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वेब-सिनेमा

यशवंत की प्रोफाइल बदल गई लेकिन शराब पीकर बहक जाना नहीं छूटा

Vikas Mishra : यशवंत सिंह.. वही यशवंत भड़ासी। मीडिया पर आधारित मशहूर पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ में जिन मीडिया के नायकों की फेहरिस्त है, उनमें से एक नाम यशवंत का भी है। मीडिया में यशवंत की एक हैसियत तो यही है कि मीडिया में नौकरी करते हुए बहुत कम लोगों की हिम्मत होगी, जो सार्वजनिक रूप से ये कह सके कि हां, यशवंत मेरे दोस्त हैं, या यशवंत को मैं अच्छी तरह जानता हूं। वजह….एक तो यशवंत का उद्दंडता के स्तर तक जा पहुंचने वाला बिंदास स्वभाव और दूसरे यशवंत का कर्मक्षेत्र।

Vikas Mishra : यशवंत सिंह.. वही यशवंत भड़ासी। मीडिया पर आधारित मशहूर पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ में जिन मीडिया के नायकों की फेहरिस्त है, उनमें से एक नाम यशवंत का भी है। मीडिया में यशवंत की एक हैसियत तो यही है कि मीडिया में नौकरी करते हुए बहुत कम लोगों की हिम्मत होगी, जो सार्वजनिक रूप से ये कह सके कि हां, यशवंत मेरे दोस्त हैं, या यशवंत को मैं अच्छी तरह जानता हूं। वजह….एक तो यशवंत का उद्दंडता के स्तर तक जा पहुंचने वाला बिंदास स्वभाव और दूसरे यशवंत का कर्मक्षेत्र।

यशवंत सिंह से मेरी मुलाकात नहीं बल्कि मुठभेड़ हुई थी। 2003 का साल था, मैं मेरठ दैनिक जागरण का सिटी इंचार्ज था। खैर, मैं शाम को दफ्तर पहुंचा था तो पता चला कि डेस्क पर नए साथी आए हैं यशवंत सिंह। पहले ही दिन एक खबर को लेकर हम दोनों में भिड़ंत हो गई। कुछ दिन साथ में गुजरे तो दोनों को लगा कि नहीं, पहला ख्याल गलत है। दोस्ती होनी चाहिए। फिर तो दोस्ती हो गई। बीच-बीच में तकरार भी हुई, लेकिन पटी अच्छी। जोड़ी जम गई। कुछ लोगों ने बड़ी प्लानिंग के साथ दरार डालने की कोशिशें कीं, बाद में उनकी बातें करके हम खूब ठहाके लगाया करते थे। मुझे नौकरी के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता था, यशवंत में हमेशा कुछ नया करने का कीड़ा कुलबुलाता था। यहां तक कि जागरण में ये नियम था कि कानपुर से आया पहला पेज सभी एडीशन फालो करेंगे। यशवंत ने इसे मानने से इनकार कर दिया, खुद पहला पेज बनाते थे। फिर तो ये आलम हो गया कि मेरठ का पहला पेज सभी एडीशन फॉलो करने लगे। गजब की प्रतिभा, गजब का हुनर, लेकिन कभी निर्माण की तरफ तो कभी विध्वंस की तरफ। ये यशवंत ही थे, जिन्होंने जागरण में एडीटोरियल के लोगों के विज्ञापन लाने के खेल में इन्वाल्व होने का खुलकर विरोध किया था।

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कई बार रात में एक बजे के बाद चिंतन होता था, सपने बुने जाते थे। मेरी बाइक देर रात तक मेरठ शहर में घूमती रहती। वहीं ये सपना बुना गया था कि अब चलेंगे दिल्ली। वहां नौकरी करेंगे। प्रिंट में नहीं, इलेक्ट्रॉनिक में । बहुत हो गई मिशनरी पत्रकारिता। अब मोटी तनख्वाह का इंतजाम करेंगे। उन्हीं दिनों दैनिक जागरण ने इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनल की दुनिया में कदम रखा था चैनल-7 के साथ। फरवरी 2005 में मैं दिल्ली आ गया। करीब साल भर के भीतर यशवंत भी बाया कानपुर दिल्ली पहुंच गए।

