बहुजनों का सहारा लेकर खुद की दुकान चमकाने वालों की नीयत पर शक करना जरूरी है!

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Mohammad Faizan Tahir : दिलीप मंडल, बहुजन मीडिया और नेशनल दस्तक… ये पोस्ट पढ़ने का मन नहीं होगा लेकिन पढ़ने के बाद जो आपके मन मे होगा वो असली सवाल होगा कि क्या बहुजन की आवाज़ सच मे उठायी जा रही है या बहुजनों के नाम पर सिर्फ कमाई की जा रही है? दिलीप मंडल एक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार हैं और नेशनल दस्तक दलितों की आवाज़ बनकर उभरता पोर्टल न्यूज़ चैनल है दोनों ही के बारे में कुछ विवादित लिखना एक तबके से दुश्मनी करना है लिहाज़ा मेरा इरादा दोनों ही के बारे में कुछ गलत लिखने का नहीं है।

मेरा इरादा है दोनों को एक दिशा देने का जिससे दोनों ही भटक रहें हैं उम्मीद है कि ये पोस्ट दोनों तक जरूर जाएगी। दोनों वो प्रयास जरूर करेंगे जो अब उनकी पहली प्राथमिकता है लेकिन अगर दोनों अनजान बने रहे तो मुझे अफसोस है ये कहते हुए की यह एक पर्दाफ़ास होगा उस मानसिकता का जो स्पष्ट तरीके से बताएगी कि दिलीप मंडल और नेशनल दस्तक दोनों ही बहुजनों को सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ रहें हैं। यह तो सच्चाई है कि बहुजनों का इस्तेमाल तो सभी करते आये हैं। इसमें कोई शक शुबहा नहीं कि एक बार फिर बहुजनों का इस्तेमाल जारी है। चाहें दोनों ये दावा भी करें कि वह बहुजनों की आवाज़ उठाते हैं तो यह भी एक मात्र जरिया ही है बैंक बैलेंस बढ़ाने का।

बात शुरू होती है दिलीप मंडल जी के राजद प्रशिक्षण शिविर में उठाये सवाल से जब दिलीप मंडल जी ने लालू यादव की अगुवाई में मंच से खड़े होकर मीडिया के चरित्र का वर्णन करते हुए सवाल उठाया कि मीडिया में एक भी sc, st, obc का स्थाई पत्रकार या एंकर नहीं है, किसी के मालिक होने की तो बात ही छोड़ दीजिए फिर। मैंने दिलीप जी की पूरी स्पीच को सुना और कुछ भी लिखने के पहले दिलीप जी के फेसबुक वॉल का भी पूरा जायज़ा लिया जहां मुझे हैरान कर देने वाला सच ये मिला कि दिलीप जी के तार नेशनल दस्तक से कुछ इस तरह से जुड़े हैं कि दिलीप मंडल जो अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं, नेशनल दस्तक उसी पोस्ट पर एक स्टोरी बनाकर ज़ोर देकर चलाता है।

नेशनल दस्तक का वॉइसओवर आर्टिस्ट पूरे दमखम के साथ बोलता है दिलीप मंडल ने फ़लां मामले में अपने फेसबुक पेज पर लिखा….। आप जब नेशनल दस्तक और दिलीप मंडल के आपसी संबंध को समझने की कोशिश करेंगे तो आप दोनों के बीच अम्बेडकरवादी विचारधारा का संबंध नहीं बल्कि व्यावसायिक सम्बन्ध स्थापित होता पाएंगे जिसकी बिसात है बहुजन समाज मतलब दलित वर्ग। यह बात मैं इसलिए भी कह सकता हूं क्योंकि दिलीप मंडल के वॉल पर आप वो तमाम ख़बरे पाएंगे जिनसे दिलीप मंडल का ताल्लुक है जबकि यदि हम बहुजन समाज के उत्थान के लिहाज से देखे तो नेशनल दस्तक ने लगभग ज़्यादातर स्टोरी दलित मुद्दे पर ही कि हैं फिर दिलीप मंडल सभी स्टोरी को अपने पेज पर जगह क्यों नहीं दे पाएं। नेशनल दस्तक के सभी पत्रकारों की तारीफ़ क्यों नही कर पाएं। सिर्फ उन्ही खबरों को शेयर किया जिनमे उनका जिक्र है या जिनके वो खुद लेखक हैं।

दिलीप मंडल मंच से खड़े होकर sc, st, obc के पक्ष में बोलते हैं पर मुस्लिम समुदाय के लिए उनके पास कोई लफ्ज़ नहीं हैं। क्या ये माना जाए कि मंडल जी मुस्लिम विरोधी हैं? या फिर उन्हें लगता है कि मुस्लिम दलितों के मुकाबले ज्यादा समृद्ध और खुश हैं देश में? ये बात यहीं खत्म नहीं हो जाने वाली है। दोनों ही पर बहुजनों का सहारा लेकर दुकान चमकाने की नीयत का शक इसलिए भी होता है क्योंकि नेशनल दस्तक के एक पत्रकार शम्भू कुमार सिंह ये कहते सुनाई पड़ते हैं कि पूरी मेनस्ट्रीम मीडिया और छोटे बड़े चैनल मिलाकर 200 चैनल मोदी और योगी के गीत गाते हैं, चरण वंदना करते हैं, सिर्फ नेशनल दस्तक है जो बहुजनों के लिए काम करता है। शम्भू कुमार का कहना है कि कम से कम कोई तो हो जो दलितों मुस्लिमों के मुद्दे उठाए।

