श्याम मीरा सिंह युवा पत्रकार हैं। खूब पढ़ाई लिखाई किए हैं। जेएनयू और आईआईएमसी से शिक्षित दीक्षित हैं। अपने जन सरोकारी लेखन और साहसपूर्ण आज़ाद पत्रकारिता के लिए फेसबुक पर लोकप्रिय हैं। श्याम ने आज फेसबुक पर एक सूचना पोस्ट की, आजतक जॉइन करने की। इसके बाद कमेंट बॉक्स में शुभकामनाओं और विरोध का तांता लग गया। विरोध करने वालों ने गोदी मीडिया के रूप में कुख्यात आजतक चैनल में जॉइन करने पर नापसंदगी जाहिर की।
अंत में एक लंबा कमेंट लिखकर श्याम मीरा सिंह ने अपना पक्ष रखा जो यूँ है-
आप सबकी बधाइयों के लिए बहुत शुक्रिया और दिल से आभार। बहुत मन है कि सबको एक एक करके शुक्रिया कहूँ पर क्या ही कहूँ।
जिस तरह का व्यवहार बीते वर्षों में मीडिया का रहा है उस हिसाब से आप सबकी चिंताएँ और नाराज़गी जायज़ ही नहीं बल्कि बहुत कम है। मेरी निजी कोशिश रहेगी कि देश के नागरिकों और उसके शहरियों के लिए कुछ अच्छा लिखने को मिल सके तो लिखूँ। जहां अपने लोगों के हित के लिए कुछ कहने का मौक़ा मिल सके तो कहूँ। जहां स्टैंड लेना पड़े वहाँ स्टैंड भी लूँ। हम अपने घर-परिवार ही नहीं बल्कि अपने गाँव की पहली पीढ़ी के वे लोग हैं जिन्होंने शहर देखे, यहाँ के लोग देखे, बुरा-भला जाना, कभी निराश हुए, कभी हैरान हुए, कभी हिम्मत बांधी। शहरों में बहुत अधिक जगह नहीं है जहां अपनी बात कह सकें, जहां अपने मन का लिख सकें, कई बार घर ही जाने को जी हुआ जहां मम्मी अपने हाथों से खाना खिलाती जहां पिता दो बार सर पर हाथ फेरते. पर अब दिल्ली में आ गए हैं तो आ ही गए हैं, अगर पीछे लौट गए तो किसी पुलिस चौकी में कुचल दिए जाएँगे, अगर कुछ पल यहाँ ही कहीं ठहर गए, रुक गए, झुक गए तो क्या पता कुछ पता निकले, कोई राह निकले, कोई सूरज उगे, कोई नई पृथ्वी बने। मैंने शुरुआत में ही अपने कुचले जाने का चुनाव न करके “उम्मीद” का रास्ता चुना है। क्या पता कुछ अच्छा हो।
बाक़ी गाँव में अक्सर पिता जी मैथिली शरण गुप्त की एक कविता सुनाते थे
“निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को,
कुछ काम करो, कुछ काम करो”
देखें लोगों की कुछ प्रतिक्रियाएँ-