उस वक्त मैं न्यूज 24 में था, यशवंत की विनोद कापड़ी से घमासान हो गई। विनोद जी उस वक्त इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर थे। यशवंत से उनका एसएमएस पर युद्ध हो गया। शिकायत संजय गुप्ता तक पहुंच गई। अंजाम ये हुआ कि यशवंत जागरण से बाहर हो गए। इसके बाद यशवंत ने किसी मीडिया संस्थान में न तो नौकरी की और न ही कोशिश की। एक मार्केटिंग कंपनी में कुछ दिनों तक काम किया। भड़ास नाम का एक ब्लॉग जरूर बना लिया था। मार्केटिंग कंपनी वाली नौकरी भी छूट गई । दुर्दिन ने डेरा डाल दिया। अपने अक्खड़ स्वभाव के चलते यशवंत ने कई दोस्तों को दुश्मन बना लिया था। उस हालत में कोई भी टूट सकता था, लेकिन यशवंत किसी दूसरी ही मिट्टी के बने थे। यशवंत ने उसी वक्त भड़ास 4 मीडिया वेबसाइट लांच की। हिंदी की मीडिया पर पहली वेबसाइट। देखते ही देखते उसकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी। मीडिया दफ्तरों में बैन होने लगी। यशवंत न सिर्फ सामाजिक रूप से मजबूत हुए, बल्कि आर्थिक हालत भी सुधरी। जो बड़े पत्रकार, जो संपादक कल तक यशवंत का फोन नहीं उठाते थे, या दो शब्द बोलकर फोन रख देते थे, वो अब यशवंत से दोस्ती गांठने लगे थे। यशवंत का फोन पहुंचने पर सब कुछ छोड़कर उनसे बातें करने लगे थे। हर दफ्तर के विभीषण यशवंत के संपर्क में थे। यहां तक कि अपने चैनल में जो खबर मुझे पता नहीं होती थी, वो भड़ास में छपी मिलती थी। भड़ास 4 मीडिया देखते ही देखते शोषित पत्रकारों की आवाज बन गया। कई बार भड़ास ने आवाज उठाकर स्ट्रिंगरों, पत्रकारों को उनके हक का पैसा उनके मालिकानों से दिलवाया। पहली बार कोई ऐसा मीडिया आया, जो उनकी खबर लेता था, जो सबकी खबर लेते थे।

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यशवंत की प्रोफाइल बदल गई, लेकिन यशवंत खुद रत्ती भर नहीं बदले। शराब पीकर बहक जाना नहीं छूटा। पीकर सड़क पर हजारों रुपये लुटा देना नहीं छूटा। किसी की मदद में किसी भी हद तक गुजर जाना नहीं छूटा। अक्खड़पन में कोई कमी नहीं आई। जो पसंद आ गया उसके लिए जान हाजिर। जो पसंद नहीं आया, उससे चाहे जितने फायदे का रिश्ता क्यों न हो, यशवंत ने उसको लात लगाने में कोई कोताही नहीं की। इसी उद्दंडता में यशवंत ने एक बार फिर विनोद कापड़ी को फोन किया, मैसेज किया था। इस बार पंगा बढ़ गया। यशवंत पर कई धाराएं लगीं, जेल में पहुंच गए। हम लोग परेशान थे, परिवार परेशान था, लेकिन पुलिस की गिरफ्त में भी यशवंत का वही अंदाज था। यशवंत करीब तीन महीने जेल में रहे और इस दौरान कानून का चकलाघर हम लोगों ने खूब देखा। कई मीडिया संस्थान एकजुट हो गए कि किसी तरह से वेबसाइट बंद हो जाए और यशवंत बाहर न निकलने पाए। लेकिन ये हो नहीं पाया। वेबसाइट चलती रही, यशवंत जेल से बाहर आए तो जानेमन जेल नाम की किताब भी लिखी।

