नई दिल्ली । अक्सर ऐसी खबरें सुनने और पढ़ने में आती रहती है जब कोई दलाल या जमीन मालिक एक ही प्लॉट कई लोगों को धोखे में रखकर बेच डालता है और फिर जब उनमें से कोई एक प्लॉट की चारदीवारी कराना शुरू करता है तो प्लॉट के दूसरे मालिक भी अपने अपने कागज लेकर सामने आ खड़े होते हैं। लेकिन तब तक जमीन मालिक या दलाल उनका पैसा लेकर रफूचक्कर हो चुका होता है। लेकिन क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि टीवी चैनलों की दुनिया में भी इन दिनों ऐसा खेल खूब चल रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। कहने को सरकार ने न्यूज चैनलों का लाइसेंस देने के लिए कड़े नियम कानून बना रखे हैं लेकिन मंत्रालय में सक्रिय दलालों और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से कुछ न्यूज चैनलों का लाइसेंस ऐसे लोगों के हाथों में चला आया है, जिनके ऊपर कई संगीन आरोप हैं। आश्चर्य नहीं, अगर कभी यह खबर सामने आये कि किसी चैनल का संचालन कोई अंडरवर्ल्ड का डॉन कर रहा है।
ताजा मामला, एसएमबीसी इनसाइट न्यूज चैनल का है। चैनल के मालिक हैं डॉ. प्रकाश शर्मा। डॉक्टरेट की डिग्री के अलावा इनके पास और भी कई डिग्रियां हैं। एसएमबीसी इनसाइट की शुरुआत चार साल पहले जबलपुर से इन्होंने की थी। इनकी कंपनी ‘सी मीडिया सर्विस प्रा. लिंमिटेड’ को पूर्व में ‘वॉयस ऑफ सेंट्रल इंडिया’ के नाम से न्यूज चैनल शुरू करने की अनुमति दी गई थी। लेकिन उन्हीं दिनों एक और चैनल आया था- वॉयस ऑफ इंडिया। उसने लोगों से खूब पैसे ठगे। ठगी के शिकार लोगों को लगा कि वॉयस ऑफ इंडिया ने ही अपना नाम बदल कर वॉयस ऑफ सेंट्रल इंडिया कर दिया है, सो कुछ लोग तगादा करने जबलपुर पहुंचने लगे तो प्रकाश शर्मा ने आनन-फानन में चैनल का नाम बदल कर एसएमबीसी इनसाइट कर दिया यानि बीबीसी के टक्कर का नाम। सी मीडिया ब्राडकास्ट कारपोरेशन। जबकि कंपनी का नाम है सी मीडिया सर्विसेज प्रा. लिमिटेड।
खैर, जबलपुर में चैनल एक साल में ही हांफने लगा तो प्रकाश शर्मा ने किसी केडिया ग्रुप से पांच करोड़ रुपये चैनल में लगवा लिये। केडिया ग्रुप की शर्त थी कि चैनल नोएडा से चलाया जाये, सो लाखों रुपये खर्च कर चैनल का नया दफ्तर नोएडा में खुल गया। केडिया के पांच करोड़ कहां खर्च हुए, यह किसी को नहीं मालूम। जानकार बताते हैं कि इस रकम का एक बड़ा हिस्सा लोग दाब कर बैठ गए। 4 महीने में ही केडिया ग्रुप को अहसास हो गया कि चैनल के नाम पर सिर्फ फर्जीवाड़ा हो रहा है तो उन्होंने करोबार से खुद को अलग कर लिया। मजेदार बात यह है कि नये शेयर होल्डरों के रुप में केडिया बंधुओं के बारे में डा. प्रकाश शर्मा ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नहीं दी, जो कि नियमानुसार जरूरी था। केडिया ग्रुप अपने पैसे की वसूली के लिए कोर्ट गए तो यह मामला खुला। अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी हरकत में आया है।
