राकेश दीवान-
पत्रकारों की बिरादरी के सरदार शीतला बाबू आज हम सबको सदा के लिए विदा कह गए। फैजाबाद से प्रकाशित होने वाले अपने अखबार ‘जनमोर्चा’ के जरिये उन्होंने जो कमाल किया वह ऐतिहासिक है। अलग – अलग समय में उनके साथ बिताया वक्त याद आ रहा है। उन्हें मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।
अनिल कुमार सिंह-
भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य एवम जनमोर्चा दैनिक के संपादक रहे 94 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार बाबू शीतला सिंह जी का आज अपराह्न निधन हो गया। मंदिर आंदोलन के दौर से लेकर अब तक उन्होंने सहकारिता के आधार पर चलने वाले जनमोर्चा दैनिक की विश्वसनीयता बनाए रखी थी । हिंदी पत्रकारिता के चौतरफा पतन के दौर में एक समय ऐसा भी था जब अयोध्या से सिर्फ़ एक अखबार सही खबरें लिख रहा था । सच्ची सूचनाएं साझा कर रहा था । उनके जाने से न सिर्फ हिंदी के प्रतिबद्ध पत्रकारिता जगत की अपूरणीय क्षति हुई है बल्कि जनमोर्चा के संस्थापक संपादक और स्वतंत्रता सेनानी महात्मा हरगोविंद के दिखाए धर्मनिरपेक्ष और ईमानदार, त्याग के पथ पर चलने वाली संस्कृति भी विलुप्त हो गई है । फैजाबाद की कई पीढ़ियों को उन्होंने पत्रकरिता का प्रशिक्षण दिया था ।उनकी स्मृति को नमन ।
उर्मिलेश-
शीतला बाबू नहीं रहे! उन्हें इसी तरह मैं संबोधित करता था. उनसे हमारा परिचय काफ़ी बाद में हुआ पर उन्हें वर्षों से जानता था. वह दशकों से हिन्दी पत्रकारिता के सुपरिचित नाम थे इसलिए उन्हें हर कोई जानता था. परिचय होने के साथ ही हमारे रिश्ते बहुत जल्दी प्रगाढ हो गये. उनके अख़बार ‘जनमोर्चा’ के वार्षिक समारोह में एक या दो बार अतिथि भी रहा. शीतला बाबू के लिए ‘जनमोर्चा’ सिर्फ़ अख़बार या मीडिया व्यवसाय नहीं था. उनके लिए वह एक बड़ा मक़सद था. जीवन का सबसे ज़रूरी कर्म और धर्म था!
संभवतः वह सबसे लंबे समय तक संपादक रहने वाले पत्रकार थे. सन् 1963 में वह अख़बार के संपादक बने. अपनी लंबी संपादकीय पारी में कुछ वर्ष प्रेस कौंसिल के सदस्य भी रहे. हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन के भी वह क ई वर्ष अध्यक्ष रहे. पत्रकारिता और प्रेस की स्वतंत्रता व नागरिक अधिकारों के लिए वह आजीवन सक्रिय रहे.
पिछले कई दशकों से जिस फ़ैज़ाबाद(अयोध्या) को हिन्दुत्ववादियों ने अपने राजनीतिक-अभियान के एक प्रमुख केंद्र में तब्दील कर रखा है, वहाँ शीतला बाबू आजीवन वस्तुपरक और जन-पक्षधर पत्रकारिता की सबसे निर्भीक और बुलंद आवाज़ बने रहे. अयोध्या के ‘रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद‘ पर उनकी मशहूर किताब ‘अयोध्याः रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच’(2018) आज़ादी के बाद के सबसे बड़े विवादों में शुमार किए जाने वाले विवाद का सच तथ्यों और साक्ष्यों
के साथ सामने लाती है. अपनी तरफ़ से उन्होंने किताब की एक प्रति मुझे भेंट की थी. इसकी न सिर्फ़ मैंने समीक्षा की अपितु अपने एक वीडियो का भी इसे विषय बनाया.
उनसे जुड़े बहुत सारे प्रसंग हैं, जिन पर लिखने की इच्छा है. इनमें एक दिलचस्प प्रसंग मुलायम सिंह यादव और शीतला बाबू के बीच के एक संवाद का है, जिसका विषय अपन थे. ऐसे कई प्रसंग और कई यादें हैं उनकी. आप हमेशा याद आयेंगे शीतला बाबू! आप जैसे लोग इस दुनिया से जाने के बाद भी लोगों के बीच जीवित रहते हैं. सलाम शीतला बाबू!
