अनुज अग्रवाल-
ED, CBI, Income tax के इस युग में नीतीश कुमार ने जो हिम्मत दिखाई है वो काबिले तारीफ है….
इन दोनों ने कोई बाड़ेबंदी नहीं की, विधायकों को किसी रिसॉर्ट में नहीं रुकवाया, पानी की तरह पैसे बहाकर चोरों की तरह रात के अंधेरों में प्राइवेट जेट से जाकर साजिशें नहीं रची।
सामने से पूरी ईमानदारी दिखाते हुए दिन के उजाले में एन डी ए छोड़ी है…
एक 43सीटों वाली पार्टी के मुखिया ने 74 सीटों वाली देश की सबसे विशाल पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया
आज नीतीश ने अपना कद बहुत बड़ा कर लिया है.
मोदी शाह ने महाराष्ट्र समेत पूरे देश में जो किया उसके सामने नीतीश का अवसरवाद बहुत छोटा नजर आता है. हर आदमी अपनी स्वायत्तता बचा के रखना चाहता है।
श्रवण-
भाजपा को धक्का तो लगा है पर वो उबर जाएगी।इससे बड़ा धक्का लगा था जब नीतीश और लालू ने सरकार बना ली थी।इन्होंने कार्यकाल भी पूरा नहीं होने दिया और आ गए सरकार में। महाराष्ट्र और एमपी में भी इन्होंने हारी हुई बाजी जीती।
हकीकत यही है कि जदयू का नीतीश के बाद कुछ भविष्य नहीं है। तेजस्वी राजद को और अखिलेश सपा को कहां तक संभाल पाएंगे और संभाल पाए भी तो राज्य तक ही सिमटे रहेंगे ये ट्रेंड से पता लगता है।बंगाल में ममता और उड़ीसा में पटनायक भी सीमित हैं।
इसलिए भाजपा या तो इनको निगल लेगी या ये छुटभैया के रूप में बचे रहेंगे। आज की राजनीति तो भाजपा ही तय कर रही है।भाजपा समर्थक नहीं हूं।पर भाजपा हिलती हुई लग तो नहीं रही है।उनकी चिल्ल पो उनकी घबराहट नहीं स्ट्रेटजी का अंग है।
प्रवीण बाग़ी-
यह पलटी क्यों ?
कल तक जो बातें हवा में तैर रही थीं वे आज हकीकत में बदल गई है। बिहार में एक बार फिर जदयू और भाजपा का गठबंधन टूट गया है। नीतीश और भाजपा की राहें अलग -अलग हो गई हैं। जिस राजद ने नीतीश कुमार को पलटू कुमार का नाम दिया था वे उसी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पहले नीतीश उनका साथ छोड़कर दोबारा भाजपा के साथ आये थे। तेजस्वी ने आज तक उन आरोपों का जवाब नहीं दिया इसके बावजूद नीतीश का उन्हें फिर गले लगाना हैरान करनेवाला है।
जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश के नजदीकी विजय कुमार चौधरी ने सोमवार की रात बयान जारी कर एनडीए छोड़ने की अटकलों को ख़ारिज किया था। उन्होंने कहा था की दोनों दलों में कोई समस्या नहीं है। शीर्ष नेताओं के बीच बराबर बात होती रहती है। गठबंधन बहुत अच्छे से चल रहा है। सांसदों की बैठक आरसीपी सिंह के मसले पर विचार करने के लिए बुलाई गई है। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। राजद के प्रदेश अध्यक्ष और लालू के भरोसेमंद जगदानंद सिंह ने भी अपने बयान में कहा था की नीतीश के साथ सरकार बनाने का कोई सवाल ही नहीं है। यानी दोनों दल खुल कर सच बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। हालांकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह इस ओर संकेत कर चुके थे।
राजनीति में टूटना और जुड़ना कोई नई बात नहीं है। ज्यादातर गठबंधन सत्ता पाने के लिए बनते हैं। लेकिन यहां तो नीतीश कुमार खुद मुख्यमंत्री थे। कम सीटें होने के बावजूद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। यह बात वे खुद स्वीकार चुके हैं। फिर ऐसा क्या हुआ की उन्हें एनडीए से अलग होना पड़ा ? यह गहरा राज है। यह राज नीतीश कुमार ही खोल सकते हैं। उन्हें जनता, जिसे वे मालिक कहते हैं, को पूरी बात विस्तार से बताना चाहिए, अगर वे सचमुच जनता को मालिक मानते हैं तो।
नीतीश स्वच्छ छवि वाले नेता हैं। उन्हें बिहार को जंगल राज की बदनामी से मुक्त करा कर विकास की राह पर ले जाने का श्रेय है। कानून के शासन को उन्होंने पुनः बिहार में स्थापित किया है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
वे बिहार की बेहतरी के लिए काम करने का दावा करते रहे हैं। पर बार -बार पलटी मारने से उनकी छवि सचमुच पल्टूराम की बन गई है। पलटू राम शब्द अब उनके साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया है। नये गठबंधन से बिहार का क्या फायदा होगा ? क्या भाजपा के साथ वे बिहार का भला नहीं कर पा रहे थे ? भाजपा ऐसा क्या नहीं कर रही थी जो वे राजद के सहयोग से कर लेंगे ? उन्हें ये सारी बातें स्पष्ट करनी चाहिए। मूल सवाल यह है कि यह गठबंधन बदल जनता के लिए है या कुर्सी के लिए ? क्या इसका जवाब मिलेगा ?