सुप्रिया श्रीनेत-
शाम का समय था, ऑफिस में कुछ ज़रूरी काम निपटा रही थी. तभी दोस्त शिवानी का फ़ोन आया. पहले सोचा बाद में बात करूँगी फिर फ़ोन उठा लिया. दो ही मिनट बात हो पाई थी- वही सब – और क्या चल रहा है, क्या हाल चाल वग़ैरह?
शिवानी ने भी शायद ऑफिस से ही फ़ोन किया था, पीछे TV की आवाज़ आ रही थी.
एकदम से बोली “अरे यार कोई चुप कराओ इसको”
ज़ोर से अपने असिस्टेंट से पूछा “रिमोट कहाँ है – बदलो यार. बोर मार दिया, पुराने थकेले रिकॉर्ड की तरह वही पुरानी बातें.”
फिर बड़बड़ाते हुए बोली “कोई बताओ इन्हें यार यह 2014 नहीं, 2024 है. कब तक वही घिसी पिटी स्क्रिप्ट पढ़ेंगे- और वैसे आजकल इतने थके हुए क्यों दिखते हैं? उम्र का असर भी लड़खड़ाती ज़बान पर अब साफ़ है.”
रिमोट ढूँढने की खटर पटर सुनाई दे रही थी, जो शायद मिल नहीं रहा था, ज़ोर से बोली “भाड़ में गया रिमोट – इस बार चैनल नहीं इनको बदल देंगे.”
मैंने हँस कर कहा- चल घर जाते वक्त कॉफ़ी पिलाती हूँ!
सुप्रिया श्रीनेत की इस पोस्ट पर आए कुछ कमेंट भी पढ़ें…
अनंत नाथ तिवारी-
अब तो ये हाल है कि किसी के मोबाइल पर इनकी आवाज़ सुनाई देती है तो bp बढ़ जाता है.
शाहिद अनवर-
उबाऊ, पकाऊ, थकाऊ बयान से अब ये व्यक्ति किसी को भी भ्रमित नही कर सकेंगे क्योंकि लोगों को इनकी वाहियात बातों से कोई फ़र्क़ नही पड़ता है.
हर्ष नारायण मिश्रा-
बहुत सही कहा था उसने, लेकिन 2014नहीं और पीछे से जाना चाहिए था, 1947या उसके बाद तक, ये 2024का भारत है मैडम, और कांग्रेस के काले कारनामों को सब जान चुके हैं, और आप भी टूटी नाव का पानी बाहर निकाल रही हैं, कूद कर बाहर आइए वरना टाइटैनिक की तरह सागर में विलीन हो जाएगी.
सुशांत झा-
दोस्त को पता है की आप फोन पर हैं, दोस्त को ये भी पता है की आप खुश कैसे होंगी। दोस्त चालाक है और चापलूस भी. वैसे 2 मिनट आपने बात की या सुनी, जितना लिखा है यही 2 मिनट से ज्यादा का है.
आशीष कुमार-
इस बार ऐसा बटन दबाऊंगा की गुजरात के रेलवेस्टेशन पर . चाय गरम चाय गरम करता हुआ नजर आएगा.