अरविंद कुमार सिंह-
भाई शुकदेव प्रसाद के निधन की खबर से मन बहुत खिन्न है। उनसे 1981 में इलाहाबाद में संपर्क बना था। पहली बार उनकी राजेश खन्ना जैसी स्टाइल देख मुझे लगा था कि शायद वे कलाकार भी हैं।
आरंभिक कई सालों तक खिंचा उनके पास जाता रहा। लिखते वे विज्ञान विषयों पर लेकिन ज्ञान बहुत से विषयों का था। इसी नाते एलेनगंज चौराहे से बैठ कर उन दिग्गजों को भी चुनौती देते रहते थे, जिनको गुमान था कि वे सर्वशक्तिमान हैं।
वे युवा लेखकों को मदद करते थे। उनकी सबसे गहरी दोस्त किताबें थीं। किताबें ही किताबें इनके आसपास बिखरी रहतीं। मेरे प्रति अधिक अनुराग की एक वजह शायद यह भी थी कि हम दोनों एक ही माटी यानि बस्ती जिले की उपज थे। उनकी जाने कितनी चिट्ठियां मेरे पास सहेज कर रखी हैं। उनका जाना विज्ञान पत्रकारिता के क्षेत्र के लिए गहरी क्षति है। सादर नमन।