-Jagdish Singh-
”क्या योगी कभी मोदी की जगह ले पाएंगे?” बहुतों को ऐसा लिखते हुए पढ़ता हूँ। मेरी समझ से तो नहीं। योगी काफ़ी कुछ उच्छृंखल स्वभाव के व्यक्ति हैं। कठोर निर्णय तो ले सकते हैं, पर नई सोच का संपूर्ण अभाव है। देश के बाहर की दुनियाँ की कोई ख़बर नहीं रखते। रचनात्मक दृष्टिकोण एवं दूरदृष्टि का अभाव है। विश्व पटल पर प्रभावी नहीं हो पाएँगे। व्यक्तित्व भी प्रभावशाली नहीं। सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी कम है। वैज्ञानिक अवधारणा में लगभग शून्य हैं। तर्कशील तो बिलकुल नहीं। बिलकुल पोंगा है।
विश्व पटल पर छा जाने वाले करिश्माई तो बिलकुल नहीं। ऊपर से गुजरात से नहीं, जहां के लोग अफ़्रीका, यूरोप, अमेरिका हर जगह स्थापित हैं, धनाढ्य हैं। इसी वजह से अड़ानी, अंबानी भी उनपर बड़ा दाव लगाने के इच्छुक नहीं होंगे।
इतने इन्काउंटर हुए, पर अपराध नियंत्रण का कोई यूपी माडल नहीं बन पाया। चातुर्य एवं धैर्य की कमी है। क्रोध छिपा नहीं पाते। उतावले हो जाते हैं। व्यक्तित्व में गहराई का सर्वथा अभाव है। मुस्लिम आबादी को तनिक भी स्वीकार्य नहीं होंगे।
अमेरिका में बस चुके रिटायर आईआरएस अधिकारी जगदीश सिंह की एफबी वॉल से.
कुछ प्रतिक्रियाएं देखें-
Shahi Jaishankar
असहमत सर .. आपने मीडिया से योगी को जाना है , मैं २६- २८ साल से नक़दीक से जानता हूँ, कुछ मजबूरियाँ है जो खुल कर काम नहीं करने दे रही है , यहाँ के प्रबुद्ध लोग समझते है…
Jagdish Singh
शायद आप कहना चाहते हैं, आरएसएस के बैठाये गये पहरेदार रास्ते का रोड़ा हैं।
Shahi Jaishankar
कुछ कुछ सही है, केंद्रीय नेतृत्व भी, for लाइटर नोट एक शेर(जिस्म की बात नहीं है उनके दिल तक जाना है..लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है….नए परिन्दो को उड़ने मेंवक़्त तो लगता है)..
Nikhilesh Mishra
जी दुइ ठौ पहरेदार उनके अगल बगल बिठा दिए गए है। असली में प्रदेश वही दोनों चला रहे हैं। यह बात सही है। योगी जी इस मामले में स्वतन्त्र नही है। मैंने सरकार बनने के कुछ माह बाद यह बात वाल पर लिखी भी थी। शशि जी सही कह रहे हैं। जब तक वे एकबार स्वतन्त्र होकर काम ना कर ले तब तक हमसभी का आंकलन अधूरा रह जाएगा।
Anupam Upadhyay
मैं शशि जी से सहमत हूँ। मोदी भी जब गुजरात में थे तब उन पर भी ऐसी ही शंका की जाती थीं और मोदी को तो अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी ने भी सीमित मान लिया था।
Shailendra Pratap Singh Mantoo
अब इतना भी अयोग्य और अल्पज्ञ मत समझिये सर… मानता हूँ कि आपको गेरुआ वस्त्र या दाढ़ी से एलर्जी है पर मैं पहले भी कह चुका हूँ कि बाहरी आवरण या पोशाक का ज्ञान से कोई संबंध नहीं होता। He will be a perfect choice after Modiji.
Joginderpal Baghe
Agreed about Yogi. What about tadipaar, who is also from Gujarat, can take big decision and is cosidered as 21st century Chanakya? (Provided Uddhav does not decide to reopen Justice Loya case.
Vinay Tripathi
बड़ा आदमी छोटे आदमी की समझ से परे होता है।
Ram Gopal Singh
योगी के मुख्यमंत्री बनने पर मुझे ऐसा लगता था जैसे शाय़द यह इस पद के लिए उपयुक्त नहीं है किंतु मैं ग़लत साबित हुआ। उनसे पहले बीर बहादुर सिंह और कल्यान सिंह को छोड़कर कोई मुख्यमंत्री इतना योग्य इस पर आसीन नहीं हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनमें बहुत परिवर्तन आया है।
Devendra Shukla
…..कुल मिलाकर बचपन में मगरमच्छ से न खेलना योगी जी के पीएम बनने में बड़ी अड़चन है…..
