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कश्मीर में ‘शीघ्र’ चुनाव की ‘गारंटी’ और 30 सितंबर तक कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश

प्रधानमंत्री जल्दी की ‘घोषणा’ कर रहे हैं, अखबारों में पहले पन्ने की लीड है। इसी दम पर 400 पार का नारा है। फिर भी आपको लगता है कि भाजपा ऐसा कर सकती है तो जाहिर है वह नरेन्द्र मोदी या भाजपा की राजनीतिक योग्यता नहीं है

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों में प्रधानमंत्री की उधमपुर-डोडा चुनाव क्षेत्र की जनसभा में उनके भाषण की खबर पहले पन्ने पर है। खबर यही है कि जम्मू कश्मीर को (फिर) राज्य का दर्जा मिलेगा कब तक यह अभी तय नहीं है। दूसरी खबर यह है कि विधानसभा चुनाव जल्दी होंगे। तीसरी खबर, टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है, सावन में मांस के वीडियो दिखाना मुगल मानसिकता दर्शाता है : प्रधानमंत्री”। आज पहले इन तीन खबरों की चर्चा कर लूं क्योंकि अखबारों में इन्हें अच्छा खासा महत्व मिला है। आप जानते हैं कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाया गया था और जम्मू व कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। उसके बाद से राज्य में चुनाव नहीं हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 23 को ही कहा था कि 30 सितंबर तक चुनाव कराये जाएं। चुनाव आयोग ने 4 जून तक के अपने कार्यक्रम की घोषणा कर दी है उसके बाद के चार महीने से कम समय में चुनाव आयोग को चुनाव कराना है।

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ऐसे में प्रधानमंत्री की घोषणा या भाषण का मतलब आप समझ सकते हैं। अखबारों ने प्रधानमंत्री की घोषणा छापी है लेकिन इंटरनेट पर मुझे दैनिक जागरण की एक खबर मिली। इसके अनुसार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि चुनाव कराना केंद्र की मजबूरी है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही चुनाव आयोग से कह चुका है। आप समझ सकते हैं कि अखबारों में प्रधानमंत्री की ऐसी बेमतलब की घोषणा नहीं छप रही होंती तो कोई दूसरी खबर होती, उमर अब्दुल्ला और कश्मीर के दूसरे नेता भी कुछ और कर रहे होते। लेकिन सबको एक मुद्दे में उलझा दिया गया है। यह अलग तथ्य है कि अखबारों ने मोदी को उनके ऐसे ही भाषणों या कवरेज से महान बना दिया है और ऐसे हालात बना दिये हैं जैसे मोदी का विकल्प ही नहीं है। सच यह है कि न तो वे खुद योग्य और सक्षम हैं और ना ही उनके साथ योग्य सक्षम लोगों की टीम है। सारा मामला पैसे और प्रचार का है। इसीलिए ना काम दिख रहा है ना आलोचना हो रही है।  

हिन्दुस्तान टाइम्स में कल प्रधानमंत्री का इंटरव्यू था। आज मणिपुर के मुख्यमंत्री का इंटरव्यू है। यह प्रधानमंत्री के इंटरव्यू की तरह लीड तो नहीं है लेकिन पहले पन्ने पर डबल कॉलम में है। शीर्षक है, मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए वार्ता शुरू : मुख्यमंत्री। आपको याद दिला दूं कि मणिपुर में हिन्सा मई में शुरू हुई थी। अभी तक उसपर कितनी खबरें छपी हैं आप जानते हैं पर चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को अपनी बात रखने के लिए मंच दिया गया है तो यह पत्रकारीय नैतिकता पर सवाल है। भले खबर तो खबर है मुख्यमंत्री ने साल भर बाद ही सही, इंटरव्यू जब देंगे तभी छपेगा। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज डबल इंजन वाले हरियाणा की एक ऐसी खबर भी है जो अमूमन पहले पन्ने पर नहीं होती है। यह खबर दुर्घटना की कल की खबर का फॉलो अप है। इसके अनुसार, पांच स्पष्ट चूक के कारण छह स्कूली बच्चों की मौत हुई। ये हैं 1) एक शराबी 120 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से बस चला रहा था 2) स्कूल और ड्राइवर ने बच्चों- अभिभावकों की बार-बार की चिन्ता को नजरअंदाज किया  3) बस का फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं था 4) बस का एक सहायक बस में नहीं था 5) स्कूल ईद के दिन खुला था जो राजपत्रित छुट्टी है। आप समझ सकते हैं कि  दुर्घटना कितने विभागों या किन लोगों की लापरवाही से हुई और यह क्यों संभव हुआ।

