-संजय कुमार सिंह-
जेबकतरे को फांसी, हत्यारे को चेतावनी, सुधरने का मौका! कल की एक खबर इस प्रकार है, “मोदी सरकार ने पिछले एक साल में ढाई लाख से ज्यादा अखबारों के टाइटल रद्द कर दिए हैं साथ ही सैंकड़ों अखबारों को सरकारी विज्ञापनों के लिए डीएवीपी की सूची से बाहर कर दिया है। इसके साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम को पुरानी सारी गड़बड़ी की जांच के निर्देश दिए गए हैं। इसमें अपात्र अखबारों और पत्रिकाओं को सरकारी विज्ञापन देने की शिकायतों की जांच भी शामिल है। इसमें गड़बड़ी पाए जाने पर वसूली और कानूनी कार्रवाई के निर्देश भी हैं।”
आज के द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार सांप्रदायिकता भड़काने के आरोपी टेलीविजन चैनल, सुदर्शन टीवी को केंद्र सरकार ने चेतावनी दी है और सुधरने के लिए कहा है। यह ऐसे ही है कि जेबकतरों की फांसी दे दी जाए और हत्यारों-बलात्कारियों को चेतावनी दी जाए और सुधरने का मौका। इससे पहले सरकार विदेशी चंदा पाने वाले हजारों एनजीओ को बंद कर चुकी है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब अधिकारों और नियमों का बेजा इस्तेमाल है वरना अगर गलत हुआ है तो सरकारी अधिकारियों की देख-रेख और संरक्षण में हुआ है। कार्रवाई उनके खिलाफ भी होनी चाहिए जिनकी जिम्मेदारी नियमों के अनुपालन की है।
अगर अपात्र अखबारों या मीडिया संस्थानों को विज्ञापन दिए गए तो देने वाले और इसके लिए जिम्मेदार लोग भी दोषी हैं। वसूली सिर्फ अखबारों से क्यों? यही बात एनजीओ के मामले में है। कार्रवाई सिर्फ एनजीओ के खिलाफ क्यों? उन सरकारी अधिकारियों के खिलाफ क्यों नहीं जो नियमों के अनुपालन के लिए जिम्मेदार थे और जिनकी लापरवाही से या संरक्षण में गलत होता रहा।
लाइव लॉ डॉट इन की खबर के अनुसार, मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि सुदर्शन टीवी का यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम “अच्छे स्वाद में नहीं” (अंग्रेजी के टेस्ट का अनुवाद है, स्वाद कायदे से नीयत लिखा जाना चाहिए था) है और “सांप्रदायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने” की संभावना (यहां आशंका होना चाहिए कायदे से इरादा लिखा जाना चाहिए) वाला है। इस संदर्भ में, इसने सुरेश चव्हाण के नेतृत्व वाले चैनल को “भविष्य में सावधान” रहने के लिए कहा है।
पीठ ने सुदर्शन न्यूज टीवी चैनल द्वारा विवादास्पद “बिंदास बोल – यूपीएससी जिहाद” कार्यक्रम के प्रसारण को चुनौती से संबंधित मामले में केंद्र के हलफनामे में जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं और हस्तक्षेपकर्ताओं को समय देने के लिए सुनवाई स्थगित करने की कार्यवाही की, जो यह घोषणा करता है कि मुसलमान सिविल सेवा में घुसपैठ कर रहे हैं।
टेलीविजिन चैनल के मामले में सरकार और कोर्ट का यह रुख है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना वाले मामले में संसदीय समिति ने ट्वीटर से पूछा है कि कामेडियन कुणाल कामरा के ट्वीट क्यों रहने दिए गए। यानी वहां यह अपेक्षा है कि ट्वीटर खुद ही तय करे और तथाकथित आपत्तिजनक या अवमानना वाले टवीट हटा दे। लेकिन एक चैनल सांप्रदायिक जेहाद चला रहा है उसपर विचार किया जाएगा। सबकी बात सुनी जाएगी। तर्क आप सबके लिए और सबके खिलाफ कर सकते हैं। जो हो रहा है उसे समझिए।