यशवंत सिंह के किराए के घर के अलावा मयूर विहार फेज थ्री में एक छोटी सी कोठरी में दफ्तर भी था। जो भी रिश्तेदार, परिचित, पुराने दोस्त दिल्ली अपने किसी काम या नौकरी के सिलसिले में आते थे, यशवंत उन्हें वहीं रोकते थे। खाना खिलवाते थे, दारू भी पिलवाते थे। बहरहाल अब वो कोठरी अस्तित्व में नहीं है। हां यशवंत बताते हैं कि गाजीपुर में एक भड़ास आश्रम जरूर खुल रहा है। यशवंत का एक रॉबिनहुड चरित्र भी है। तीन-चार लोग हैं, जिनके घर का खर्च यशवंत के पैसे से चलता है, पैसे का जुगाड़ उन दोस्तों से होता है, जिनकी जेब मोटी है, मुसीबत में जिनकी मदद यशवंत कर चुके होते हैं। यशवंत ये कहने में नहीं हिचकते कि फलां को सेलरी नहीं मिली है दो महीने से, इतने पैसे दे दीजिए और भूल जाइए।

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यशवंत के भीतर भी तमाम पत्रकारों की तरह एक आम इंसान है। ठीक उसी तरह, जैसे हर इंसान के भीतर कहीं न कहीं यशवंत सिंह बैठा है। फर्क बस ये है कि बाकी लोग भीतर के यशवंत को मारकर, उसे अनुशासित करके जिंदगी के मजे ले रहे हैं, लेकिन यशवंत पर कोई बंधन नहीं है। खुद अपना भी नहीं। जो मन में आता है, करते हैं, जैसे जीने का मन करता है, वैसे जीते हैं। कोई यशवंत को झुका नहीं पाया, कोई तोड़ नहीं पाया, कोई बदल नहीं पाया। हम लोगों की शायद हिम्मत न हो सच्चाई के साथ ये कहने की हम अपने अलावा भी किसी के लिए जीते हैं, लेकिन यशवंत छाती ठोंककर कह सकते हैं-हां.. हम आपके लिए जीते हैं। हर मजलूम के लिए जीते हैं। जो परेशान है, सिस्टम का मारा है, उसके लिए जीते हैं। यशवंत को आप कुछ भी कह लीजिए, कितना भी कोस लीजिए, गालियां दे लीजिए, लेकिन आसान नहीं है यशवंत बनना। बकौल दुष्यंत कुमार-‘हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था, कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए।’

आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं….

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शिवानन्द द्विवेदी सहर आज ही पढ़ा

Yashwant Singh गुरु आपने भावुक कर दिया….

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Bhim Nagda this words are too short for Yashwant Bhaiya it has proved that people never like a single person, people like their attitude who have gratitude!
 
Amit Tripathi bahut khoob likha sir… anjani baaten..
 
Prashant Tiwari vikas ji yashwant se mera koi seedha samwaad nahi, bahut dur se hi milna hua hai kuch log unke sath khade hote hain aksar, kuch k sath hum hote hain….. par banda hamesha hasta khil khilata hua mila.
 
Mohammad Anas Sau aane sach baat hai. Yashwant baba jaisa koi aadmi nhin mila mujhe dilli me.
 
Vivekanand Singh Chhotu सच कहूँ सर, मैं इनसे कभी मिला नहीं पर इनके कारनामों को नेट के माध्यम से देखकर-पढ़कर इनका मुरीद हूँ। मुझे ऐसे लोग बहुत अच्छे लगते हैं जो अपने से ज्यादा दूसरों की फ़िक्र करते हैं। आज आपने भी बहुत कुछ बताया इनके बारे में। कभी-कभी तो लगता है कि सही मायनों में पत्रकारिता तो यही कर रहे हैं।

Kumar Atul बहुत खूब विकास जी, यशवंत जी के कुछ गुणों से परिचित था, कुछ और आपने रूबरू करवाया। वैसे तो हम जैसे सामान्य लोगों की कोई चर्चा नहीं करता, मगर आपकी काबिल लेखनी से लोगों के बारे में पढ़-पढ़कर रश्क जरूर होता है कि काश कभी आप अपने पर भी मेहरबान होते

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Harshendra Singh Verdhan This is very informative about Yashwant Sir. Never met him but now I feel like shaking hands with him. Bravo.

