Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

बड़े चैनल के गुस्सैल मैनेजिंग एडिटर कहीं अजित अंजुम तो नहीं!

Vikas Mishra : एक नौजवान, जोशीला और अच्छे चैनल का पत्रकार एक रोज घर आया। बोला-सर, मैं इस्तीफा देना चाहता हूं। मैं चौंका, क्योंकि अपने चैनल में उसकी अच्छी मौजूदगी है, संपादक उससे खुश हैं, फिर इस्तीफा क्यों? उसने बताया कि बॉस ने कहा है इस्तीफा दे दो। ये वही बॉस थे, जो उसकी खबरों पर दर्जनों बार शाबाशी और पांच बार सर्टिफिकेट दे चुके थे। मैंने समझाया-गुस्से में होंगे, बोल दिए होंगे। गुस्से की बात के कोई मायने नहीं होते, लेकिन वो मानने को तैयार नहीं, इस्तीफे पर आमादा। बोला- कुछ भी करूंगा, वहां नौकरी नहीं करूंगा, हर नया काम आपको बताकर करता हूं, इसी नाते बताने आया हूं। इसके बाद वो इस्तीफे का मजमून लिखवाने पर जोर देने लगा, क्योंकि इस्तीफे का उसका ये पहला अनुभव था। मैंने लिखवा दिया।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script> <p>Vikas Mishra : एक नौजवान, जोशीला और अच्छे चैनल का पत्रकार एक रोज घर आया। बोला-सर, मैं इस्तीफा देना चाहता हूं। मैं चौंका, क्योंकि अपने चैनल में उसकी अच्छी मौजूदगी है, संपादक उससे खुश हैं, फिर इस्तीफा क्यों? उसने बताया कि बॉस ने कहा है इस्तीफा दे दो। ये वही बॉस थे, जो उसकी खबरों पर दर्जनों बार शाबाशी और पांच बार सर्टिफिकेट दे चुके थे। मैंने समझाया-गुस्से में होंगे, बोल दिए होंगे। गुस्से की बात के कोई मायने नहीं होते, लेकिन वो मानने को तैयार नहीं, इस्तीफे पर आमादा। बोला- कुछ भी करूंगा, वहां नौकरी नहीं करूंगा, हर नया काम आपको बताकर करता हूं, इसी नाते बताने आया हूं। इसके बाद वो इस्तीफे का मजमून लिखवाने पर जोर देने लगा, क्योंकि इस्तीफे का उसका ये पहला अनुभव था। मैंने लिखवा दिया।</p>

Vikas Mishra : एक नौजवान, जोशीला और अच्छे चैनल का पत्रकार एक रोज घर आया। बोला-सर, मैं इस्तीफा देना चाहता हूं। मैं चौंका, क्योंकि अपने चैनल में उसकी अच्छी मौजूदगी है, संपादक उससे खुश हैं, फिर इस्तीफा क्यों? उसने बताया कि बॉस ने कहा है इस्तीफा दे दो। ये वही बॉस थे, जो उसकी खबरों पर दर्जनों बार शाबाशी और पांच बार सर्टिफिकेट दे चुके थे। मैंने समझाया-गुस्से में होंगे, बोल दिए होंगे। गुस्से की बात के कोई मायने नहीं होते, लेकिन वो मानने को तैयार नहीं, इस्तीफे पर आमादा। बोला- कुछ भी करूंगा, वहां नौकरी नहीं करूंगा, हर नया काम आपको बताकर करता हूं, इसी नाते बताने आया हूं। इसके बाद वो इस्तीफे का मजमून लिखवाने पर जोर देने लगा, क्योंकि इस्तीफे का उसका ये पहला अनुभव था। मैंने लिखवा दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरा आकलन था कि इसका इस्तीफा मंजूर नहीं होगा, मैने उसे बताया भी था। उसने इस्तीफा मेल किया, अगले दिन दफ्तर गया, बॉस से मिला, उन्होंने फिर डांट लगाई, बोले-जाओ काम करो, साहबजादे बड़े ताव में इस्तीफा देने चले हैं…।