3 साल के सीएम अनुभव की 12 साल के अनुभव से तुलना की हड़बड़ी न करें….अगर उत्तमप्रदेश में लगातार दो कार्यकाल योगी रह गए तो बहुत समय तक देश को उन्हें पीएम बनाये रखने का ‘सौभाग्य’ मिल सकता है…..
Ashok Singh
आपकी दृष्टि एक प्रवासी भारतीय जैसी है। गुजरात दंगे के बाद विश्व जनमत खासकर अमेरिका में मोदी जी क्या छवि थी? क्यों अमेरिका ने वीसा नहीं दिया था? मोदी जी की गुजरात के मुख्यमंत्री के रुप में जो छवि थी वही आज योगी का युपी के मुख्यमंत्री के रुप में छवि है। आप एक अधिकारी रहे हैं आपका काम करने का तरीक बने बनाये लीक पर चलना रहा है। राजनीति में ऐसा नहीं होता। बाजपेयी जी के समय अडवाणी जी की छवि कठोर थी तो बाजपेयी जी स्वीकार कर लिये गये।
मोदी जी कठोर छवि के रुप में स्थापित हुये तो अडवाणी जी उदारवादीयों के पसंद हो गये। आज मोदी जी स्वीकार्य कर लिये गये हैं क्योंकि योगी कठोर है। एक बार गावस्कर से ही सचीन और उनके बैटिंग पर प्रश्न पूछा गया था तो उन्होने कहा था की २१ का जब गावस्कर था उस गावस्कर से २० साल का तेंदुलकर बेहतर बल्लेबाज था। मोदी जी ५१ साल और १ महिना के थे जब मुख्यमंत्री थे। योगी जी ४४ साल ९ महीना और २१ दिन के थे जब मुख्यमंत्री बने। योगी जी की उम्र में मोदी जी को संघ और भाजपा के नेताओं के अलावा कोई जानता भी नहीं था। और योगी जी २०२३ में ५१ साल के होंगे। भविष्य कोई नहीं जानता। सभी आकलन वर्तमान के आधार पर होता है जो कल भूत हो जाने वाला होता है। राजनीति कब कौन सा करवट लेगी कोई नहीं जानता। कल कौन युवा एक नई सोंच के साथ आगे आकर खडा हो जायेगा कोई नहीं जानता।
Vijay Prakash Singh Solanki
एक छोटी सी गुमनाम जिंदगी को छोड़कर स्वेच्छा से गोरक्ष नाथ पीठ का मुखिया बन अपराजेय रहते हुए मुख्य मंत्री के पद तक का सफर कोई मजाक नहीं। गोरखपुर की राजनीति में एक वर्ग की सर्वकालिक राजनीतिक वर्चस्व की कब्र खोदने के साथ उस वर्ग को अपने साथ बनाये रखने की कला के साथ बिना किसी पूर्वानुमान के सी एम बनना, बड़े बड़े नेताओं को राजनीति से दरकिनार कर अपनी पार्टी में ख़ुद का वर्चस्व स्थापित करने के साथ साथ लोकसभा चुनावों में अखिल भारतीय स्तर पर पार्टी के सर्व मान्य नेता के रूप अपने को स्थापित करने की घटना कोई हंसी मजाक नहीं है। जब भी इनका मूल्यांकन किया जाय तो यह तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कोई विरासत इन्हे उपहार में नहीं मिली, अपने बाहुबल और दूर दृष्टि से अर्जित किया। पिछले तीन वर्ष इस बात के साक्षी हैं कि राजनीति में विरोधियों को (गृह जनपद से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक) लगभग नेस्तनाबूद कर दिया है। प्रदेश के स्तर पर उनकी खुद की पार्टी में उनके स्तर का कोई भी नेता अब नहीं रहा, राष्ट्रीय स्तर पर उनकी बढ़ती माँग ने उन्हे अब मोदी के सापेक्ष बराबरी पर खड़ा कर दिया है। आज इस उम्र के पड़ाव पर जिस राजनैतिक कद को उन्होंने अर्जित किया है, वह एक प्रतिमान है। यह मोदी जी से दो कदम आगे की उपलब्धि है। जरा सोचें कि मोदी को छोड़कर उनके कद का नेता कौन है, शायद इस समय कोई नहीं।