-संजय कुमार सिंह-
इमरजेंसी मुक्त डबल इंजन वाले राम-राज्य का हाल
जमानत देने से आसमान नहीं गिर पड़ेगा और नहीं देने से कहां गिरा….
एक पत्रकार के खिलाफ हत्या के लिए मजबूर करने का मृत्यु पूर्व बयान और अपने प्रभाव के दुरुपयोग का परिस्थिजन्य साक्ष्य है। पर उसे जमानत मिल गई क्योंकि जमानत देने से आसमान नहीं गिर पड़ेगा। दूसरे पत्रकार को रिपोर्टिंग से रोक दिया जाना और उसपर हवा-हवाई आरोप। जमानत के मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख – दिलचस्प है। उसे जमानत नहीं मिलने से आसमान नहीं गिर रहा है इसलिए जमानत नहीं मिल रही है। कहने को हर नागरिक बराबर है पर असल में हर पत्रकार भी बराबर नहीं है। बेशक यह स्थिति चिन्ताजनक है आप कुछ नहीं कर सकते हैं। इसलिए तनाव मत पालिए। मस्त रहिए। ताली बजाइए। लेकिन जान लीजिए कि अगर आप बड़े आदमी नहीं हैं तो कहीं कोई सुनवाई नहीं है।
आप अपनी बात सोशल मीडिया पर भी नहीं डाल सकते हैं उसपर दबाव बनाया जाता है कि वह ऐसी पोस्ट हटा दे। और आपकी पोस्ट पर सोशल मीडिया संचालकों के नियंत्रण का आरोप तो है ही। यह इमरजेंसी मुक्त रामराज्य है। डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश के योगीराज के बारे में आप पढ़ते रहते हैं। शिवसेना किसी पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई करे तो पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल उसके खिलाफ ट्वीट कर सकता है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार या डबल इंजन वाली कोई सरकार ऐसा करेगी तो पूरी तरह सन्नाटा रहेगा। गोदी मीडिया खबरें भी संतुलित नहीं करेगा। जिसकी सीख अक्सर सरकार समर्थक देते रहते हैं। यह अलग बात है कि सरकार विरोधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे संतुलित खबरें लिखें बाकी लोग टीआरपी वाली खबरें करते हैं।
अर्नब गोस्वामी को कैसे जमानत मिली आप जानते हैं। तभी से केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन का मामला भी चर्चा में है जिसे हाथरस की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय गिरफ्तार कर लिया गया था। जो हो चुका वह सब आप जानते हैं या नहीं भी जानते हैं तो अब उसका कोई खास महत्व नहीं है। अब दिलचस्प यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा गया था और उत्तर प्रदेश सरकार ने जो जवाब दाखिल किया है वह जजों तक नहीं पहुंचा। इसलिए हफ्ते भर बाद की तारीख पड़ गई। हालांकि केरल के पत्रकार संगठन केयूडब्ल्यूजे के वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का जवाब उन्हें भी नहीं मिला है। फिर भी तारीख पड़ गई। फिलहाल, उत्तर प्रदेश सरकार ने कप्पन के वकील को जेल में कप्पन से मिलने की इजाजत दे दी है।
कप्पन पर पीएफआई से जुड़े होने का आरोप है जो देश में प्रतिबंधित नहीं है। हालांकि उसने इससे इनकार किया है। ऐसे में पीएफआई से जुड़े होने के आरोप भर से इतने लंबे समय तक गिरफ्तारी और जमानत नहीं मिलना हकीकत है। खास कर अर्नब गोस्वामी की जमानत मिलने के बावजूद। आप जानते हैं कि अर्नब के मामले में मुंबई हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चली और सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन में जमानत दे दी थी जबकि उसपर हत्या के लिए मजबूर करने का दो साल पुराना मामला है जो संभवतः दबाव और प्रभाव में बंद कर दिया गया होगा। अब उसे जमानत मिलने से उसके प्रभाव का पता चल गया है और इसका सीधा असर पुराने मामले में पड़ेगा। लेकिन कप्पन के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। फिर भी …. अर्नब की रिपोर्टिंग आपने देखी अब देखिए यह खबर आपके अखबार में है और कितनी? जय हो।
इस मामले में द टेलीग्राफ अखबार में आज सिद्दीक कप्पन की फोटो के साथ पहले पन्ने पर पांच कॉलम में खबर है। अंदर के पन्ने पर इसका टर्न भी चार कॉलम में है। पहले पन्ने पर शीर्षक है, कप्पन की पत्नी ने पूछा : क्या वे आरएसएस से जुड़े पत्रकारों को भी गिरफ्तार करेंगे? इस खबर के टर्न का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता, कप्पन पीएफआई का पदाधिकारी है। पीएफआई पोपुलर फ्रंट पर इंडिया है और द टेलीग्राफ ने लिखा है यह खुद को एक सामाजिक राजनीतिक आंदोलन कहता है और चाहता है कि मुसलमानों तथा हाशिए पर कर दिए गए लोगों का सशक्तिकरण हो। इसी संदर्भ में कप्पन की पत्नी ने आरएसएस से जुड़े पत्रकारों की चर्चा की है।
अगर मुसलमानों और हाशिए पर कर दिए लोगों के लिए काम करने वाला संगठन या उसके पदाधिकारी को अपराधी बनाया जा सकता है तो आरएसएस का इतिहास कोई बेदाग नहीं है। वैसे भी किसी संगठन का पदाधिकारी होना ही अपराधी होना हो तो ऐसा संगठन चल क्यों रहा है? द टेलीग्राफ ने इसपर लिखा है, मोदी सरकार ने इसपर प्रतिबंध के बारे में अपने पहले ही कार्यकाल से विचार कर रही है। पर अभी प्रतिबंध नहीं है।