एक तरफ पैसे का रोना, दूसरी तरफ बंट रही दक्षिणा, तीसरी तरफ चापलूसी न करने वालों की हो रही छंटनी….
मध्यप्रदेश के सतना जिले के व्हीकल टाइकून और हजार करोड़ के व्यापारिक समूह स्टार ग्रुप के मालिकाने हक वाले अखबार स्टार समाचार में पैसे की कमी का रोना रोया जा रहा है. अखबार के जीएम अनंत शेवड़े कर्मचारियों को अपने इस्तीफे की बात भी कह कर बरगला रहे हैं. प्रबंधन यह कह रहा है कि अखबार के पास पैसा नहीं है जिससे सैलरी दे पाना संभव नहीं है जबकि अधिकांश ऐसे कर्मचारी भी है जिन्हे तनख्वाह के अलावा वाउचर पेमेंट के नाम की चरण वंदन दक्षिणा प्राप्त हो रही है.
यही नहीं जिन कर्मचारियों को यह दी जा रही है उनका इंक्रीमेंट तक लफड़े में फंसा दिया गया है. जब भी कर्मचारी इंक्रीमेंट की मांग करते हैं उन्हे दक्षिणा से वंचित करने का फरमान सुना दिया जाता है.
इसमें कुछ ऐसे कर्मचारी भी उपकृत हो रहे हैं जो न काम के है न काज के. इसमें पहले कभी डीटीपी इंचार्ज रहे एक शख्स का नाम भी शामिल है जिन्हें इन दिनों आन पेपर कन्टेंट एडिटर बना दिया गया है. इनका हिन्दी का ज्ञान कक्षा पहली के विद्यार्थी जितना है.
एक शख्स कई वर्षों से कम्प्यूटर आपरेटर हैं जिन्हें डबल कॉलम सिंगल कॉलम खबर लगाने के अलावा कुछ नहीं आता है. इन्हें दो हजार रूपए का वाउचर केवल रात में अखबार का पीडीएफ सोशल मीडिया में डालने के लिए दिया जा रहा है! एक बंदा तो कल तक रेल टिकटों की दलाली करता था आज वह स्टार समाचार का हिस्सा है और इसे भी वाउचर पेमेंट मिल रहा है. इन नामों सहित 21 कर्मचारियों को तनख्वाह के अलावा वाउचर पेमेंट की जा रही है.
गुड बुक बैड बुक का खेल चलता है यहां… कई कर्मचारी निकाले
स्टार समाचार के प्रबंधन ने बैड और गुड बुक बनाकर रखी है. इसमें सबसे ज्यादा हस्ताक्षेप संपादकीय विभाग के लिए किया जाता है. जीएम शेवड़े, संपादक शक्तिधर दुबे, कन्टेंट एडिटर अजय विश्वरूप का दखल रहता है. लॉकडाउन के बहाने 5 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसमें संपादक की बैड बुक में रहे सचिन त्रिपाठी, कन्टेंट एडिटर की बैड बुक में रहे दीपक शर्मा के अलावा आपरेटर अभिराज सिंह, विक्रम विश्वकर्मा,इंद्रसेन, यादवेन्द्र तिवारी और अजीत सिंह को बाहर कर दिया गया. इनकी सैलरी 10 हजार के अंदर ही थी. इनके साथ अनिल तिवारी को भी बाहर किया गया था लेकिन बाद में इन्हें वापस बुला लिया गया, यह कहते हुए कि गरीब हैं. अनिल कन्टेंट एडिटर के बैड बुक में कई सालों से चल रहे हैं. इसके बावजूद उन्होंने वापसी कराने में सफलता पाई है. 10 से ज्यादा कर्मचारियों को अभी भी बैड बुक में रखा गया है.