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आज की सबसे जरूरी खबर थी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा की प्रतिक्रिया, ढूंढ़िये  

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों में सुप्रीम कोर्ट का कल का फैसला ही लीड होना है। पहला पन्ना इसी मूल खबर और संबंधित खबरों से भरा होना है। उनकी चर्चा करने से पहले यह याद रखा जाना चाहिये इसी सरकार के पिछले प्रमुख फैसले या कार्रवाई को मनमोहन सिंह ने, ऑर्गनाइज्ड लूट एंड लीगलाइजड प्लंडर कहा था। नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत देर से आया था और 8 नवंबर 2016 के फैसले पर सुनवाई नवंबर 2022 में शुरू हुई थी। इससे पहले, 16 दिसंबर 2016 को  सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने मामले को संविधान पीठ को भेज दिया था और साथ ही सभी हाईकोर्ट को इससे सबंधित मामले सुनने से रोक लगा दी। नतीजतन नोटबंदी चलती रही, उसका नफा-नुकसान होता रहा। पूरा हुआ। सरकार ने सही किया या गलत जिसे फायदा होना था हुआ, जिसे नुकसान होना था हुआ। सुप्रीम कोर्ट की जानकारी में। नाक के नीचे। संभव है, 50 दिन में सपनों के भारत के आश्वासन पर आंदोलन रुका हो या रोका गया हो। बाद में वह भी नहीं हुआ और इससे साबित होता है कि सरकार मौजूदा व्यवस्था में मनमानी कर पा रही है या कर रही है। इसमें जनता का नुकसान और पार्टी का पार्टी फायदा दोनों है। व्यवस्था ठीक नहीं चल रही है वह अपनी जगह है ही।

कांग्रेस के खाते बंदखुले

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यही नहीं, कल के फैसले के बाद आज खबर आई कि आयकर विभाग ने किसी मामले में कांग्रेस के चार प्रमुख खाते बंद कर दिये हैं। वैसे तो यह सामान्य कार्रवाई लगती है लेकिन कल के फैसले  बाद क्या यह बिना सोचे समझे किया गया होगा या पहले से चल रहा था तो शोर मचने से पहले ठीक नहीं कर दिया जाना चाहिये था। क्या अधिकारियों ने सरकार से पूछे बिना ऐसा निर्णय किया होगा जो चुनाव और चुनाव की तैयारियों पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। जाहिर है, सब इस व्यवस्था में हो रहा है और इस व्यवस्था की कार्यशैली है कि विपक्ष को कमजोर और मजबूर किया जाये। खाता बंद करना उसी दिशा में था। यह अलग बात है कि शोर मचने पर कुछ ही घंटे में खाते खोल दिये गये। पर सवाल है कि ऐसा ही था तो बंद करने की क्या जरूरत थी? वह भी तब जब सबको पता है कि अब लोगों के पास नकद नहीं होता है और 350 करोड़ रुपये नकद मामले में सरकारी कार्रवाई से कांग्रेस और पार्टी को बदनाम करने की कोशिश तो हुई पर कार्रवाई बहुत औपचारिक हुई। संबंधित सांसद ने अपना रिटर्न संशोधित कर लिया है और बाकी के मामले में अगले साल के रिटर्न का इंतजार है।     

नोटबंदी

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नोटबंदी के मामले में देर से जब सुनवाई शुरू हुई तो पीठ ने याचिकाकर्ता के वकीलों से पूछा था कि क्या मामले से जुड़े मुद्दे ‘अब’ ऐकेडमिक नहीं रह गये हैं? इसके जवाब में कहा गया था कि नोटबंदी का मकसद भले पूरा हो गया है उसकी संवैधानिकता अभी भी मुद्दा है। नोटबंदी पर जो फैसला है उसे इस आलोक में देखा जाना चाहिये। और मोटे तौर पर माना जा सकता है कि सरकार नोटबंदी कर सकती है, किया तो ठीक किया था। पर मामला उसकी जरूरत, उसकी लाभ-हानि और लागू करने के तरीके के साथ निहित स्वार्थ और घर में शादी है, पैसे नहीं हैं जैसी आम आदमी की विशेष परेशानियों को भी देखने का था। देरी के कारण ये मुद्दे बेमतलब हो चुके थे और सरकार ने अपने अधिकार और बहुमत का दुरुपयोग भी किया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटना भी रहा है। दूसरी ओर, सरकार अपनी मनमानी के  फायदे ले चुकी या जनता को जो नुकसान होना था हुआ। देश को कुछ नहीं मिला या मिला कि नहीं वह भी रह गया। इसलिए ताजा मामले से अगर यह साबित होता है कि सरकार की नीयत में खोट था तो यह पहला है और सरकारी स्तर पर अपराध हुआ है। उसकी सजा भी होनी चाहिये। खासकर इसलिये कि मनीष सिसोदिया औऱ हेमंत सोरेन जेल में हैं। लालू यादव चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में जब तक ऐसे मामले तत्काल सुनने की व्यवस्था नहीं हो तब तक नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार को चुनाव लड़ने और दूसरे के चुनाव को प्रभावित करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