Abhishek Kumar Bhai aaj se pahle mai Yashwant Singh ko janta nahi tha.lekin wakai bahut khub.keep it up

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Kuldeep K Bhardwaj अंतिम संकल्प सुनाता हूँ… याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा

Sunil Jain Bahut sunder

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Amarendra A Kishore Tum vyakti chitra likhne mein mahir ho…..series likho bhai…
 
Kunaal Jaiszwal भैया Vikas Mishra आपकी वजेह से ही Yashwant Singh भाई से मुलाकात हुई। और ये सिलसिला बढ़ता चला गया।और बहुत ही जीवट लिखा आपने।
 
Rakesh Narula yes…Yashwant bhai the Great…
 
कुमार साहिल सहमत ….

Srikant Saurav सचमुच बड़ा दम है यशवंत भाई में.

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Anil Gupta bhauk mn k bawjud mja aa gya sirrrrrrrrrrrrrr
 
Sandip Naik यारों का यार …….अबकी बार यशवंत सरकार…. !
 
Chandrakant Shukla Hum to es patrakaarita ki pichli pankti ke sabse chote sainik hain Vikas Mishra sir lekin yashwant sir ki bhadaas ko mass communication ke pehle saal 2010 se padh rahe hain… Saare channel daawa kartey hain sach dikhaane ka lekin dhaara ke vipreet naav to yashwant sir chalaate hain.. enki es himmat ko naman.. ! Navin Kumar sir ke shabdo me kaha jaaye to sach ko sach kehna aur kehte rehna apne aap me ek saahas hai jo yashwant sir me hai

Anil Dixit अमर उजाला आगरा के उनके दिनों के हम भी साक्षी हैं, यशवंत भाई जैसा मीडिया जगत में कोई नहीं।

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Deepak Singh इसे कहते हे जीवन परिचय…किताबों से लगाव उतना हैं नहीं पर “जानेमन जेल” आज ही कहीं से खोज-खरीद के ला कर पढूंगा

Vikas Mishra Rochak aur prernadayi byaktitw
 
Suresh Gandhi bhai ki jai ho…
 
अजीत तोमर यशवंत भाई के विषय में शब्द शब्द सच लिखा आपने वो यारों के यार है यकीनन
 
Amarendra A Kishore यशवंत भाई से मेरी एक मुलाक़ात है। बेहद बिंदास और दिल के साफ़– उनकी मुखरता उनके दिल का आइना है। विकास ने न ज्यादा लिखा और न कोई कंजूसी की उनके बारे में बताने में। बेहद बिंदास हैं यशवंत भाई। मुख्य धारा की मीडिया यशवंत भाई जैसे लोग होते तो सच में आज तस्वीर कुछ और होती।

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Virag Gupta Garv hai aise vyaktitva per

Vijay Srivastava yaswant ji ek jajbe ko salam …..
 
Amit Sharma सर आपका पोस्ट १० बार पड़ चुका हु …लग रहा है १० साल को १० मिनट मे समेट दिया है ! आपको शायद याद भी नही होगा मुझे भी आपका आशीर्वाद मिला था कभी ! अमित शर्मा …मेरठ
 
Padampati Sharma यशवंत crusedar का नाम है

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Satyanarayan Verma Sameer Yashwant bhai jaisa dusra koi ho bhi nahi sakta. Unke bare me jitna aur jitni bar pado utni baar prerna aur urja milti hai. Thanks yashwant bhai.
 
Pramod Shukla विकास भाई, वाकई यशवंत जी पत्रकार जगत में सबसे अलग पहचान रखते हैं……… उनकी पहचान ही यही है कि उनके जैसा दूसरा कोई नहीं है…. उन्हें जानने वाले हर पत्रकार के मन में उनके लिए अलग स्थान है….. उनकी जन्म तारीख और सही समय मिले तो मैं भी जानना चाहूंगा कि ग्रहों के ऐसे कौन से योग हैं जो उन्हें सबसे अलग पहचान दिलाते हैं……
 
Kunal Kumar shi kha..bande mai hai DUm
 
Roy Tapan Bharati वास्तव में यशवंत विलक्षण पत्रकार हैं…वे पत्रकारों के लिए एक सजग प्रहरी हैं पर इस तबके को अपने प्रहरी की फिक्र नहीं..
 
Saurabh N Sharma YASHWANT JI AUR RIYAZ BHAI K SAATH MEERUT ME BEETE HUE DIN YAAD DILA DIAY AAPNE VIKAS SIR.
 
