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सियासत

अब उदार हिंदू धीरे-धीरे चुप होने लगा है!

अमिता नीरव-

ओटोमन साम्राज्य के दूसरे बादशाह सुल्तान ओरहान के काल में जेनिसरीज सेना की शुरुआत हुई थी। 1299 में जबकि अंतोलिया के सेल्जुक तुर्क का पतन हुआ ओटोमन साम्राज्य की नींव पड़ी। कुस्तुन्तुनिया (इस्तांबुल) पर आक्रमण और आधिपत्य के बाद ओटोमन साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ।

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कहा जाता है कि ओटोमन साम्राज्य के विस्तार में उनकी शानदार अभिजात्य सेना जेनिसरीज की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। जेनेसरीज वो क्रिश्चियन बच्चे थे, जो बाल्कन क्षेत्र में अपने माता-पिता के साथ रहते थे। जैसे-जैसे ओटोमन बाल्कन में जीतकर आगे बढ़ते, वैसे-वैसे वहाँ के मेल बच्चों को साथ ले चलते।

इन सारे बच्चों को इस्लाम में कन्वर्ट करके गुलामों की तरह पाला जाता था। युवा होकर यही बच्चे अपने ही लोगों के खिलाफ ओटोमन साम्राज्य की तरफ से युद्ध करते औऱ साम्राज्य विस्तार में सहयोगी होते। ये तो वो बच्चे थे, जिन्हें गुलाम बनाकर पाला गया।

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देखा जाए तो हर साम्राज्य ऐसे ही जेनिसरीज सेना के सहारे फलता-फूलता है। कई बार ये सोचकर चकित हो जाती हूँ कि अंग्रेजों ने पूरी दुनिया में शासन किया, शोषण किया। मुट्ठी भर ब्रिटिशर्स ही तो थे, उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से, स्थानीय लोगों के कंधों पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

हमारे यहाँ भी दो सौ साल तक ब्रिटिशर्स हमारे ही लोगों के सहारे शासन करते रहे थे, कितने लोग ऐसे निकले, जो अपने इस तरह के इस्तेमाल को समझ पाए! कितने लोग ऐसे हुए जिन्होंने रिवोल्ट किया! भारत की आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के आने से पहले के अधिसंख्य विद्रोह किसानों और आदिवासियों द्वारा किए गए।

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2014 के बाद जब सरकार के खिलाफ कुछ भी लिखती तो अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरह से यह बात मुझ तक पहुँचाई कि राजनीति पर क्यों लिखना? राजनीति छोड़ दो फिर चाहे जो लिखो। मुझे लगा ठीक है, लेकिन धीरे-धीरे महसूस हुआ कि किस विषय पर लिखूँ जो निरापद हो।

करीब तीन साल पहले बहुत पढ़ने-लिखने वाले एक वरिष्ठ साहित्यकार से बात हो रही थी तो उन्होंने बहुत दुख से कहा कि आज जो खुद को हिंदू कहता है दरअसल वो हिंदुओं को बदनाम करने के काम में लगा हुआ है। हिंदू कभी ऐसा था ही नहीं, हिंदू कभी ऐसा हो ही नहीं सकता।

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जिसकी परंपरा में ही शास्त्रार्थ हो, जो इतना समावेशी हो कि ईश्वर को न मानने वाले को भी स्वीकार करे, वेद को न मानने वाले को भी स्वीकार कर ले, आलोचकों को भी अपने ही धर्म का हिस्सा बना ले। जिस परंपरा में कुछ वर्जित ही न हो, ऐसी कलकल बहती नदी को बाँधने वाले हिंदू कैसे हो सकते हैं?

कुछ वक्त पहले तक उदार मुसलमान अपने ही लोगों में अलग-थलग दिखता था। इन कुछ सालों में मुसलमानों का उदार तबका खुलकर कहने औऱ लिखने लगा है। इसके उलट अब उदार हिंदू धीरे-धीरे चुप होने लगा है। उसे अपने ही लोगों ने नकारना, यहाँ तक कि धमकाना शुरू कर दिया है।

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पिछले दिनों घऱ में दो संघी मित्र आए। एक अमेरिका में सैटल्ड है औऱ दूसरा अक्सर अमेरिका और वेस्ट इंडीज जाता रहता है। दोनों की ही बातों में सिवा मुसलमानों से खौफ के और कुछ नहीं मिला। मैं चुपचाप उन दोनों की बातें सुनती रही। एकाएक मैंने पाया कि अब मेरे पास चुप रहने का ही विकल्प बचा हुआ है।

सत्ता ने देखते-देखते हिंदुओं को ही हिंदू धर्म के खिलाफ खड़ा कर दिया है। ये जेनिसरीज असल में दुनिया में हिंदुओं का वो चेहरा बन रहे हैं, जो बदनामी का चेहरा है। दुखद बात ये है कि खासे पढ़े लिखे लोग इसे ही हिंदू धर्म का असल चेहरा मानकर समर्थन कर रहे हैं।

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लगता है धीरे-धीरे सारा देश ही जेनिसरीज होता चला जाएगा….

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