रीवा सिंह-
निधि राज़दान पर फिशिंग अटैक जितना दुर्भाग्यपूर्ण है उससे कहीं अधिक कौतूहल भरा है। नौकरी व विभिन्न ऑफ़र्स को लेकर फ़र्ज़ी मेल्स किसके पास नहीं आते। कम तकनीकी जानकारी रखे लोग अक्सर ऐसे जाल में फँस जाते हैं। कई बार काम इतनी निपुणता से होता है कि शिक्षित लोग भी शिकार होते हैं। फिर भी निधि राज़दान का ऐसे जाल में फँसना चौंकाने वाला है क्योंकि वे देश के सबसे सजग पत्रकारों में शुमार रहीं। उन्होंने और उनके चैनल ने फ़ेक न्यूज़ व फिशिंग को लेकर दर्शकों का ज्ञानवर्धन भी किया। ‘वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी’ जैसा शब्द उसी समूह के चैनल से ईजाद हुआ। इसके बाद जब ऐसी घटना होती है तो दीये तले अँधेरा जैसा लगता है।
निधि से सहानुभूति होते हुए भी मन चौंककर पूछना चाह रहा है कि कैसे? आपके साथ ऐसा कैसे हो गया? क्या आपने सिर्फ़ मेल्स पर भरोसा किया और आगे की प्रक्रिया के साथ बढ़ती रहीं? आपने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के लिए अप्लाय किया भी था या नहीं? आपको अचानक जॉब ऑफ़र मिलना संदेहास्पद क्यों नहीं लगा? आपने उस विश्वविद्यालय की क्राइटीरिया क्यों नहीं देखी, बिना डॉक्टरेट के असोसिएट प्रोफ़ेसर, न कि रिसर्च स्कॉलर बनना आश्चर्यजनक क्यों नहीं लगा! विश्व के टॉप संस्थानों में शुमार हॉवर्ड यूनिवर्सिटी अपनी एलिजिबिलिटी क्राइटीरिया सिर्फ़ आपके लिए कैसे बदल देगी और बदलेगी तो वह इसे ख़ुद अनाउंस क्यों नहीं करेगी!
क्या पूरी प्रक्रिया सिर्फ़ मेल्स पर चलती रही, आपके पास हॉर्ड कॉपी में कुछ भी नहीं पहुँचा? इसकी शुरूआत के साथ ही आपने क्रॉसचेक करने की तो ज़रूर सोची होगी, आप समझदार पत्रकार हैं, स्वर्ग की सीढ़ी ढूंढने वाली नहीं, फिर कैसे! इतनी बड़ी चूक आपसे हुई तो सामान्य जनता का क्या!
तिस पर भी ये कि बिना सत्यापन के आपने इस्तीफ़ा देने जैसा बड़ा कदम उठा लिया। इसके बाद भी जॉइनिंग की राह देखती रहीं और महीनों की प्रतीक्षा के बाद आपने हॉवर्ड में सम्पर्क किया तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। इस बीच आपका चैनल इसे सेलेब्रेट करता रहा, आप एनडीटीवी पर बतौर असोसिएट प्रोफ़ेसर अपना वक्तव्य देने भी प्रस्तुत होती रहीं। चहुं ओर से बधाइयों का तांता लगा रहा। सभी को आपके भरोसे पर इतना भरोसा था कि उमर अब्दुल्ला, फ़रहान अख़्तर और स्वरा भास्कर ने भी आपको बधाइयाँ दीं। किसी ने जाँच-परख की नहीं सोची क्योंकि यह ऐलान निधि राज़दान ने किया था। ऐसे में निधि को बहुत सजग क्यों नहीं होना चाहिए था? सत्यापन जैसी बला के बारे में क्यों नहीं सोचना चाहिए था?
हाँ, जो लोग कल तक दिल का दौरा पड़े सौरव गांगुली पर हँस रहे थे वे आज निधि के लिए सहानुभूति तलाश रहे हैं। इंसानियत की बातें कर रहे हैं वे लोग जो बीमार व्यक्ति पर मीम्स बनाकर रचना की मिसाल प्रस्तुत कर रहे थे। निधि के साथ हुए ग़लत को ग़लत कहें। उन्हें इस वक़्त साथ की ज़रूरत है, छला हुआ व्यक्ति टूट जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए था लेकिन संवेदनाओं को भी विचारों के तराज़ू में तोलकर परोसने वाले ज्ञान देते हास्यास्पद लगते हैं। सौरव ने तेल का विज्ञापन किया और हार्ट अटैक आया तो आप अनियंत्रित होकर कूद पड़े। स्वरा भी उसी अडानी के तेल का विज्ञापन करती हैं और फिर किसानों के प्रोटेस्ट में भी पहुँचती हैं, मुँह में दही जम जाता है?