Rajesh Bhardwaj एक अलग सोच की शख्शियत हैं यशवंत
 
दीपेन्द्र मिश्र जो यशवंत है, वो कोई और नही हो सकता
 
Syed Quasim tehsin munawwer ne lokswami me bhi kuch maheene pahle bhadas aur yashwant bhai par qayamat ka lekh likha tha…
 
Sudhir Jha सच कहा आपने। आसान नहीं यशवंत बनना।
 
Vaibhav Agrawal Yashwant भाई से जुड़े थोडा समय हो गया , अक्सर इनके मोदी विरोधी होने की वजह से एक दो बार तकरार भी हुई , लेकिन आज आपने इनके सफरनामा को पढवा कर , यशवंत भाई की इज्ज़त कई गुना बढ़ा दी , मेरी निगाहों में ! 
 
सैयद अख्तर अली यशवंत जैसे लोग कभी-कभार पैदा होते हैं, इतिहास में अमिट छाप छोड़ने के लिए..जज्बे को सलाम… 
 
Kant Sharan बहुत आसान है यशवंत बनना! मुशकिल है अपने अंदर से डर निकालना! डर निकाल के देखो यशवंत से से भी आगे जाओगे! मीडिया मे बहुत कम मर्द है, जिसमें एक नाम यशवंत है!
 
Daya Nand Tiwari Ur d grt sir
 
Harsh Kumar Bhai sab kalam tod di kalam ke sipahi ke liye, aap ki aur Yaswant ji ki team ka hissa main bhi bana tha kuchh samy ke liye
 
Arun Srivastava सचमुच बंदे मे है दम … अपने बल पर भड़ास शूरू किया ….अखबार और चेनलो के खरूस मालिकों से झूझता रहा … जेल गया .. बाहर आया तो और भी मजबूत होकर …….उसके जज्बे को लाल सलाम….. सचमुच बंदे मे है दम …
 
Pankaj Sharma सर को हथेली पर लेकर चलना होता है….किसी के स्वाभिमान को बचाने के लिए अपना स्वाभिमान खूंटी पर टांगना पड़ता है..जब शिफ्ट की बंदिशों में बंधे लोग ….घर जाने को व्याकुल होते हैं…तब घर के सुख को भूलना पड़ता है….रस..रंग…के सुकून से ऊपर उठना पड़ता है…. अपने ही घर की चौहद्दियों को गिरा कर सबके सामने बेपर्दा होना पड़ता है…आवारगी मिज़ाज में और अक्खड़पन आदत में लाना पड़ता है….तब एक यशवंत बनता है….यूं भी भड़ास किसके मन में नहीं….लेकिन हर भड़ास को ज्यों का त्योॆ बाहर निकालने वाला भड़ासी बनना यशवंत के ही बूते की बात है……यशवंत बनना आसान नहीं…अपना किरदार मिटाना पड़ता है…

Vikas Mishra जरूर भेजूंगा Pramod Shukla भाई साहब। जरा आप भी अध्ययन कीजिएगा कि आखिर वो कौन ग्रह हैं, जिनकी निगरानी में यशवंत ऐसे हैं। जिसे किसी से डर नहीं है। न तो इंसान से और न ही भगवान से। किस ग्रह के प्रभाव से ऐसा होता है कि इंसान अपना हर पल मौत की अमानत समझकर चलता है।
 
Kuldeep Kushwaha वास्तव में सर यशवंत जैसा कोई दूसरा शायद विरला ही मिले, वो पत्रकार जगत में विपरीत परिस्थिति के बाउंसर झेलने वाले सचिन तेंदुलकर हैं- उनके जज्बे को सलाम

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Iftikhar Hussain क्या बात.
 
Kamal Kumar Singh बात सोलह आने सच है, यशवंत जी मेरे मित्र सूचि में थे, वो तीर घाट हम मेरे घाट, विचारों से भी और उम्र, अनुभव और परपक्वता में भी, फिर भी पता नहीं क्यों वो हम जैसे अदना इंसानों का भी सम्मान करते है, यही बात उनको खास बनती है. कोई रात के बारह बज रहे थे, उनका स्टेट्स दिखा की कोई है जो इस आधी रात में, गोमतीबाजी कर सकता है, मैंने फोन किया , और निकल लिया, ठेके बंद थे, बार से ३-४ बीयर पैक कराया और पहुच गया, यही हमारी पहली मुलाकात थी, वहां पहुच कोई सुबह ५ बजे तक तक ऑटो से पूरी दिल्ली नाथी… हसी, मजाक चलता रहा , लगा ही नहीं की मै पहली बार उनसे मिल रहा हु. जबरजस्त फक्कड़ और बिंदास. तब से अब तक हम लोगो ने न जाने कितनी बार साधारण रातों को तूफानी बना चुके है.