दरअसल कोई भी इंसान जब गुस्से में होता है तो दूसरे को ऐसी बात बोलता है, जिससे सामने वाले को पीड़ा पहुंचे, चोट पहुंचे। ये बहुत स्वाभाविक है। सारी गालियां इसी वजह से बनी हैं। भाई-बाप-बेटा के लिए कोई गाली नहीं बनी। मां, बहन और बेटी के लिए गालियां बनीं, क्योंकि इंसान एक बार अपने भाई और बेटे के लिए भले कुछ सुन ले, लेकिन जहां मां-बहन-बेटी की इज्जत की बात आई तो उसका खून खौल उठेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सभ्य समाज में मां बहन की गालियां नहीं दी जातीं, गुस्से में सामने वाले को पीड़ा पहुंचाने के लिए वो कुछ न कुछ तो कहेगा ही। ये गुस्सा भी कुछ और नहीं, उसकी पीड़ा ही है। दुखी होकर ही वो गुस्सा करता है। एक बड़े चैनल के मैनेजिंग एडिटर का गुस्सा बहुत मशहूर है। (हालांकि सुना है कि अब वो उतना गुस्सा नहीं करते) दरअसल उनमें काम का जुनून है, कई बार उनके जुनून की राह में किसी की काहिली आ जाती है तो गुस्सा फट पड़ता है। मैंने पूछा इतना गुस्सा आप क्यों करते हैं, पता नहीं क्या-क्या बोल जाते हैं। वो बोले-क्या करूं, जब गुस्सा आता है, कुछ बोलता हूं, तभी अपने ऊपर भी गुस्सा आ जाता है कि आखिर क्यों इतना गुस्सा आ गया, क्यों इतना बोल रहा हूं, इसके बाद गुस्सा दोगुना हो जाता है..। और हां, इनके बारे में ये भी बता दूं कि जिस तरह इनका गुस्सा सार्वजनिक तौर पर जाहिर होता रहा, वैसे ही सार्वजनिक रूप से तारीफ करने के लिए भी वो मशहूर हैं।

कोई इंसान लगातार क्रोध में नहीं रह सकता। उतना ही सच ये भी है कि कोई इंसान लगातार खुश भी नहीं रह सकता। क्रोध उतरता है तो पछतावा भी होता है, कुछ बिरले हैं जो इस पछतावे को पश्चाताप में तब्दील कर देते हैं। गुस्से के लिए खेद व्यक्त करते हैं। मैं भी ऐसा करता हूं, जिसे गुस्से में कुछ कह दिया, उसे मनाने भी पहुंच जाता हूं। हम लोगों का बचपन तो भरपूर प्यार, भरपूर डांट-फटकार और भरपूर मार से भरा पूरा रहा है। वही पिता, मां, भइया कभी प्यार का सागर लुटाते, तो कभी गुस्से में पीट देते या फिर बुरी तरह डांट पड़ती। तो फिर याद क्या रखें, उनकी डांट फटकार या फिर उनका प्यार।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरे भीतर जब भी किसी के बारे में बुरे ख्याल आते हैं, फौरन मैं उस इंसान की अच्छी बातें सोचना शुरू कर देता हूं। बैलेंसिंग का काम भीतर होता है। क्योंकि ये भी सच है कि कोई इंसान एकदम अच्छा नहीं हो सकता और न ही कोई इंसान एकदम से बुरा। हर अच्छे में बुराई हो सकती है। हर बुरे में कोई अच्छाई छिपी हो सकती है। तो क्या चांद में दाग देखना जरूरी है?

