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सुप्रीम कोर्ट के आदेश ठेंगे पर रखते हैं अखबार मालिक, विशाखा समिति कहीं पर गठित नहीं

मुंबई : देश भर के अखबार मालिक माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगे पर रखते हैं. ये खुद को न्याय, संविधान और कानून से उपर मानते हैं. इसीलिे ये जिद कर के बैठे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं मानेंगे तो नहीं मानेंगे। पहले जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का आदेश अखबार मालिकों ने नहीं माना और अब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निजी और सरकारी संस्थानों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के सम्मान से जुड़ी विशाखा समिति की स्थापना के लिये दिये गये आदेश को भी मानने से मुंबई के अखबार मालिकों ने मना कर दिया है.

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मुंबई : देश भर के अखबार मालिक माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगे पर रखते हैं. ये खुद को न्याय, संविधान और कानून से उपर मानते हैं. इसीलिे ये जिद कर के बैठे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं मानेंगे तो नहीं मानेंगे। पहले जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का आदेश अखबार मालिकों ने नहीं माना और अब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निजी और सरकारी संस्थानों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के सम्मान से जुड़ी विशाखा समिति की स्थापना के लिये दिये गये आदेश को भी मानने से मुंबई के अखबार मालिकों ने मना कर दिया है.

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साफ कहें तो सुप्रीमकोर्ट के आदेश को एक बार फिर से ठेंगा दिखा दिया है. ये खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिये. मुंबई की जानी महिला पत्रकार और एनयूजे की महाराष्ट्र की महासचिव शीतल करंदेकर ने जिलाधिकारी कार्यालय (मुंबई शहर) की जनमाहिती अधिकारी से आरटीआई के जरिये १८ जनवरी २०१७ को जानकारी मांगी थी कि माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेशानुसार मुंबई शहर के कितने अखबार मालिकों ने अपने यहां विशाखा समिति की सिफारिश लागू की है, इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध कराईये। अगर इन अखबार मालिकों ने अपने यहां ये सिफारिश नहीं लागू की है तो उनके खिलाफ क्या क्या कार्रवाई की गयी, उसका पूरा विवरण दीजिये।

शीतल करंदेकर की इस आरटीआई को जिलाधिकारी और जिलादंडाधिकारी कार्यालय मुंबई शहर ने ९ फरवरी २०१७ को जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय को भेज दिया। जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय मुंबई की जनमाहिती अधिकारी तथा जिला महिला व बाल विकास अधिकारी एन.एम. मस्के ने २९ मार्च २०१७ को भेजे गये जबाव में शीतल करंदेकर को जानकारी दी है कि उनके कार्यालय में इससे संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.

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यानि साफ तौर पर कहें तो जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय में भी ये जानकारी नहीं होना कि कितने अखबारों ने विशाखा समिति की सिफारिश लागू किया है, साबित करता है कि असल में अखबार मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कतई गंभीरता से नहीं लिया है. इसी कारण विशाखा समिति का गठन नहीं किया, न ही इससे संबंधित जानकारी संबंधित विभाग को दी. आपको बता दें कि यह रोजगार प्रदाता का दायित्व है कि वह यौन उत्पीड़न संबंधी शिकायतों के निवारण के लिए कंपनी की आचार संहिता में विशाखा समिति के गठन को जोड़े. मीडिया हाउसों को अनिवार्य रूप से विशाखा समिति के हिसाब से शिकायत समितियों की स्थापना करनी चाहिए, जिसकी प्रमुख महिलाओं को बनाया जाना चाहिए.

शशिकांत सिह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335

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0 Comments

  1. makera

    April 20, 2017 at 1:50 pm

    Dear Shashikant ji, Lekin Tuesday (18.4.17) ko khabar SC ke website par aai hai ki date lag gai…! Aur date hai 26.04.2017. Ye Khushkhabri hum pathkon ko jald den, to badi kripa hogi… Regards.

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