Sandeep K. Mishra लोग तो एक बड़े संपादक महोदय को नाखुश करने से बचने के लिए यशवंत जी के बारे सार्वजनिक मंच पर बात करने से कतराते हैं…लेकिन सर आपने तो इनकी खासियत बयां करके इनकी जिंदगी के खूबसूरत पन्ने को और भी खूबसूरत बना दिया…वाकई बंदे में दम तो है…लेकिन साथ ही दम उस रिश्ते में भी है…जिसके अमानती और जमानती आप जैसे दोस्त हैं…
 
जय प्रकाश त्रिपाठी वाह विकास जी, मजा आ गया, एक जिंदादिल साथी का शानदार सफरनामा आपके शब्दों में सुपठनीय, प्रेरक, भावप्रवण…
 
Riyaz Hashmi उस सफर का एक हमसफर मैं भी था विकास भैया। वाकई बंदे में दम है। यमयम चपचप।
 
Vivek Singh भैया के साथ हमने भी खूब सुरलहर‌ियां छेड़ी हैं……….. याद है मुझे वो साथ में नुसरत का गाना… आज की रात फ‌िर नहीं होगी…. 

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0 Comments

  1. ek tha tiger

    July 13, 2014 at 6:36 am

    GHAZIPURI MITTI KE LOG KRANTIKARI AR SAAF DIL KE HOTE HAI.YASHWNT BHAI ABHI AR NAAM ROSHN KRNGE

  2. kashinath Matale

    July 13, 2014 at 1:24 pm

    Wah kya Baat Batai/Likhi Vikas Bhai ne.
    Yashwant Singh jee ko salute. Salute to bhadas4media.com, jyo pure patrakar jagat ki khabar deta hai. Majithia Wage Board ke bare me bhi patrkar aur gair patrkaro me bahot jagrukta nirman ki hai.
    Thanks alot.
    Kashinath Matale, Nagpur

  3. marwah tee kay

    July 14, 2014 at 6:17 am

    ” jali ko aag bujhi ko raakh kehte hain ” aur jo hawaon ka rukh mod de ” use jaanbaaj kehte hain fir vo bhale yashwant hi kyun na ho

  4. dileep singh

    July 14, 2014 at 9:16 am

    ptrakarita ki alakh jagaye rakhana asaan nahi hai yashwant ji ko mera salaam

  5. harish kumar

    July 15, 2014 at 2:52 am

    media lina ka shai, sahi mayne mai kaha jaye to mard,
    salam hai iss shair ko

  6. पंकज झा

    July 15, 2014 at 1:16 pm

    सुन्दर ..अद्भुत..लाज़वाब. बिलकुल यशवंत जी की तरह.

  7. pardeep mahajan

    July 15, 2014 at 7:09 pm

    yashwant ke sath sharab ke paimane badal jaate h

  8. sanjeev singh

    July 23, 2014 at 2:04 pm

    mahabharat me sri krishan se jab puchha gaya ki aap ke pas koun si shakati hai ….jis se aap sab khuchh ko apane man mutabik kar lete hai ……..sri krishna ka jabab tha ki …….prayog ki shakti ……..yaswanat bhai ke pass bhi shayad wahi shakati hai …………

  9. mukesh

    July 25, 2014 at 4:32 pm

    yug yug jiyo yashavant bhai

  10. Shams Tamanna

    June 12, 2016 at 6:30 am

    एक बात तो तय है, हर किसी में यशवंत बनने की ताक़त नहीं हो सकती है. कई बार भड़ास4मीडिया पढ़कर सोचता हूँ आखिर राजनीति के दलाल तथाकथित मीडिया मालिक की आँखों की किरकिरी यशवंत अबतक ज़िंदा कैसे है? फिर खुद ही बुदबुदा लेता हूँ “जाको राखे सांईयां, मार सके न कोई”

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