इस बीच केडिया ग्रुप के अलग होते ही डॉ. प्रकाश शर्मा ने अलग अलग लोगों से पैसों की वसूली शुरू कर दी। हर किसी को सब्जबाग दिखाया गया। इनमें से एक हैं आजाद खालिद। बेचारे सहारा के बाद लंबे समय़ से बेरोजागार थे। चैनल उन्हें ठेके पर दे दिया। आजाद खालिद ने तब जाकर चैनल की आईडी बांटने का कारोबार किया। लेकिन उनका कारोबार दो महीने में ठंडा पड़ गया। तब प्रकाश शर्मा ने उन्हें चैनल से बाहर कर एक भारद्वाज जी के हवाले चैनल कर दिया। भारद्वाज जी कोई अखिल भारतीय ब्राहमण सभा चलाते हैं। चंदे से खूब पैसा आता है जो कुछ दिन चैनल ब्राहमण समाज के नाम पर चला। लेकिन दो महीने तक कर्मचारियों को पैसे नहीं मिले तो प्रकाश शर्मा ने उन्हें भी वाइस प्रेसिडेंट (नॉर्थ इंडिया) से चलता कर दिया। इस पूरे दौर में एक शख्स उदय चंद्र सिंह चैनल से बतौर नेशनल हेड जुड़े रहे। तभी देहरादून के एक पत्रकार सुशील खरे का अवतरण हुआ। उनहोंने एनबीएस कंपनी के माध्यम से डॉ. प्रकाश शर्मा से चैनल चलाने का समझौता किया जो कि लाइसेंसिग नियमों के खिलाफ है। प्रकाश शर्मा ने उन्हें भी सब्ज बाग दिखाये । पैसा उगाहने के चक्कर में उन्होंने न्यूज चैनलों के लिए बने सरकारी दिशानिर्देशों का भी खुलकर उल्लंघन किया। दिनांक 2 फरवरी 2016 को सी मीडिया सर्विसेज प्रा. लिमिटेड ने एनबीएस के साथ एक ज्वाइंट वेंचर का एग्रीमेंट किया, जिसके तहत चैनल का संपूर्ण संचालन एनबीएस को सौंप दिया गया। एग्रीमेंट पर सी मीडिया सर्विसेज प्रा. लिमिटेड के चेयरमैंन डॉ. प्रकाश शर्मा ने दस्तखत किये, जबकि एनबीएस की तरफ से सुशील खरे ने दस्तखत किये।
इस ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेट के मुताबिक चैनल के संचालन पर होने वाले सभी खर्च मसलन टेलीपोर्ट फी, बिल्डिंग किराया, बिजली बिल व स्टॉफ की सैलरी आदि एनबीएस को वहन करना था। टीवी चैनलों के प्रसारण के लिए तय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का अवलोकन से साफ है कि सी मीडिया सर्विसेज को एनबीएस के साथ इस तरह का एग्रीमेंट करने का कोई अधिकार नहीं था। टीवी चैनलों के प्रसारण के लिए तय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशानिर्देशों में साफ है कि जिस कंपनी या व्यक्ति के नाम लाइसेंस है उसके इतर कोई और किसी भी रुप में उसका संचालन नहीं कर सकता है और ना ही इस बारे में किसी तीसरे पक्ष से कोई करार हो सकता है (ARTICLE 5 PROHIBITION OF CERTAIN ACTIVITIES, (धारा 5.6)। लेकिन सी मीडिया सर्विसेड प्रा. लिमिटेड ने अपने और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बीच हुए लाइसेंसिग करार को ताक पर रख कर एक तीसरी कंपनी एनबीएस के साथ करार कर डाला, जो पूरी तरह से अवैधानिक और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तय दिशानिर्देशों के खिलाफ है। साक्ष्य के रुप में सी मीडिया सर्विसेज प्रा. लि. और एनबीएस के बीच 2 फरवरी 2016 को हुए करार की छाया प्रति देखी जा सकती है।
सुशील खरे के संज्ञान में जैसे ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के ये दिशानिर्देश आये उन्होंने इस बारे में सी मीडिया सर्विसेज प्रा.लिमिटेड के डॉ. प्रकाश शर्मा से अपना विरोध जताते हुए अपने साथ धोखाधड़ी की बात कही, तो उन्होंने जान माल के नुकासन की धमकी देते हुए तुरंत करार रद्द करने का नोटिस भेज दिया। डॉ. प्रकाश शर्मा को डर था कि सुशील खरे इसकी शिकायत मंत्रालय में कर सकता है, इसलिए उन्होंने करार रद्द करने का नोटिस भेजा। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। विवाद अभी सुलझा भी नहीं था कि एक तीसरे शख्स श्रीराम तिवारी की एंट्री हुई। भोपाल के श्रीराम तिवारी पूर्व सराकरी अफसर है। खुद को रिटायर्ड आईएएस बताते हैं, लेकिन ये भी प्रकाश शर्मा के सामने गच्चा खा गये।
