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टीवी

खबरिया चैनल और दर्शकों का टेस्ट

अंशुमान मिश्रा-

हमे याद है जब हम छोटे थे।मेरे पिता जी रेडियो पर समाचार सुनते थे।सुबह शाम प्रादेशिक समाचार और राष्ट्रीय समाचार के बाद इंग्लिश में समाचार सुनाए जाते थे।इंग्लिश में समाचार शुरू होने का मतलब था रात के 9 बज गए। यानी पढ़ाई से छुट्टी का समय हो गया।इससे पहले ही बीबीसी हिंदी बैंड पर देश विदेश की खबरें सुनाई जाती थी।जो काफी रोचक हुआ करता था।उसमें एक कार्यक्रम गंगा को लेकर भी प्रसारित होता था।जिसे मैं पसन्द करता था।

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फिर हमने कुछ विकास किया,पिता जी ने श्वेत श्याम टी वी खरीद लिए।हम सभी अब टीवी में समाचार देखने लगे।दूरदर्शन में झिलमिलाहट और रुकावट के लिए खेद की सूचना के साथ सुबह शाम देश दुनिया की खबर देख ही लेते थे।फिर दूरदर्शन ने भी विकास किया अब हम देश दुनिया की खबर के साथ डी डी बिहार के माध्यम से बिहार की खबर भी अलग से देखने लगे।टीवी से झिलमिलाहट और रुकावट धीरे धीरे खत्म होने लगी थी।

फिर समय आया न्यूज भी विकास मरने लगा। पहले सिर्फ दूरदर्शन था, अब कई चैनल हो गए।उन चैनलों में अब तक समचार एक कार्यक्रम के रूप में होता था।धीरे धीरे समाचारों ने अपना स्वतन्त्र चैनल का रूप धारण कर लिया था।दूरदर्शन एवम अन्य समाचार चैनल में प्रतिस्पर्धा शुरू हुआ।दूरदर्शन इसमे पिछड़ता चला गया इसका मुख्य वजह था दूरदर्शन में बढ़ का पानी भी धीरे धीरे बढ़ता था वहीं अन्य चैनलों में नाली के पानी मे भी ज्वार भाटा उठता नजर आता था।

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खैर अब खबरिया चैनलों ने दूरदर्शन से काफी ज्यादा विकास कर लिया।अब वो दर्शको की टेस्ट पसन्द नापसन्द को देखकर समाचार दिखाने लगे है।खट्टा न्यूज चैनल,तीखा न्यूज,मीठा न्यूज,राष्ट्रवादी न्यूज,निराशावादी न्यूज,पूंजीवादी न्यूज,हिन्दू वादी न्यूज,मुस्लिमवादी न्यूज,दलितवादी न्यूज, सवर्णवादी न्यूज,चमत्कारी न्यूज,गांजा भांग ड्रग मांगने वाला न्यूज,चिल्लाने वाला न्यूज,धमकानेवाला न्यूज,और न जाने क्या क्या।मतलब ये है …..जो तुमको (दर्शक) हो पसन्द वही बात करंगे,तुम अगर दिन को रात कहो ,रात कहेंगे…..इसी तर्ज पर खबरिया चैनल बनने लगे है।और इन सबके बीच से मूल खबर छूट जाती है जो खबर हमे प्रभावित करती है।

आज सारे न्यूज चैनल समाचार के माध्यम से अपना एजेंडा परोस रही है।और हम कॉमर्शियल ब्रेक देख देख कर उस चैनल के हिडन एजेंडा को अपने दिमाग मे भर रहे है।और कितने समस्याओं से मुंह मोड़ कर बुद्धू बक्से को निहार रहे है।हम अपनी समस्या को किसी से कह नहीं सकते और कोई सुनना भी नहीं चाहता है।क्यों कि टी आर पी मिलेगी नही।
और हाँ इस एजेंडावादी चैनलों से खबर काफी पीछे छूट चुका है।

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-अंशुमान मिश्रा, खगड़िया, बिहार

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