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मीडियाकर्मियों के हित में है सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश!

”सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के संबंध में सोमवार, 19 जून 2017 को दिये गये फैसले का मैं स्वागत करता हूं। यह निर्णय पूरी तरह से कर्मचारियों के पक्ष में दिया गया फैसला है। इतना ही नहीं इस फैसले ठेके पर काम करने वाले पत्रकारों (कांट्रेक्टचुअल जर्नालिस्ट) को भी फायदा होगा।” यह कहना है समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार अजय मुखर्जी का।

एडवोकेट अजय मुखर्जी

”सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के संबंध में सोमवार, 19 जून 2017 को दिये गये फैसले का मैं स्वागत करता हूं। यह निर्णय पूरी तरह से कर्मचारियों के पक्ष में दिया गया फैसला है। इतना ही नहीं इस फैसले ठेके पर काम करने वाले पत्रकारों (कांट्रेक्टचुअल जर्नालिस्ट) को भी फायदा होगा।” यह कहना है समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार अजय मुखर्जी का।

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एडवोकेट अजय मुखर्जी

श्री मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के पश्चात उस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह साफ किया है कि ठेका पत्रकारों को भी वो सभी सुविधाएं मिलेगी, जो मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार मिलना चाहिए। यदि किसी भी संस्थान/समाचार पत्र ने कम वेतन पर किसी कर्मचारी से कांट्रेक्ट कराया भी होगा तो वह अमान्य होगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ-साफ कहा है कि सभी कर्मचारियों को मिनिमम वेजबोर्ड देना ही होगा; चाहे वह ठेका कर्मचारी हो या स्थायी कर्मचारी। मिनिमम वेजबोर्ड से तात्पर्य है किसी भी कमचारी का वह वेतन जो जस्टिस मजिठिया वेजबोर्ड के नियमानुसार होना चाहिए। साथ ही समाचार पत्र या प्रबंधन जिन किसी कर्मचारियों का ट्रांसफर, टर्मिनेशन ये समय पूर्व रिटायर किया वे सभी तत्काल प्रभाव से अमान्य होंगे। रही बात समय सीमा की तो वह सुप्रीमकोर्ट ने अपने वर्ष 2016 के फैसले में ही टाइमबाउंड को लिख दिया था- ”Labour court Expeditely decide”

इस आदेश के तहत लेबरकोर्ट को हर स्थिति में इन मामलो की सुनवाई के लिए बांध दिया था और यही  आदेश अब भी मान्य होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामले लेकर कोर्ट को हस्तांतरित कर दिए हैं। अत: सभी संस्थानों को निर्धारित एरियर एवं वेतन का भुगतान लेबर कोर्ट के आदेश के अनुसार करना होगा। कोई भी संस्थान अपने ग्रास रिेवेन्यू में भी हेर फेर नहीं कर सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि यदि कोई संस्थान इसमें हेरफेर करने का प्रयास करता है तो एबीसी/डीएवीपी एवं अन्य सरकारी महकमों में दिए गए ग्रास रेवेन्यू से मिलान किया जाएगा।

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चूंकि आदेश सुप्रीम कोर्ट के डबल बेंच ने दिया है अत: समाचार संस्थान हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट भी नहीं जा सकते हैं और न ही किसी प्रकार का स्टे ले सकते हैं। ऐसा करने की स्थिति में उनपर कोर्ट का समय बर्बाद करने का मामला बनेगा और उन्हें जुर्माना भरना पड़ेगा। यदि कोई संस्थान एरियर एवं वेतन के भुगतान में आनाकानी या हीलाहवाली करता है, लेबर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करता है तो उसकी तुरंत आर.सी काटने को निर्देश सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में है। साथ ही तत्काल प्रभाव से संबंधित संस्थान के बैंक खाते भी सीज किए जा सकते हैं। हां समाचार संस्थानों के मालिक इस बात से खुश हो सकते हैं सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस आदेश उन्हें जेल नहीं भेजा। इस तरह हम देखे तो सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पूरी तरह से कर्मचारियों के हित में है।

पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट शशिकांत सिंह की रिपोर्ट. संपर्क : 9322411335

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0 Comments

  1. naresh

    June 21, 2017 at 2:52 pm

    aapne kal kuch or kaha tha or aaj kuch or bol rahe hai how that’s possible?????????????????????????

  2. sanjib

    June 21, 2017 at 8:08 pm

    Srikant ji, ab lag raha hai ki bhadas ne sahi kuchh kaha. 19th june ko bhadas padhne ke baad to laga ki ya to bhadas ne judgement ko sahi samjha hi nahi, ya apney mun se anap-sanap likh gaya.
    Maine PTI, Business Standard etc sabhi ke reports padhey. Sabon ne karmchariyon ki jeet batayee hai aur malikon ko majithia ab dena hi padega.
    Lekin ek shanka ye bhi hai, ki “jab SC me itne din lag gaye aur inn malikon ne usse thenge par rakkha, to Labour Court ko ye kya samjhenge…! Aur fir Labour Court/ Labour Commissioner / DLC etc ko to aap aur hum dono jaante hain, ki ye kya balaa hai..! Please isse samjhaney ka kasht karein….
    regards

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