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प्रधानमंत्री के कल के भाषण से आज छपी खबरों का दूसरा शीर्षक है, राज्य का दर्जा जल्दी ही मिलेगा”। आप जानते हैं कि जम्मू कश्मीर पहले राज्य ही था। अनुच्छेद 370 हटाने के समय उसे दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। अब उसे फिर राज्य बनाने की घोषणा प्रधानमंत्री तब कर रहे हैं जब देश में चल रहे आम चुनाव के कारण आचार संहिता लागू है और केंद्र सरकार शायद ऐसा कुछ नहीं कर पाये। लेकिन मोदी की गारंटी का प्रचार है। देखिये क्या होता है। जो भी हो, केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फायदे क्या हुए, किसलिये बनाया गया था और उसके विरोध में लद्दाख में चल रहे आंदोलन की खबर अखबारों से लगभग गायब रही है। यही नहीं, मांग तो लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की भी है लेकिन उसपर कोई आश्वासन नहीं है। आज जो खबर है वह जम्मू व कश्मीर को फिर से पहले जैसा राज्य बनाने के लिए है या दोनों केंद्र शासित प्रदेशों को राज्य बना दिया जायेगा या लद्दाख को बनाया जायेगा और दूसरे को रहने दिया जायेगा यह स्पष्ट नहीं है।

इसके बावजूद भाजपा के मुख्य प्रचारक के भाषण को मिली प्रमुखता देखिये और समझिये। फिर भी आपको लगता है कि भाजपा 400 पार कर जायेगी तो जाहिर है वह नरेन्द्र मोदी और भाजपा की राजनीतिक योग्यता नहीं है। कुछ और है जो अभी मुद्दा नहीं है। आज प्रधानमंत्री के भाषण का तीसरा प्रमुख (शीर्षक वाला) मुद्दा है, सावन में मांस के वीडियो दिखाना मुगल मानसिकता दर्शाता है : प्रधानमंत्री”। अव्वल तो अभी सावन नहीं है, नवरात्र चल रहे हैं और रामनवमी आने वाली है। सावन पिछले साल जुलाई-अगस्त में खत्म हो गया होगा। भाजपाई ट्रवीटर ट्रोल तेजस्वी यादव के एक वीडियो से आहत हो गये और इसे इतना बड़ा मुद्दा बना दिया (क्योंकि कुछ और है ही नहीं) कि प्रधानमंत्री भी उसपर बोलने लगे। जरा तैयारी से बोलते तो सावन बोलते और मांस खाने को मुगलों से जोड़ते पर मंदिर तोड़ने वालों से जोड़कर अपने भाषण को ऐसा नहीं बनाते कि सुनना ही मुश्किल हो जाता। इसपर कांग्रेस नेता सुप्रिया त्रिनेत का एक ट्वीट चर्चा में है। कुल मिलाकर, मामला यह है कि अब वीडियो बनाना आसान है तो लोग बना देते हैं कि वे क्या खा रहे हैं या उन्हें अच्छा लगता है या क्या, कहां, कैसे खाते हैं।

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जाहिर है, यह उनके लिए है जिनकी दिलचस्पी है जिनकी नहीं है वे छोड़ ही सकते हैं। प्रधानमंत्री को अगर यह मुगल मानसिकता लगती है तो मुझे इसका विरोध (या इससे परेशान होना भी) तानाशाही मानसिकता लगती है। बात इतनी ही नहीं है। प्रधानमंत्री के भाषण का एक और मुद्दा अयोध्या के समारोह में विपक्ष का शामिल नहीं होना था। यह इंडियन एक्सप्रेस की खबर का उपशीर्षक है। आप जानते हैं कि भाजपा ने 80 के दशक में ही मंदिर का मुद्दा उठाया, बनाये रखा, उसी से लोकप्रियता पाई और सत्ता में पहुंची। अब उसमें विपक्ष को क्यों शामिल होना चाहिये? नहीं शामिल होने पर प्रधानमंत्री साफतौर पर मतदाताओं को धार्मिक आधार पर भड़का रहे हैं। व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी कांग्रेस को हिन्दू विरोधी प्रचारित करता रहता है। चुनाव आयोग सब देख ही रहा है। अखबारों में छपने पर भी किंकर्तव्यविमूढ़ है।     

