फर्रुखाबाद जनपद में 29-011-2014 को फर्रुखाबाद कोतवाली के कोतवाल राजकुमार की हत्या कर दी गयी. हत्या के बाद फर्रुखाबाद मीडिया जगत में खलबली मच गयी और सभी न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर जानकारी लगते ही मौके पर पहुंच गए. सबने अपनी कवरेज शुरू कर दी. फर्रुखाबाद के कोतवाल के अलावा किसी भी सिपाही को खरोच तक न होने की बात सामने आई. सभी रिपोर्टर एक ही बिंदु पर अपनी खबर करते गए.
देर रात पुलिस के बड़े अफसर आईजी आशुतोष पाण्डेय व डीआईजी नीलाब्जा चौधरी भी मौके पर आ गए. लेकिन अभी तक किसी पुलिस कर्मी के घायल होने की कोई भी सूचना नहीं मिली. लेकिन इसी बीच कुछ रिपोर्टरों के मोबाइल फोन बजने लगे. डेस्क से पूछा गया कि कोतवाल के साथ घायल सिपाही कहां है, आप लोगों ने बाइट क्यों नहीं भेजी? सभी रिपोर्टरों के पास कोई जवाब नहीं था. फिर शुरू हो गया एक दूसरे को फोन करना. लेकिन उस गंभीर घायल सिपाही का कोई पता नहीं चल सका. जब कुछ रिपोर्टर थक हार कर अपने आफिस में फोन लगा कर पूछने लगे कि सर सिपाही के घायल होने की खबर किस चैनल पर चल रही है तो उधर से जवाव मिला ‘ज़ी संगम’ पर.
फिर क्या था. कुछ रिपोर्टर ज़ी संगम खोल कर बैठ गए और खबर देखने लगे. पता चला कि जिस घायल सिपाही की बाइट ज़ी संगम चला रहा था, बह फर्जी बाइट थी. दरसल जो बाइट चल रही थी वो कोतवाल की हत्या के 2 दिन पहले झगड़े में घायल हुए मल्लू यादव की थी जो फतेहगढ़ के बरगदियाघाट निवासी हैं. इससे साफ़ है कि ज़ी संगम के रिपोर्टर जिले में किस तरह की रिपोर्टिंग करते हैं. लेकिन क्या किया जाए. सब कुछ चलता है.
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ऐसे ही फर्ज़ी खबर के मास्टर आज़मगढ के भी ज़ी संगम के है जो खुद 60 साल के हैं और दिन पर कारोबार मे व्यस्त रहते हैं. कई बार अधिकारियो की लताड भी पा चुके है. एक बार तो फर्ज़ी फोनो कर दिया कि अधिकारी मौके पर पहुंच गये है जबकि कार्यालय मे बैठे अधिकारी ने फोन कर पूछ लिया तो बंगले झांकने लगे.
ये भाई जरा देख के चैनल पर चले
देख कर चलाये खबर