आराधना मुक्ति-
गहराइयाँ एक संवेदनशील मुद्दे पर बनी लचर फ़िल्म है। हमारा दुःखद अतीत हम पर प्रभाव डालता है। परिवार में होने वाले तनाव किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को कई कॉम्प्लेक्सेज़ में उलझा देते हैं।
इस फ़िल्म में एक करण को छोड़कर बाकी तीनों ही पात्र अपने पेरेंट्स के अब्यूज़, आत्महत्या या उलझे हुए सम्बन्धों के शिकार हैं। उनका अतीत उनका पीछा करता है और आज के निर्णयों पर असर डालता है। नैतिकता का चश्मा उतारकर देखेंगे तो फ़िल्म ठीक लगेगी अन्यथा नहीं।
हाँ, फ़िल्म का निर्देशन उतना अच्छा नहीं है। बीच-बीच में कहानी पर निर्देशक की पकड़ छूट जाती है। कहीं-कहीं अझेल है, लेकिन अंत अच्छा है। दीपिका के अभिनय हमेशा की तरह शानदार।
पूजा प्रियंवदा-
अब चूँकि गहराइयाँ में सेक्स और बेवफाई की काफी चर्चा हो गयी मुझे लगता है एक ज़रूरी बात की चर्चा होनी चाहिए – ट्रॉमा
शादियों में हिंसा का बच्चों पर ट्रामा – ज़ैन
बुरे रिश्तों, परिवार में आत्महत्या या मानसिक तकलीफ का ट्रामा- अनीषा
कम्युनिकेशन गैप, पैरेंट के अल्कोहल अब्यूज़ का ट्रामा – अनीषा
माँ-बाप के रिश्तों और राज़ों का ट्रामा- टिया
आप में से कितने लोग जानते हैं कि हमारे व्यस्क और यहाँ तक की सेक्सुअल रिश्तों का ब्लूप्रिंट हमारे बचपन के अनुभवों से निर्धारित होता है।
जो व्यस्क रिश्ते हम आसपास देखते हैं वो हमारे अंतर्मन में छाप छोड़ते हैं और हम अनजाने में अपने रिश्तों में वैसे ही फैसले लेते हैं, वैसी ही अपेक्षाएँ रखते हैं। ये intergenerational trauma का हिस्सा माना जाता है।
कुछ सुझाव:-
- हिंसक शादियों को बच्चों के नाम पर बनाये रखने से बचें, ये उनके जीवन को आगे चलकर बर्बाद करती हैं
- बच्चों से ईमानदारी से उनकी उम्र के हिसाब से सब बात करें
- शादी/रिश्ते को खत्म करना सामान्य बनायें
- हर शादी अलग होती है ये मान कर न चलें कि हमेशा सब के वादे और अपेक्षाएं
एक सी नहीं होंगी - परफेक्ट कपल, परफेक्ट परिवार, परफेक्ट शादी के विचार को त्याग दें इसका सब पर बेवजह प्रेशर है
-पार्टनर से हर तरह की बात करने की ईमानदारी जहाँ नहीं हो वो रिश्ता बेकार है