आगरा : जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिये सरकार भले ही लाखों करोड़ों का बजट जारी करती हो लेकिन इसे लागू करने वाले सरकारी कारकून ही सरकार की योजनाओं को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लापरवाही का आलम ये है कि बिना जांच किये नसबन्दी की जाती है तो वहीं नसबन्दी के बाद भी महिला गर्भवती हो जाती है और बच्चे को जन्म भी देती है। लेकिन महिला को न तो नसबन्दी कराने पर मिलने वाली मुआवजा राशि दी जाती है और न ही लापरवाह चिकित्सकों पर कोई शिकंजा कसा जाता है।
ताजा मामला आगरा जनपद ब्लाक बाह क्षेत्र के हरलालपुरा गांव में सामने आया है। यहां एक दम्पत्ति ने सरकारी अस्पताल के स्टाफ पर गंभीर आरोप लगाये हैं। दम्पत्ति का कहना है कि अस्पताल के स्टाफ ने बिना जांच करे नसबंदी का आपरेशन कर डाला। इसके सात महीने बाद एक और बच्चा हो गया। अब यह दम्पत्ति इस नए मेहमान का भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है।
ऐसा बताया गया है कि पत्नी सोनम पति दशरथ के तीन बेटे हैं। इनका भरण पोषण वह मजदूरी से करते हैं। दम्पत्ति का कहना है कि वे बच्चा नहीं चाहते थे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाह में 05.12.2016 को सोनम ने नसबन्दी कराई थी। नसबन्दी के करीब आठ माह बाद उसी स्वास्थ्य केंद्र पर सोनम ने एक और बेटे को जन्म दिया। सोनम का आरोप है कि बिना जांच किये सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने नसबन्दी का आप्रेशन कर दिया। इसकी शिकायत समुदाय स्वास्थ्य केंद्र पर की गई तो डॉक्टर और कर्मचारियों ने एक नहीं सुनी और परिसर से भगा दिया।
पीड़ित दम्पत्ति का ये भी आरोप था कि डाक्टरों ने नसबन्दी कराने पर मिलने वाली धनराशि के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी थी और न ही किसी तरह का कोई मुआवजा दिया। पीड़ित दम्पत्ति के कई बार अस्पताल के चक्कर काटने के बाद निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने लापरवाही करने वाले स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात डाक्टर और कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करने और नसबन्दी करने पर मुआवजा दिए जाने की मांग की है। वीडियो देखने के लिए नीचे क्लिक करें :
आगरा से फरहान खान की रिपोर्ट.