सुभाष राय-
दुख जाता कहां है/ पास में ही घात लगाये खड़ा रहता है/ एक घाव भरने- भरने को होता है/ तब तक दूसरा प्रहार कर देता है/ लेकिन मनुष्य कभी हारता नहीं / वह हर बार उठ खड़ा होता है/ आगे बढ़ जाता है/ कवि तो सारी दुनिया के सुख के लिए/ दुख सहता रहता है/ नरेशजी भी बाहर आ जायेंगे इस दुख से/ उन्होंने जिस दुनिया के लिए लिखी हैं कविताएँ/ वह मजबूती से उनका दुख बांटने के लिए/ उनके साथ खड़ी है/ हां, मुसीबत में कविताएं साथ खड़ी हैं ।
पूरा शहर, समूचा साहित्य समाज इस दुख में नरेश जी के साथ
लखनऊ । वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना के पुत्र राघव नरेश का शुक्रवार की सुबह हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वे अभी ४३ वर्ष के प्रतिभाशाली युवा थे और अंतरराष्ट्रीय कंपनी अमेजन के लिए काम कर रहे थे। शाम को ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
नरेश जी के लिए यह असहनीय आघात है। उनकी दिनचर्या देर रात तक जगकर काम करने की है। उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत देर से इस बारे में पता चला। जब वे सोकर दस बजे के आस-पास उठे तब तक राघव के न उठने पर उन्हें जगाने की कोशिश हुई तो पता चला कि वे अब नहीं रहे। नरेश जी रात के तीन बजे जब सोने जा रहे थे, तब राघव जोर के खर्राटे ले रहे थे। एक बार नरेश जी के मन में आया कि थोड़ा ठीक कर दूं लेकिन फिर उन्होंने यह सोचकर जाने दिया कि अपने आप करवट लेंगे और सब ठीक हो जायेगा।
अंदाजा है कि राघव का निधन सुबह छह से सात बजे के बीच किसी समय हुआ होगा।
नरेशजी बता रहे थे कि अभी राघव कोई खून की जांच कराकर ले आये थे और कह रहे थे कि पापा देखो, सारे पैरामीटर्स ठीक हैं। इधर वे अपना काम भी बहुत रुचि लेकर कर रहे थे। अभी बता रहे थे कि कंपनी ने उनको विशेष बोनस डिक्लेयर किया है। नौ-दस घंटे काम करते थे।
हाल ही में उन्होंने अमेजन ज्वाइन किया था और धीरे-धीरे अपनी मेहनत से वहां एक महत्वपूर्ण जगह बना ली थी। बहुत कम समय में कंपनी ने उनके वेतन में भी बढ़ोतरी की थी।
उनकी कविताओं में भी रुचि थी लेकिन वे बहुत समय इसके लिए नहीं देते थे। अपनी बहन पूर्वा की रंग-मंच संबंधी गतिविधियों में भी वे काफी रुचि दिखाते थे। उनके बारे में एक बार नरेशजी ने मुझे बताया था कि उनका सामाजिक दायरा बहुत बड़ा था और अपने प्रियजनों के लिए वे जरूरत पड़ने पर दिन-रात एक पांव पर खड़े रहते थे। सोशल कामों में भी उनकी अच्छी-खासी दिलचस्पी थी और इसी दिलचस्पी के कारण उन्होंने कई बारे राजनीतिक मोर्चों पर भी काम करने का प्रयास किया।
राघव के जाने से नरेश जी का पूरा परिवार और इस शहर के अलावा देश में दूर- दूर तक बिखरा उनका वृहत्तर साहित्यिक परिवार भी बेहद मर्माहत है। अभी मंगलेश जी के निधन से वे सदमे में थे और फेसबुक पर अपना दुख जताते हुए लिखा था कि मंगलेश चले गये, वे नहीं आयेंगे, अब मुझे ही जाना पड़ेगा। पूछने पर कहा कि यह वाक्य यूं ही आ गया। यह वाक्य गहरे दुख के कारण आया होगा। यह सदमा गया नहीं कि राघव चले गये।
पूरा शहर इस दुख में नरेश जी के साथ है। सबकी सदिच्छा है कि उन्हें इससे उबरने की शक्ति मिले।