एक बार मेरा बनारस का एक दोस्त इलाहाबाद पहुंचा था। मैं एमए में था, किराए के कमरे में रहता था। वो दोस्त रात में जोर जोर से ठहाके लगाकर हंसने लगा। चिल्लाने भी लगा। मैंने उसे टोका। बताया कि आसपास फैमिली रहती है और हम लोग उनकी नजर में बहुत शरीफ बच्चे हैं। फिर क्या था, दोस्त गुस्से में आ गया। अटैची उठाई, बोला-दोस्ती खत्म, मैं अभी बनारस जाऊंगा। इतना अच्छा दोस्त…यूं खोना नहीं चाहता था। मैं जानता था कि अगर इसे मनाने की कोशिश की तो गुस्सा और भड़केगा। मैंने कहा-चले जाना, मैं तुम्हें स्टेशन पहुंचाकर आऊंगा। बस, खाना खा लो। वो बोला-नहीं खाऊंगा। मैंने कहा-आखिरी बार मेरे हाथ का बना खाना तो खा लो। खैर राजी हुआ, खाना बना हुआ था। खाना परोसा, खाने के बाद वही जाने की जिद। मैंने कहा-सात साल पुरानी हमारी दोस्ती है और सात सेकेंड का मेरा टोकना। चलो रास्ते में बस में बैठकर सोचना, सात सालों में कितने अच्छे पल हम लोगों के गुजरे हैं। अगर सात साल की दोस्ती पर ये सात सेकेंड भारी पड़ रहे हैं, तो इस दोस्ती के कोई मायने नहीं। दो मिनट के भीतर ही वो दोस्त रोने लगा, फिर मैं भी..। खैर, दोस्ती आज भी उतनी ही पक्की और मजबूत है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नई पीढ़ी से भी मैं कहना चाहता हूं कि अतिप्रतिक्रियावादी होना जायज नहीं है। अगर कोई अपना, कोई बड़ा किसी बात पर गुस्सा होकर कुछ कह दे तो उसकी उस बात की फौरी प्रतिक्रिया की बजाय, पहले की उसकी कोई अच्छी बात याद करो, सही फैसला भीतर से आ जाएगा। अपने से बड़े लोग अपने प्रियजनों पर गुस्सा होने के बाद पछताते हैं, लेकिन अपने पद और गरिमा के चलते वो ये पछतावा व्यक्त नहीं कर पाते। लिहाजा उनके बोल पर मत जाइए, दिल से वो कैसे हैं, इस पर ध्यान दीजिए। और हां, जिसने आपके लिए कुछ भी अच्छा न किया हो, फिर भी आपको कोपभाजन बनाए तो ईंट का जवाब पत्थर से दीजिए।

आजतक में कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र के इस एफबी स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से पत्रकार प्रभात शुंगलू का कमेंट् कुछ इस प्रकार हैं….

Advertisement. Scroll to continue reading.

Prabhat Shunglu बहुत भले हो विकास तुम। पत्रकार हो मगर कड़वे सच को चाशनी में लपेट कर परोस रहे। ये तो वही बात हुई की किसी बड़े राजनीतिक स्कैम पर कोई अख़बार संपादकीय छापे जिसकी हेडलाइन हो – ओह, हाओ क्यूट। और अंदर कुछ ऐसा लिखा हो कि पार्टी ने आश्वासन दिया है कि आइंदा ऐसे स्कैम से परहेज़ करेगी इसलिये हम अपने अख़बार में कल से इस मुद्दे पर कोई ख़बर विरोधियों के हवाले से नहीं छापेंगे। न्यूज़रूम के अपने जूनियर सहयोगियों पर वो ही सीनियर चीख़ता चिल्लाता है जिसे ख़ुद अपना काम नहीं आता। उनमें वो लोग भी शामिल हैं जिनका नाम तुम अपनी पोस्ट में ज़ाहिर करने से झिझक रहे। न्यूज़रूम में नौकरी से निकाल देने की धमकी उसी टाइप के ही सीनियर्स देते हैं। ये एक बीमारी है। वो बीमार लोग हैं जिनकी तारीफ़ों के पुल बाँधने में आपने अपनी पोस्ट में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अब आप भी सीनियर हैं। इस बीमारी को दूर करने के बारे में थोड़ा सोचियेगा। बीमार लोगों से बीमारी छिपाना ठीक नहीं। उनको ये तो बताना ही होगा पड़ेगा कि वो बीमार हैं। बीमार लोगों का इलाज यहां से शुरू होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement