आज तक के संपादक रोहित को इतना जहर बोने क्यों दे रहे हैं?

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Sanjaya Kumar Singh : एक मशहूर टेलीविजन एंकर के बारे में Dilip Mandal की यह पोस्ट पढ़ने लायक है।

“जिस संपादक ने रोहित सरदाना को टीवी में पहली नौकरी दी थी, उन”के दर्द को कौन समझ सकता है. उन्हें क्या मालूम था कि रोहित में इतना जहर भरा है. रोहित तब बेहद मासूम बनकर उनके पास आया होगा. चूंकि मैं उस संपादक को जानता हूं, इसलिए उस दर्द को महसूस कर सकता हूं. अगर उन्हें पता होता कि रोहित की हरकतों से आगे चलकर समाज टूटेगा, तो रोहित को वह नौकरी कतई न मिलती. रोहित की हरकतों से लोगों के मन में नफरत भर रही है. इस दुष्कर्म का बोझ लेकर रोहित पता नहीं क्या बनना चाहता है. वह एक सम्मानित पत्रकार तो कभी नहीं बन पाएगा. हद से हद उसकी हैसियत उस बंदर की होगी, जिसके बनाए पुल पर चढ़कर सेना ने लंका की ओर प्रस्थान किया था. इतिहास तो राजा का होता है, बंदरों का इतिहास नहीं होता. रोहितों का इतिहास में कोई जिक्र नहीं होता. रोहित पत्रकारिता का तोगड़िया बनेगा और आखिर में रोएगा. लेकिन यह होने तक समाज को इसकी कीमत चुकानी होगी. इतनी कड़वाहट क्यों बो रहे हो रोहित? हो सकता है कि निजी जीवन में तुम या तुम्हारे परिवार का कोई दर्द हो. कोई शिकायत हो. लेकिन मासूमों के घर जलाकर उसकी कीमत वसूलोगे क्या? आज तक के संपादक रोहित को इतना जहर बोने क्यों दे रहे हैं? उन्हें ही क्या हासिल हो जाएगा? गाड़ी की लंबाई चार इंच बढ़ भी गई तो क्या? कौन देखता है, कौन जानता है, कौन पूछता है? टीआरपी की वासना में लोगों की जान चली जाएगी. अब तो रुक जाओ. पत्रकारिता नहीं तो इंसानियत की खातिर ही सही.”

दिलीप मंडल की इस पोस्ट के बाद हिन्दी टेलीविजन पत्रकारिता में नियुक्तियों पर यह लेख पढ़िए। इसे मैंने अपनी पुस्तक, ”पत्रकारिता : जो मैंने देखा, जाना, समझा”  www.goo.gl/xBHcEx में भी साभार उद्धृत किया है। इस आलेख की सिफारिश इसलिए कर रहा हूं कि इसके बारे में एक पाठक ने लिखा है, “जितेंद्र जी, आपने जो बयां किया उसे पोस्टर बनाकर दीवारों पर चिपकाना चाहिए”। लिंक यह रहा…

http://old1.bhadas4media.com/article-comment/12842-2013-07-07-08-49-31.html

आलेख जिसकी सिफारिश कर रहा हूं

http://old1.bhadas4media.com/print/12808-2013-07-05-13-58-10.html

हिन्दी पत्रकारिता के पतन को समझना हो तो काम आएगा। खासकर उदारीकरण के बाद के भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में आए लोगों के लिए।

पुनःश्च

आपकी मान्यता (जो भी है, जैसी भी है) का विस्तार होगा अगर आप उस टिप्पणी को पढ़ेंगे। मैंने दिलीप की पोस्ट को बतौर संदर्भ लिया है। लिखा भी है कि इसके बाद इस टिप्पणी को पढ़िए। – किसी ने पढ़कर कमेंट लिखा हो ऐसा नहीं लगता है। सबकी दिलीप (और रोहित के बारे में) एक तय राय है जिसपर बात करने, सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। चूंकि जो राय बनी है वह ऐसे ही, सुनी-सुनाई बातों पर, ऊपरी जानकारी के आधार पर है इसलिए कोई और जानना नहीं चाहता – शायद पढ़ने लिखने का रिवाज ही नहीं रह गया है। या हर कोई समझता है कि ज्यादा जानने की जरूरत नहीं है। जितेन्द्र जी को पढ़िए तो सही। यह पोस्ट दिलीप की पोस्ट पढ़वाने के लिए नहीं है। हिन्दी (टेलीविजन) पत्रकारिता पर आपकी जानकारी बढ़ाने के लिए है।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.



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Comments on “आज तक के संपादक रोहित को इतना जहर बोने क्यों दे रहे हैं?

  • Chandan Kr Singh says:

    दिलीप c मंडल जी को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिये। इनमें खुद जातिवद का ज़हर भरा हुआ है यह पुरुष रोहित से आगे है

    Reply

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