Dayanand Pandey : जब कोई सरकार अपनी किसी उपलब्धि का बखान विज्ञापन दे कर करने लगे तो समझ लीजिए कि यह उपलब्धि नहीं है सिर्फ़ सरकार का गुणगान है। उपलब्धि तो ज़मीन पर दिखाई देती है। उस के लिए किसी विज्ञापन की ज़रुरत नहीं पड़ती। खैर, उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी गन्ना किसानों को विज्ञापन में भुगतान दे रहे थे, ज़मीन पर नहीं।
कई रुपया बढ़ा कर मोदी एक पैसा पेट्रोल कम करने का पुण्य ले रहे हैं अलग से। सो जनता ने कैराना सहित तमाम जगहों पर अपना काम संपन्न कर दिया है। आप देते और गाते रहिए अपना विज्ञापन। कमाते रहिए पेट्रोल एक पैसे कम करने का पुण्य।
Daya Sagar : कैराना के नतीजों के बड़े संकेत हैं। कैराना बीजेपी की चुनाव राजनीति की प्रयोगशाला था। कैराना टेस्ट केस था। देश के आगामी चुनाव का। तमाम कोशिशों के बावजूद कैराना में चुनाव हिन्दू मुस्लिम नही हो पाया। जबकि कैराना में साम्प्रदायिक विभाजन के सारे तत्व मौजूद थे। वहॉं कुछ महीनों पहले दंगे हुए थे। भाजपा के ख़िलाफ़ मुसलमान उम्मीदवार था।
योगी ने जिन्ना के सवाल पर चुनाव लड़ा। पॉंच लाख मुसलमान थे। यानी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सारे तत्व। फिर भी कार्ड नही चला। कैराना में अगर साम्प्रदायिक विभाजन नही हुआ तो उगले साल उ प्र में नही हो पायगा। और उप्र में नही हुआ तो देश में भी नही हो पायगा। यानी जय श्री राम।
Sanjaya Kumar Singh : कैराना की हार से सीख! विधानसभा चुनाव के समय सांसद ने आरोप लगाया कि हिन्दू पलायन कर रहे हैं। संयोग से उनका निधन हो गया। उपचुनाव में पार्टी ने कुछ नया-अलग करने की नहीं सोची और हिन्दुत्व के उसी घिटे-पिटे रास्ते पर चलते हुए राजनीति में वंशवाद का विरोध करने के बावजूद सांसद की बिटिया को टिकट थमा दिया।
अगर पार्टी मानती थी कि हिन्दू पलायन कर गए तो जीतने के लिए किसी मुसलिम को उम्मीदवार बनाना था। पर पार्टी ने ऐसा नहीं किया। कारण चाहे जो हो। अब अगर भाजपा के आरोप को माना जाए तो हिन्दू वोट थे कहां? पर जीत मुसलिम उम्मीदवार को। और कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दू वोटों के बिना यह संभव ही नहीं है। इस तरह, मतदाताओं को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश नाकाम रही।
सांसद हुकुम सिंह का आरोप गलत हो सकता है। पर पार्टी ने उसे ना गलत कहा औऱ ना गलत मानते हुए कोई कार्रवाई की। जीतने की कोशिश भी नहीं की। बदले में एक सीट हार गई। ठीक है कि भाजपा को हराने के लिए सब मिल गए थे पर भाजपा की रणनीति (और चार साल की सेवा) भी ऐसी ही है कि मिलने या गठबंधन में कोई समस्या आड़े नहीं आएगी। भारतीय संस्कृति की रक्षा करने और यह सच बताने वाले कैराना के मतदाताओं को धन्यवाद।
वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय, दया शंकर शुक्ल सागर और संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.