आज इस खबर की प्रस्तुति ज्यादातर अखबारों में पांच और तीन कॉलम के अनुपात में हैं। इंडियन एक्सप्रेस में मोदी की गारंटी के अलावा कोई विज्ञापन नहीं है। और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खबर अकेले इंडियन एक्सप्रेस में बैनर हेडलाइन है। किसान आंदोलन की खबरें आज दब गई हैं लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में चिन्ताजनक खबर है। इसके अनुसार पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है छर्रे (पेलेट) की जख्म से कम से कम तीन किसानों की नजर चली गई है। अमर उजाला में लीड पांच कॉलम में है किसान आंदोलन तीन कॉलम में फोटो के साथ है पर इसमें किसानों की आंख खराब होने की खबर शीर्षक में नहीं है। यह जरूर है कि हरियाणा के संगठन आज टोल फ्री कराएंगे। नवोदय टाइम्स ने इलेक्ट्रल बांड की खबर के साथ दिल्ली में आग लगने की खबर छापी है। किसानों की खबर यहां पंजाब में ट्रेनें रोकीं शीर्षक से है। आज भारत बंद की अपील भी शीर्षक में है।

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आइये, अब बाकी अखबारों के पांच तीन के अनुपात को देखें। हिन्दुस्तान टाइम्स में इसके साथ की खबर है, प्रधानमंत्री ने आठ भारतीयों को रिहा करने के लिए अमीर को धन्यवाद दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले भी एक पन्ना होता है। इसलिए पहले पन्ने पर विज्ञापन होने के बावजूद पहले पन्ने पर कुछ खबरें इसपर आ जाती हैं जो विज्ञापन होने के कारण पहले पन्ने पर संभव नहीं हो पाती है। किसानों की खबर आज इस पन्ने पर है। और शीर्षक से बताया गया है कि वार्ता आधी रात तक खिंची। टाइम्स ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट की खबर पांच कॉलम में है। बाईं तरफ सिंगल कॉलम की खबरें हैं जबकि दाई ओर दिल्ली का बजट कम से कम 10 दिन देर से आने और इस देरी में केंद्र का दोष नहीं  होने की सूचना है। बाई तरफ सिंगल कॉलम की खबरों में सबसे ऊपर है, ईडी ने विेदेशी मुद्रा मामले में तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा को 19 फरवरी को समन किया है। यहां पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर कतर के अमीर को प्रधानमंत्री के धन्यवाद की खबर फोटो के साथ है। इसके साथ यह भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने अमीर के साथ भिन्न क्षेत्रों में संबंध मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की।

द हिन्दू में भी सुप्रीम कोर्ट वाली खबर पांच कॉलम में है। दो कॉलम में अंदर की खबरों की सूचनाओं की  पट्टी बाईं तरफ और दाईं तरफ सिंगल कॉलम की खबरों में किसानों की खबर सबसे ऊपर। शीर्षक है, तीसरे दौर की वार्ता जारी। द हिन्दू में कतर की खबर पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। यहां शीर्षक है, मोदी ने कतर के शासक को भारत आने का निमंत्रण दिया। इन सारी बातों के साथ आज सबसे महत्वपूर्ण है, फैसले पर भाजपा की प्रतिक्रिया। अव्वल तो संबंधित पक्ष का क्या कहना है और उसे भी महत्व देना पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों में है लेकिन भाजपा खुद अपना पक्ष देती नहीं है कई मामलों में उसका पक्ष लेने की जरूरत नहीं लगती और जब प्रधानमंत्री ही मौके-बेमौके चुप्पी साध लेने के लिए जाने जाते हैं तो पक्ष लेना मुश्किल भी है। दूसरी ओर, भाजपा, उसकी ट्रोल सेना, व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी आदि आदि अपनी जरूरत अनुसार प्रचारकों की टीम मैदान में उतार देती है। इसलिए इस मामले में भाजपा की प्रतिक्रिया मुझे सबसे महत्वपूर्ण लग रही थी और मैं कल से ढूंढ़ रहा हूं। आज अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रमुखता से छापा है। पहली बार मैं विशेष तौर पर अन्दर के पन्ने पर प्रतिक्रिया दिखे तो उसकी भी चर्चा करूंगा क्योंकि सोशल मीडिया पर सन्नाटा है।