प्रकाश शर्मा ने श्रीराम तिवारी को अब चैनल दे दिया है। श्रीराम तिवारी खुद को एसएमबीसी इनसाइट का एमडी भी बताते हैं, जूबकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। नियमानुसार जिसके नाम से लाइसेंस है अगर उसकी कंपनी में किसी तरह का बदलाव होता है तो उसकी जानकारी देनी जरूरी है। अब सुशील खरे चैनल का केबन खाली करने को तैयार नहीं हैं और श्रीराम तिवारी यहां से स्वराज एक्सप्रेस चैनल चलाना चाहते हैं। सुशील खरे इस बात पर अड़े हैं कि एसएमबीसी का नाम इनसाइट इंडिया होगा। प्रकाश शर्मा के साथ करार में भी यह बात शामिल है। मंत्रालय में नाम बदलने के लिए फाइल भी बढ़ा दी गई है।
अब कर्मचारी इस बात को लेकर परेशान हैं कि वो किसके कर्मचारी हैं। प्रकाश शर्मा के, सुशील खरे के या फिर श्रीराम तिवारी के? तीनों के बीच चल रहे कानूनी विवाद और नोटिस वार के बीच चैनल के पूर्व नेशनल हेड उदय चंद्रा ने इस मामले में सबको सबक सिखाने की सबक ठानते हुए पूरा मामला सूचना एवं प्रसारण सचिव के सामने रख दिया है। उन्होंने एग्रीमेंट की कॉपी भी लगा दी है, जिससे मंत्रालय में हड़कंप है। एसएमबीसी के कुछ कर्मचारियों ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी पत्र लिख मारा है। पत्र में अपील की गई है कि इस मामले में संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिये जायें ताकि चैनल लाइसेंस लेकर उन्हें किराये पर चलाने के गोरखधंधे का पर्दाफाश हो सके। इस वक्त देश में कम से कम 50 चैनल लीज कर चल रहे हैं जो कि कानूनी रूप से गलत है।
बहरहाल, एसएमबीसी का लाइसेंस संकट में है। लेकिन सवाल उठता है कि फिलहाल चैनल का मालिक कौन है, यह कैसे तय हो? कर्मचारियों का वेतन कौन देगा, यह कैसे तय होगा? इस बीच डीएवीपी भी तमाम विवादों को देखते हुए इसकी मान्यता रद्द करने पर विचार कर रहा है, क्योंकि वहां भी किसी ने एसएमबीसी को लेकर आरटीआई लगा दी है।
Nishi Paswan
nishipaswan@gmail.com
Comments on “एसएमबीसी इनसाइट- चैनल एक, दावेदार अनेक… सो रहे हैं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अफसर”
सुनने में तो ये भी आया है कि अमिताभ ज्योतिर्मय जो यहाँ पहले एच आर हैड थे वो अब भी डॉक्टर शर्मा के करीबी माने जाते है और वो ही शर्मा को सपोर्ट करते है उसके ग़ैर क़ानूनी कामो में. उदय चन्द्र भी डॉक्टर शर्मा साथ उसके ग़ैर क़ानूनी कामों में बराबर का हिस्सेदार था. प्रखर मिश्र नाम के एक शातिर शख़्स (जो अपने को कई नेताओं का करीबी बताता था) ने भी एस एन बी सी का सी इ ओ बताकर चैनल को बेचने के नाम पर कई लोगो ठगा. प्रखर मिश्रा ने ही नवीन कसाना को मारकेटिंग हेड और देवेन्द्र प्रभात को पोलिटिकल एडिटर बनाया, जिसका भरपूर फायदा दोनों लोगो ने कई लोगो को मूर्ख बनाकर मोटी कमाई करके उठाया. इस फर्ज़ीवाड़ा के चलते कई लोगो को चुना लगाने का काम किया डॉक्टर शर्मा एण्ड गैंग ने.