़ने को जी नहीं कर रहा..जिसने जो किया, वो उसको भी पता है…चाहे चैनल के बेहद मीठा ,पर झूठ बोलने वाले संपादक हों, लोगों के साथ धोखे करने वाली एचआर हेड हों , तथाकथित टीवी रेटिंग एक्सपर्ट कंसल्टेंट मैडम हों, या वो सीईओ जिनके एक अवॉर्ड फंक्शन में जब लोग नहीं आए तो उन्होंने कार्यक्रम की नाकामी का ठीकरा मेरे सर मढ़ दिया…ये वो लोग हैं जो दूसरों की, खासकर एंकरों की नौकरियां खाकर अपनी चला रहे है….इनकी असलियत पहले ही दुनिया के सामने है, आगे इनके और सच सामने आएंगे….
आज बस इतना कह सकती हूं कि एक अच्छा शो, जो एक सामाजिक सरोकार से जुड़ा था, वो रेटिंग की मारामारी , संपादक की नाकामी, दीपक चौरसिया और राणा यशवंत के खेमों में बंटे लोगों की लड़ाइयों, खुद को बहुत समझदार समझने वाली लेकिन बेहद चालाक दो महिलाओं की साज़िशों और मैंनेजमेंट के लोगों के षड्यंत्रों और झूठे अहंकारों की भेंट चढ़ गया….
एक और बात मैं आज ज़रूर कहना चाहती हूं जिसकी वजह से मैं ये मेल आपको लिख रही हूं…मुझसे कुछ लोगों ने कहा कि भड़ास वाले यशवंत, चैनल के संपादक राणा यशवंत के अच्छे दोस्त हैं इसलिए तुम्हारी बात कभी नहीं छापेंगे। लेकिन मुझे हैरानी हुई जब आपने ३-४ बार कहा कि मैं पूरी बात लिखूं और आप ज़रूर छापेंगे। सो शुक्रिया आपका….पर अब उस कहानी को वहीं छोड़ देते हैं। क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ….ये सब लिखना मेरे लिए बहुत पीड़ादायक है। वक्त हम सबसे बलवान होता है…उसी पर छोड़ देते हैं इस कहानी का अंत…
शुभकामनाएं….
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Comments on “ऋचा अनिरुद्ध, इंडिया न्यूज, ये खुला ख़त और पूर्ण सत्य”
Sabhi chainal me yahi haal hai
सुनकर हैरानी होती है कि आप जैसे बड़े पत्रकारों को भी इन चीज़ों का शिकार होना पड़ता है…और अच्छा भी लगा की आपने कम से कम अपनी बात को सबसे सामने तो रखा…