वैसे किसी भी महिला की बात होगी तो सबको बुद्धिजीवी, नारीवादी, लिबरल बनना है लेकिन अगर वह महिला किसी भाजपाई की बेटी हो तो लोग खुलकर अपना स्तर दिखाते हैं और बताते हैं कि यहाँ LHS=RHS है। किसी को बेहतर समझने की ग़लती न की जाए। वे लोग भी निधि के समर्थन में खड़े होकर ज्ञान उड़ेल रहे हैं जो अंजलि बिड़ला के सिविल सर्विस में जगह बनाने पर उसके कपड़े नाप रहे थे, कह रहे थे कि माहौल रंगीन होगा, सिविल सर्विस में जाना था। उन्हें परीक्षा प्रणाली की मूलभूत जानकारी भी होती तो पता होता कि चयन कैसे होता है और उत्तीर्ण होने वाला हर व्यक्ति आईएएस ही नहीं बनता लेकिन जब यह सब पढ़ना था तो उस लड़की की ड्रेस नापी जा रही थी।
लोग इस तरह खुलकर सामने आ चुके हैं कि अब विचारों से मोहभंग हो गया है। सारे सिद्धांत धरे रह जाते हैं और घटियापन प्रकट हो आता है जब बात दूसरे पलड़े की हो। जहाँ ज़हीन होना था, उदाहरण प्रस्तुत करना था वहीं जहन्नुम हो जाते हैं। सब LHS=RHS है।
पुष्य मित्र-
निधि राजदान मामले पर मेरा नजरिया
- वे ठगी गयी हैं, उन्होने किसी को ठगा नहीं है। उन्हें चाहे तो आप बेवकूफ कह सकते हैं, मगर वे अपराधी नहीं हैं।
- यह मानवीय स्वभाव है कि हम किसी बुद्धिमान समझे जाने वाले किसी प्राणी के बेवकूफ बनने पर आनंदित होते हैं। मगर यह कोई बहुत अच्छी प्रवृत्ति नहीं है। इससे आप अपनी कुण्ठा का ही पोषण करते हैं।
- निधि ने अपने साथ हुई ठगी को सार्वजनिक किया है। यह सामान्य बात नहीं है। अमूमन सौ में से कोई एक व्यक्ति ऐसा करने की हिम्मत करता है। खास तौर पर जब कोई व्यक्ति इस स्तर का हो कि उसकी इस सूचना पर पूरा देश रिएक्ट करे। सामान्य तौर पर लोग ऐसी खबरों को दबा जाते हैं। कोई झूठी कहानी गढ़ कर बच निकलते हैं। मगर उन्होने इस सूचना को सार्वजनिक किया, सम्भवतः इस मकसद से इसे सबको बताया कि दूसरे लोग इस तरह की ठगी से बच सकें।
- अब तक कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिला है, जिससे यह साबित हो कि निधि ने किसी परोक्ष लाभ के नजरिये से खुद ही पहले अपनी नौकरी की खबर उड़ाई हो या अब उस खबर को गलत बता रही हो।
- इस पूरे प्रसंग में निधि की कोई चतुराई, कोई लाभ लेने की प्रवृत्ति या दूसरों को परेशान करने या धोखे में रखने कोई अन्य लाभ लेने की कोशिश नहीं दिखती। इसलिये मेरी निगाह में वे अपराधी नहीं, अपराध की शिकार हैं।
इसलिये मेरी सहानुभूति निधि के लिए है। मैं चाहूंगा कि वे इस दोहरे झटके से उबर कर फिर से सामान्य जीवन जी सकें। पहला झटका तो उसके साथ हुए धोखे का है जिसकी वजह से उनकी 21 साल पुरानी नौकरी छूट गयी। दूसरा झटका यह है कि अपने साथ हुए धोखे की खबर खुद सार्वजनिक करने के बाद खुद उसके देश के लोग उसकी लानत-मलामत करने पर जुट गये हैं। उसे ट्रोल कर रहे हैं।