शिवा शंकर पांडेय-
अलविदा शीतला सिंह जी ! इस नश्वर संसार में जो भी आया है, उसका जाना तो निश्चित ही है। जन्म के बाद मृत्यु तय है। सो, शीतला सिंह जी को भी जाना ही था। अभी थोड़ी देर पहले वरिष्ठ पत्रकार व हमारे प्रिय शुभ चिंतक सुरेंद्र प्रताप सिंह की एफबी वॉल से पता चला कि पांच दशक से ज्यादा पत्रकारिता में झंडा बुलंद रखने वाले कद्दावर पत्रकार शीतला सिंह जी अब हम लोगों के बीच नही रहे।
सन 1993 तक केवल नाम से ही जानते थे। इसी दौरान प्रयागराज से जनमोर्चा अखबार निकला। हालांकि, इसके पहले भी कुछ महीने सांध्य अखबार के रूप में जनमोर्चा निकल चुका था। दूसरी बार मॉर्निंग एडिशन की तैयारी थी इसलिए फुल प्लान और जबरदस्त तरीके अख्तियार किए गए। नगर के दिग्गज पत्रकार के रूप में पहचान रख चुके श्री प्रभात ओझा, राजेश सरकार, बैजनाथ त्रिपाठी, कृष्णानंद त्रिपाठी, सिद्धनाथ द्विवेदी, साधना मिश्रा आदि की एडिटोरियल टीम थी।
मैं भी टीम का करीब सात महीने तक हिस्सा रहा। बीपी शुक्ला छोड़कर जा चुके थे। प्रदीप तिवारी वाराणसी से आए थे। वे प्लानर अच्छे थे। अंशु मालवीय, उत्पला और देवेंद्र सिंह भी टीम के महत्वपूर्ण हिस्सा बने। सिविल लाइंस एजी ऑफिस के पास किताब महल में जनमोर्चा का ऑफिस था। यहीं दो बार शीतला सिंह जी को निकट से देखने और समझने का मौका मिला था। शीतला सिंह जी की पत्रकारीय दृष्टि बड़ी साफ और क्लियर थी। वैचारिक दृष्टि भले ही मेल न खाती हो पर उनका तर्क और उदाहरण सामने वाले को प्रभावित जरूर करता था। एडिटोरियल टीम के साथ मीटिंग करते तो एकदम घुलमिल जाते। अपनी ही टीम के चिर परिचित हिस्सा लगते। हालांकि, हमारा सात आठ महीने का ही जनमोर्चा का साथ रहा। लोकल स्तर पर बिखराव शुरू हो गया था। फ्रेंचाइजी का प्रयोग बिखर रहा था। जनमोर्चा तो प्रयागराज से बंद हो गया पर तीन चार लोगों का व्यवहार और कार्यशैली ने जबरदस्त प्रभावित किया। प्रदीप तिवारी का याराना, प्रभात ओझा सर की ठिठोली, उनका स्नेह, राज कुमार पांडेय की मेहनत और शीतला सिंह जी का जज्बा।
उनके निधन ने एक सवाल खड़ा किया है, आखिर फैजाबाद में शीतला सिंह की जगह कौन लेगा ? उनकी ऊंचाइयों को कोई छू भी पाएगा या नहीं ? सवाल यह भी है कि फैजाबाद सरीखे एक सामान्य जिले में रहते हुए शीतला सिंह ने जिस तरीके जीवट भरा पत्रकारीय जीवन जिया उसकी भरपाई कोई कर भी पाएगा या नहीं …? अलविदा सर।
सुदीप ठाकुर-
हिंदी पत्रकारिता को सत्ता और कॉर्पोरेट के गठजोड़ से बचाए रखने वाले दिग्गज पत्रकार, संपादक शीतला सिंह जी के निधन की खबर है। नब्बे के दशक में पहली बार उनसे रायपुर देशबंधु के दफ्तर में मुलाकात हुई थी। दिल्ली में अमर उजाला से जुड़ने के बाद उनसे दोबारा संपर्क हुआ। दिल्ली में कुछ मुलाकातें भी हुई। वह लंबे समय तक प्रेस काउंसिल के सदस्य भी रहे। सहकारिता पर चलकर उन्होंने जनमोर्चा जैसा अखबार निकालकर दिखाया कि पूंजी के बंधन से मुक्त होकर भी पत्रकारिता की जा सकती है। सादर नमन!
शीतल पी सिंह-
फैजाबाद/ अयोध्या… “जनमोर्चा” नामक सहकारिता के बल पर पिछले छ: दशक से चलने वाले दैनिक समाचार पत्र के संस्थापक/ संपादक श्री शीतला सिंह का निधन हो गया है।
उत्तर भारत के वर्तमान परिदृश्य में पत्रकारिता की जो घटिया स्थिति है उसके विपरीत सिद्धांतों पर जीवन जीने वाले वे अपनी वय के इकलौते योद्धा थे।
सत्यहिंदी के शुरुआती दिनों में अपनी अयोध्या मसले की अनूठी किताब के एक इक्सक्लूसिव तथ्य को उन्होंने मुझे सौंपा था । हमने उस पर विशेष प्रोग्राम किया था।
बड़ी उम्र पाई उन्होंने और उसे आख़िर आख़िर तक जीवंत रक्खा । अपने शरीर को मेडिकल विद्यार्थियों के शोध के लिए विज्ञान को समर्पित कर गये। सादरांजलि।