देश में टेलीविजन समाचार शुरू होने के बाद अखबारों को बदल जाना चाहिए था पर अखबार कुछ खास नहीं बदले या कहिए नहीं के बराबर बदले। यह जरूर हुआ कि पहले जो लोग अखबार नियम से और गंभीरता से पढ़ते थे उनलोगों ने अखबार पलट कर छोड़ देना शुरू किया। धीरे-धीरे खबरों के लिए अखबारों पर निर्भरता कम हुई पर अखबारों के दाम इतने नहीं बढ़े कि मंगाना बंद कर दिया जाए। इसके उलट कुछ अखबार मुफ्त बंटने के लिए तैयार थे औरे जो पैसे लेते हैं वो रद्दी का उतना ही देते हैं जितना नए अखबार का लगता। इसलिए लोगों ने अखबार खरीदना बंद किया। पहले अखबारों में संपादक के नाम पत्र का एक कॉलम होता था। किसी-किसी अखबार / पत्रिका में यह काफी जीवंत होता था।
ई-मेल शुरू होने के बाद इसे और इंटरऐक्टिव होना चाहिए था। पर नहीं हुआ और ज्यादातर अखबार पाठकों से कटते गए। उम्मीद थी कि टेलीविजन पर खबरें सुनने के बाद अखबारों में विचार होगा। पर वह भी नहीं हुआ। कुल मिलाकर अखबार दो मरा, चार घायल ही करते रह गए। अखबारों के संस्करण बढ़े पर गुणवत्ता नहीं बढ़ी। खबरों की जगह नाम और घटनाएं छपने लगीं। हर गली की खबर हर नुक्कड़ पर अखबार। हर शहर से संस्करण। कुल मिलाकर बिनाकर खर्च और निवेश के बाजार में बने रहने की व्यवस्था हुई और तकनीक का कमाल ये रहा कि खबरों की गुणवत्ता बढ़ाने की बजाय छपाई की गुणवत्ता बेहतर की गई। सुंद चिकने कागज पर रंगीन फोटो के साथ छपने वाले अखबारों में सब कुछ है – खबर और खबरों की समझ नहीं।
अखबार छप रहे हैं और बिक रहे हैं क्योंकि रोज सूरज डूब रहा औऱ निकल रहा है। इस भीड़ और निराशा के माहौल में इंदौर का एक नया अखबार है – प्रजातंत्र। अक्सर प्रयोग करता है। रोज कुछ नया होता है। और इसी क्रम में आज आठ कॉलम के अखबार में 11 कॉलम की फोटो छपी है। आप पूछेंगे यह कैसे संभव है? ये रहा अखबार आप खुद देखिए। फोटो ऐसे छपी है कि आप अखबार को घुमाकर या फोन पर पढ़ रहे हैं तो फोन को घुमा कर देख सकते हैं। दरअसल
मध्य प्रदश में रंगपंचमी सोमवार को मनी, लेकिन इंदौर ने इस आयोजन पर देश के सामने अनूठी मिसाल पेश की।
यहां गेर और फाग यात्रा की परंपरा का यह 72वां साल है, इसलिए इंदौरवासियों ने रंग-गुलाल के साथ ही देश के सबसे स्वच्छ शहर होने की छवि बरकरार रखने की कोशिश की। यहां राजवाड़ा पर मध्य क्षेत्र से 16 गेर और फाग यात्राएं पहुंची। करीब 165 किलो रंग, 10 हजार 700 किलो गुलाल और 22 क्विंटल से ज्यादा फूल से होली खेली गई। 11 टन पानी और रंग से राजवाड़ा की सड़कें पट गईं, लेकिन महज 45 मिनट में ही इंदौरवासियों ने पूरे रास्ते को क्लीन कर दिया। (विवरण दैनिक भास्कर) इसी मौके की एक तस्वीर को प्रजातंत्र ने ऐसे छापा है। संपादक हेमंत शर्मा का कहना है, हम प्रयोग करते रहेंगे। कभी ले आउट से , कभी कंटेंट से, कभी हेडलाइन से तो कभी फोटो से।
संजय कुमार सिंह
महेंद्र श्रीवास्तव
March 27, 2019 at 4:45 pm
भाई यशवंत जी ,
ये कही से नया कंसेप्ट नही है ! इसी इंदौर शहर में जब नई दुनिया अख़बार में आनन्द पांडे जी ग्रुप के एडिटर थे
और मैं खुद यहाँ स्थानीय संपादक था , उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले संथारा के खिलाफ जैन समाज ने ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन किया था ! जो भीड़ इस तस्बीर में है , उससे कई गुना ज्यादा भीड़ थी ! उस वक्त नई दुनिया ने ऐसे ही तस्वीर छापी थी ! हेमंत उस वक्त भाष्कर में थे और हमारे प्रयास को उस वक्त भाष्कर के सपादक रहे स्व. यशवंत व्यास जी ने आनंद को फोन कर इस प्रयोग की सराहना की थी. भाष्कर के न्यूज़ रूम में नई दुनिया अख़बार दिखाया गया और इसे एक बेहतर प्रयोग कहा गया था !