ख़ैर मैं सलाम करता हूं इस सोच को, इस प्रयास को, पर एक सवाल कटाक्ष की तरह रख रहा हूं ‘क्या नेशनल दस्तक ख़ुद को दलितों मुस्लिमों का बाप समझने लगा है? क्या नेशनल दस्तक की मंशा यही है कि बहुजनों के लिए सिर्फ नेशनल दस्तक ही ईमानदार हो सकता है? क्या नेशनल दस्तक ये मानता है कि बहुजनों का अकेला वही हितैषी है? बाकी अगर कोई बहुजनों मुस्लिमों की आवाज़ बनने का दावा करता है तो वह झूठा है? ये तो कुछ ऐसी मिसाल हो गयी कि एक तू सच्चा एक तेरा नाम सच्चा।

अगर इसका जवाब नेशनल दस्तक ये कहकर देता है कि नहीं वह अकेला बहुजनों मुस्लिमों का समर्थक नहीं है और भी कोई हो सकता है तो फिर दलित दस्तक के अशोक दास जी और नेशनल दस्तक का झगड़ा क्यों सामने आया? इससे यही मालूम होता है कि दोनों में से कोई एक है जो दूसरे के विरुद्ध है। इसका जवाब साफ है कि अशोक दास नेशनल दस्तक को बनाने वाले हैं तो भला वो क्यों अपनी ही संस्था के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। जाहिर है कि यह कर्मकाण्ड नेशनल दस्तक ही कर सकता है जिसके पीछे वजह सिर्फ एक ही हो सकती है- बहुजनों मुस्लिमों के नाम पर चैनल चलाकर आने वाली कमाई।

आप खुद ही सोचिए समुदाय के हिसाब से मुस्लिम और दलित दो ही समुदाय हैं जिनके साथ देश के कोने कोने में बद से बदतर सलूक किया जारहा है। अब इसी मुद्दे पर नेशनल दस्तक स्टोरी करता है और वाहवाही लूटता है, कमाई करता है। फिर इसी मुद्दे पर अशोक दास पत्रिका जारी करते हैं। फिर इस समुदाय पर दिलीप मंडल दांव खेलते हैं। अब आप समझ सकते हैं “एक अनार सौ बीमार”।  मुझे किसी से परेशानी नहीं है। मुझे परेशानी है बहुजनों मुस्लिमों को इस्तेमाल करने वालो से। अब आप वापस आइए शम्भू कुमार के बेहूदा से जवाब पर जिससे शक गाढ़ा होता है कि ये लोग दलितों मुस्लिमों का इस्तेमाल रहे हैं।

नेशनल दस्तक के पत्रकार शम्भू कुमार सिंह के जवाब पर एक सवाल आप भी कीजिये कि अगर 200 चैनल मोदी योगी की वंदना कर रहे हैं, महिमामण्डन कर रहें हैं तो फिर दलितों मुस्लिमों के लिए सिर्फ एक ही चैनल क्यों? एक नेशनल दस्तक ही क्यों दलितों मुस्लिमों के लिए, 200 ना सही, पर कम से कम 50 चैनल तो खुलने दीजिये। क्यों प्रतिस्पर्धा कर रहें हैं आप ‘टेढ़ी उंगली’ की श्वेता यादव से, ‘दलित दस्तक’ के Ashok Das से… ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा जब कोई नया चैनल खुलेगा तो दिलीप मंडल और नेशनल दस्तक उनसे भी मुकाबला करेंगे…

ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि सिर्फ नेशनल दस्तक ही दलितों का सच्चा ईमानदार चैनल है क्योंकि दिलीप मंडल मेनस्ट्रीम मीडिया में या राजनीति में अपनी किसी बड़ी जगह को मुकम्मल करने के लिए यह मुद्दा उठाते रहेंगे कि मीडिया में sc, st, obc का ना कोई स्थाई पत्रकार है ना एंकर। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो ये देखना होगा कि व्यावसायिक सम्बन्धों पर रुके नेशनल दस्तक और दिलीप मंडल कब दूसरे दलित और मुस्लिम की आवाज़ उठाने वाले चैनल के साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे क्योंकि दिलीप मंडल जिस फिक्र को मंच की रौनक देखकर उगलते हैं उस फिक्र का कोई बड़ा विकल्प इन्हीं चैनलों से निकलेगा जब दलित और मुस्लिमों की अपनी एक अलग मीडिया होगी जिसका हर पत्रकार हर एंकर sc, st, या obc से होगा और स्थाई होगा. नोट- दिलीप मंडल, शम्भू कुमार सिंह और नेशनल दस्तक की मालिक डॉली कुमार खुद दलित नहीं हैं. ऐसे में दलितों के हित की बात मानवीय भावना कम, व्यवसाय ज़्यादा लगती है.

पत्रकार मोहम्मद फैजान ताहिर की एफबी वॉल से.



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