आप जानते हैं कि इस बार पुलवामा जैसा कुछ नहीं है और नरेन्द्र मोदी जो कह रहे हैं उसका उन्हें जवाब भी मिल रहा है और यह ठीक ही है। पर दुखद यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो इसे मूल खबर के साथ ही छापा है पर दूसरे अखबारों में यह नहीं है जबकि चुनाव के समय इसे ज्यादा महत्व मिलना चाहिये था या कह सकते हैं कि यही मुद्दा है। कांग्रेस ने कहा है, प्रधानमंत्री को बच्चों के पोषण पर ध्यान देना चाहिये। खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री ने अगर इस बात का हिसाब रखा है कि किस नेता ने किस महीने में क्या खाया तो उससे अलग हमने पोषण से संबंधित डाटा पर ध्यान दिया है। कांग्रेस के जयराम रमेशन ने प्रधानमंत्री के आरोप के जवाब में एक्स पर कहा है और यह सिंगल कॉलम में मुख्य खबर के साथ है। मुख्य खबर को अंग्रेजी अखबार ने रोमन हिन्दी में छापा है जो इस प्रकार है, जो जमानत पर हैं, ऐसे एक मुजरिम के घर जाके सावन के महीने में मटन बनाने का मौज ले रहे हैं। जाहिर है यह पुराना मामला है और मोदी जी इसे पचा नहीं पाये हैं। लेकिन खाना बनाना अगर मुश्किल काम है तो मटन बनाना मौज कैसे?

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कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा जमानत पर होने को जितना महत्व देती है उतना जज की मौत का जिम्मेदार होने और बचने के लिए जज को पुरस्कृत करने जैसे आरोपों को महत्व नहीं देती है जबकि असल और उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार यही है। सरकारी नीति से पैसे लेना और उसे चुनाव में खर्च कर देना तो भारत में  अघोषित व्यवस्था रही है। भले ही यह गलत हो पर उसे खत्म करने के लिए की गई इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था को न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक कहा बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला कहा जा रहा है। वसूली के आरोप सही लगते हैं और जिसे मुनाफा ही नहीं है उसने दान क्यों दिया और जब नई कंपनियां चंदा दे ही नहीं सकती हैं तो इलेक्टोरल बांड किसलिये खरीदा जैसे सवालों के जवाब तो नहीं ही हैं, मीडिया मांग भी नहीं रहा है।

बैंगलोर के रामेश्वरम कैफे में विस्फोट के 42 दिनों बाद उसके कथित मास्टरमाइंड को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार कर लिया गया है। आज सभी अखबारों में खबर तो है ही, भाजपा के अमित मालवीय का यह आरोप भी है कि ममता बनर्जी की सरकार में राज्य आतंकियों का सुरक्षित पनाहगाह बन गया है। मेरा मानना है कि जो स्थितियां हैं उसमें अपराधी कहीं भी छिप सकता है, इसके लिए किसी राज्य की सरकार को निशाना बनाना अनुचित है खासकर तब जब तमाम अपराध नहीं सुलझते हैं और अपराधी नहीं पकड़े जाते हैं। ऐसे में ममता बनर्जी ने कहा है, “वे यह कहने की हिमाकत करते हैं कि बंगाल सुरक्षित नहीं है। क्या आपकी दिल्ली सुरक्षित है? आपका उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार? क्या ये सब सुरक्षित हैं?” अगर हों भी तो प्रशासनिक लापरवाही का चंडीगढ़ का उदाहरण क्या कम है। उसपर भाजपा में चुप्पी क्यों है? डबल इंजन वाले हरियाणा के इस हाल पर क्या कहा जाये?

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