
कमल शुक्ला-
क्या जिन पत्रकार संघ ने फर्जी पत्रकार सुरक्षा कानून विधेयक लाने पर मुख्यमंत्री महोदय का स्वागत किया था वे सुनील नामदेव की गिरफ्तारी का समर्थन करते हैं ? अब कहां है वे गुलदस्ता देकर स्वागत करने वाले पत्रकार संघ के पदाधिकारी और पत्रकार?
क्या इस कानून के तहत नामदेव को सरकार पत्रकार मानेगी ? यह तय मानिए कि जो भी पत्रकार किसी भी सरकार के खिलाफ लिखने का साहस जुटाएगा उसे पत्रकार नहीं माना जाएगा और ऐसे ही आपके जेब से गांजा हीरोइन बरामदगी दिखाकर या अन्य फर्जी मामले लगाकर जेल भेजे जाते रहेंगे ।
पत्रकार सुनील नामदेव की फिर से गिरफ्तारी के बाद पूरे प्रदेश के पत्रकारों में दहशत का माहौल. पत्रकार नामदेव को फिर से फर्जी मामलों में गिरफ्तार करके सरकार ने जता दिया है कि जो भी इस तानाशाही सत्ता के खिलाफ जाएगा उसे ऐसे ही जेल जाना पड़ेगा, अब बारी आपकी भी है।
जस्टिस आफताब आलम कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार ड्राफ्ट को फेंक कर, प्रदेश के आईएएस अधिकारियों के दबाव में लाए गए फर्जी मीडिया सुरक्षा कानून (जो कि पत्रकारों की सुरक्षा नहीं बल्कि असुरक्षा के लिए लाया गया है) और सरकार के खिलाफ मुखर पत्रकारिता करने वाले सुनील नामदेव की पुनः फर्जी मामलों में गिरफ्तारी का क्या प्रदेश के पत्रकार सही में विरोध करना चाहते हैं ?
मैं अभी काफी हताश हो चला हूं। पूरे प्रदेश में अधिकांश पत्रकार साथी इस तानाशाही सरकार के समर्थन में खड़े हुए हैं, चाहे डर से या प्रलोभन से। मगर अच्छी तरह से जान लीजिए कल सुनील नामदेव जैसी स्थिति मेरे साथ भी हो सकती है और आपके साथ भी ।
मैंने नामदेव के मामले में हो रहे अत्याचार को लेकर मानवाधिकार आयोग में फिर से एक अपील कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के पत्रकार साथी अब तो समझ जाएं कि मीडिया सुरक्षा कानून के नाम पर सरकार की मंशा क्या है ? सत्ता के खिलाफ जाने वालों को पत्रकार नहीं माना जाएगा, मेरी और आप की भी बारी आएगी।
सरकार ने चेता दिया है कि जो भी उसके खिलाफ लिखेगा, उसका हश्र यही होगा। उसके घर से भी नशीले पदार्थ, बंदूक, नक्सली साहित्य या नक्सली संबंध बरामद हो सकता है।
कमल शुक्ला छत्तीसगढ़ के जाने माने पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं.
Comments on “सुनील नामदेव की गिरफ़्तारी के बाद बघेल के फर्जी पत्रकार सुरक्षा कानून की पोल खुल गई : कमल शुक्ला”
यदि सही मायने में राज्य में लोकतंत्र है या राज्य में स्वतंत्र पत्रकारिता हो रही है तो फिर सुनील नामदेव की गिरप्तारी की खबर पब्लिश तो होती कम से कम।सुनील जी की पत्नी अरेस्टिंग की शुरुआत से लेकर दोपहर तक थीं उन्हें बताया ही नहीं गया घंटो तक।गिरप्तारी की सूचना मौजूद पत्नी के बजाय साले को दी गई।यह पुलिसिया साजिश का पहला उदाहरण है सरकार गिरप्तारी को जांचने पत्रकारों की एक कमेटी बना दे।तो ही पोल खुल जाएगी।बदले की नीयत से बैठी सरकार ने कानून औऱ संविधान को ताक पर रखा यह कई कई फैसलों में दिखता है
खासकर छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के साथ लगातार शोषण हो रहा है। एक तरफ कांग्रेस के कर्ताधर्ता वाइनेड में जाकर मीडिया की स्वत्रंता की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर खुद की पार्टी इस पर पालन नहीं कर रही है। अभी हाल ही प्रदेश में चना-मुर्रा की तरह पत्रकार अधिमान्यता कार्ड बांटी गई है, जिसमें कई ऐसे फर्जी पत्रकार और नेता हैं। दूसरी ओर जो पत्रकारिता को अपने धर्म और कर्तव्य समझते हैं ऐसे लोगों को पत्रकाार अधिमान्यता कार्ड के लिए भटकना पड़ रहा है।