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2000 के नोट पर खूब झूठ फैलाया, अब मीडिया की इमेज का सत्यानाश हो रहा है …

मदन मोहन सोनी-

भारत में पत्रकारिता का जब भी इतिहास लिखा जाएगा, दो हजार के नोट में चिप बताने वाले पत्रकारों का नाम सबसे पहले पायदान पर होगा। अब तो सरकार ने भी दो हजार के नोट वापस ले लिए लेकिन जिस तरह के फर्जी और तथ्यहीन दावे देश के बड़े बड़े पत्रकारों ने दो हजार के नोट को लेकर किए थे, उसने मीडिया के चरित्र पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।

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08 नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद 500 रुपये और 2000 रुपये के नए नोट मार्केट में आए थे। उस वक्त अकेले ये नोट ही मार्केट में नहीं आए थे बल्कि अपने साथ अफवाह भी लेकर आए थे। अफवाह फैलाने वाले भी कौन थें, देश के जाने माने पत्रकार।

देश के ये जाने माने बड़े पत्रकार उस वक्त बहुत झूम झूम कर स्टूडियो से बता रहे थे कि 2000 के हर नोट में नैनो जीपीएस टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल हुआ है। दो हजार रुपये हर नोट में चिप लगा हुआ है। इस चिप को पॉवर की जरुरत नहीं होगी। उसके लोकेशन को सरकार कभी भी ट्रैक कर सकती है। अगर वो 120 फीट नीचे जमीन में भी दबा रहेगा, तो भी उसे ट्रैक किया जाएगा। मतलब अब कोई भी काला धन नहीं रख सकेगा। इसे ब्लैक मनी और करप्शन पर सर्जिकल स्ट्राइक बताया गया।

जिस दिन केंद्र सरकार ने 2000 रु के नोट वापस लेने का फैसला किया, उस दिन लोगों ने ऐसी तथ्यहीन खबरें बताने वाले देश के दिग्गज पत्रकारों को सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल किया। इन पत्रकारों के पुराने वीडियोज को शेयर कर लोग लिखने लगे कि लगता है कि नैनो चिप अब काम नहीं कर रही है, तभी तो सरकार ने अब 2000 रुपये के नोट वापस लेने का फैसला ले लिया है।

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https://twitter.com/Cryptic_Miind/status/1659552622599368704

जाने माने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने भी सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा कि नोटबंदी के 07 साल के बाद इन खोजी पत्रकारों को जरुर याद करिए जिन्होंने 2000 के नोट पर जीपीएस चिप ढूंढ निकाला था। इसके साथ ही उन्होंने न्यूज एंकर श्वेता सिंह और सुधीर चौधरी की तस्वीर और वीडियो भी पोस्ट की है।

हैरान करने वाली बात तो यह रही कि जब केंद्र सरकार ने 2000 के नोट चलन में लाए उस वक्त देश की मीडिया और पत्रकारों ने इसे मास्टरस्ट्रोक करार दिया। अब जब इन नोटों को वापस लिया जा रहा है तब भी इसे मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है।

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मास्टरस्ट्रोक स्पेशलिस्ट इन पत्रकारों ने देश की जनता के सामने मीडिया का सिर शर्म से झुका दिया है। ऐसे लोग पत्रकार कम एक पार्टी विशेष के प्रवक्ता की भूमिका ज्यादा निभा रहे हैं। पत्रकारिता के नाम पर सरकार की दलाली करने वाले इन पत्रकारों को देश देख रहा है। यूं ही पत्रकार और पत्रकारिता की साख कमजोर नहीं हुई है।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने इस मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा था कि दो हजार के नोट चालू करना भी मास्टरस्ट्रोक और दो हजार के नोट बंद करना भी मास्टरस्ट्रोक..ऐसा दोगलापन सिर्फ गोदी मीडिया के द्वारा ही संभव है।

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