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भाजपा की प्रतिक्रिया

आज अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने भाजपा का पक्ष पहले पन्ने पर तीन कॉलम में प्रमुखता से छापा है। फ्लैग शीर्षक है, परफेक्ट हैज बिकम द एनिमी ऑफ गुड इसके जरिये यह कहने की कोशिश की जा रही है कि एकदम परफेक्ट यानी कायदे-कानूनों, आदर्शों के अनुसार होना अच्छाई का दुश्मन हो चला है। मोटे तौर पर सरकार अच्छा करना चाहती है पर परफेक्ट होने के चक्कर में ऐसा कर नहीं पा रही है। इसीलिए सीबीआई प्रमुख हो या चुनाव आयुक्त अपनी पसंद का बनाने की व्यवस्था की गई है और मानवाधार आयोग का प्रमुख अपनी पसंद के जज को बनाया गया है। यह टू मच डेमोक्रेसी कहने और उससे परेशानी जैसा मामला है और जाहिर है बुलडोजर चलाने वालों को पसंद नहीं आयेगा पर तब अदालतों ने ही कहा है कि उनकी क्या जरूरत है, बंद कर दिया जाये। हालांकि, वह अलग मुद्दा है। आरोपी को अपराध साबित होने के बाद ही अपराधी कहने की जरूरत अब नहीं समझी जाती है और न सिर्फ मीडया लीक बल्कि झूठे आरोपों की जांच और संबंधित सूचनाएं लीक करके भी आरोपी को बदनाम किया जाता है। ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भाजपा ने बचाव में जो कहा उसका या उसके पक्ष का शीर्षक है, अदालत का सम्मान है, योजना का लक्ष्य पारदर्शिता लाना था (भले पैसे कई गुना ज्यादा आ गये)। इस कथित प्रतिक्रिया के बारे में द टेलीग्राफ ने लिखा है, भाजपा ने कहा है कि फैसला लंबा है और सोच समझ कर जवाब देने के लिए व्यापक तौर पर अध्ययन करने की आवश्यकता है। फैसले पर प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए पार्टी ने इलेक्ट्रल बांड का बचाव किया और जोर देकर कहा कि निर्णय़ बहुत ही प्रशंसनीय उद्देश्य के लिए था जो चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए था। कहने की जरूरत नहीं है कि पारदर्शिता यही थी कि सत्तारूढ़ पार्टी को पता चल जाता कि कौन किसे चंदा दे रहा है जबकि दूसरे दलों और जनता को यह पता ही नहीं चलता कि सत्तारूढ़ पार्टी को किसने-कितना चंदा दिया। किसलिये तो मुद्दा ही नहीं है।   ऐसे में, यहां मुझे बचपन में पढ़ी एक कहानी, रक्षा में हत्या याद आती है और लगता है कि दूसरों को बेवकूफ समझने की भी एक सीमा तय होनी चाहिये। यहां कहानी बताने की जरूरत नहीं है पर कहानी की सीख यह नहीं थी कि रक्षा में हत्या हो जाये तो जायज है या अपराध नहीं है। अच्छाई की कोशिश में भी बुराई नहीं होनी चाहिये और नीयत अच्छाई की थी इसलिए परिणाम जायज है या स्वीकार योग्य ऐसा नहीं होता है। ना ऐसा पढ़ाया, सिखाया या बताया जाता है। फिर भी दलील तो दलील है। संभव है सुप्रीम कोर्ट की मजबूरी रही हो कि वह यह परिणाम होते नहीं देख सकता हो। असंवैधानिक तो कहा ही है। और शायद इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने सूर्य की किरण आने दी। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय की उम्मीद दिखाई।

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