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सुख-दुख

वरिष्ठ पत्रकार और संपादक संतोष तिवारी का निधन

Shambhu Nath Shukla : आज दोपहर रोहतक से पुरषोत्तम शर्मा का फोन आया और उसने जब बताया कि भाई साहब संतोष तिवारी जी नहीं रहे तो शॉक्ड रह गया। जेहन में 41 साल पहले का 1976 यूं घूम गया जैसे कल की ही बात हो। हम तब सीपीआई एमएल के सिम्पैथाइजर थे। हम यानी मैं और दिनेशचंद्र वर्मा। हमने तब श्रीपत राय की कहानी पत्रिका में एक कहानी पढ़ी जिसके लेखक का पता दिनेश के पड़ोस वाले घर का था। वह लेखक थे संतोष तिवारी। हम उस पते पर घर पहुंचे। संतोष के पिताजी ने दरवाजा खोला तो हमने पूछा कि तिवारी जी हैं?

संतोष तिवारी

Shambhu Nath Shukla : आज दोपहर रोहतक से पुरषोत्तम शर्मा का फोन आया और उसने जब बताया कि भाई साहब संतोष तिवारी जी नहीं रहे तो शॉक्ड रह गया। जेहन में 41 साल पहले का 1976 यूं घूम गया जैसे कल की ही बात हो। हम तब सीपीआई एमएल के सिम्पैथाइजर थे। हम यानी मैं और दिनेशचंद्र वर्मा। हमने तब श्रीपत राय की कहानी पत्रिका में एक कहानी पढ़ी जिसके लेखक का पता दिनेश के पड़ोस वाले घर का था। वह लेखक थे संतोष तिवारी। हम उस पते पर घर पहुंचे। संतोष के पिताजी ने दरवाजा खोला तो हमने पूछा कि तिवारी जी हैं?

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संतोष तिवारी

वे बोले मैं ही हूं बताइए। हमने उनसे कहानी पर बातचीत शुरू की तो वे कुछ उखड़े-उखड़े से लगे और बोले आप संतोष की बात कर रहे हो? हमने कहा जी। तब उन्होंने अपने लड़के संतोष को बुलवाया। जो हाफ पैंट पहने हमारे सामने आ खड़ा हुआ। करीब 16 साल के इस किशोर को देखकर हमें लगा कि हम गलत पते पर आ गए हैं। इस बालक से क्या बात की जाए और हम चले आए। दो दिन के बाद संतोष हमारे घर आ धमका और शुरू हो गई बातचीत जो अब तक चलती रही। संतोष खूब बातूनी था और यारों का यार। वह न तो कम्युनिस्ट था न समाजवादी न कांग्रेसी न जनसंघी। वह एक सामान्य जन की तरह आस्तिक था और एक सामान्य शहरी की तरह माडर्न।

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शराब से उसे परहेज नहीं था बल्कि खूब पीता था अलबत्ता अंडा तक स्पर्श नहीं करता था। राजनीति से उसे परहेज था और मुझसे कह रखा था कि आप हमारे ट्रिब्यून में कालम तो हर सप्ताह लिखो पर राजनीतिक कतई नहीं। अब मुझे अपना कालम चलाए रखने के लिए ललित निबंध लिखने पड़े एकदम दांत, नाक, कान सरीखे। मगर इससे एक बात हुई कि मेरी ललित निबंधों पर पकड़ बनी और कई आईएएस जब बताते हैं कि हम आपके निबंध पढ़कर पास हुए तो लगता है कि मैं भी पास हो गया। ऐसे संतोष तिवारी आज विदा ले गए तो शॉक्ड तो होना ही था।

दो साल से मैने अपने कई अजीज और करीबी खो दिए। पहले अपने दामाद हर्षवर्धन पांडेय को खोया, फिर अग्रज ब्रजेंद्र गुरू को। इसके बाद अनुज सुरेंद्र त्रिवेदी को और आज अपने अजीज सखा संतोष तिवारी को। जब से सुना तब से न विषाद प्रकट कर पा रहा हूं न दुख। अब कुछ चित्त स्थिर हुआ तब यह पोस्ट लिख सका।

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वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की एफबी वॉल से.

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