
सरकार और सर्वोच्च न्यायालय को साफ करना चाहिए कि क्या कोई आम आदमी अगर देशद्रोहियों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार देता है, तो उसे देश का सिपाही माना जायेगा या अपराधी. क्योंकि अब सवाल देश की अखंडता का है. सरकार मौन है. न्यायपालिका के घर देर है. ऐसे में सवाल उठता है कि सेना में अपने बच्चे भेजने वाला किसान, मजदूर, फौजी और मध्यमवर्गीय नागरिक देश के बारे में अपमानजनक बातें क्यों बर्दाश्त करे? सरकार और न्यायपालिका की चुप्पी क्या देश के साथ विश्वासघात नहीं है? देश की अखंडता पर चोट क्यों बर्दाश्त किया जा रहा है? क्या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर फिर से देश के विभाजन पर चर्चा होगी? ऐसे देशद्रोहियों को सीधे फांसी या गोली क्यों नहीं मारी जानी चाहिए? सवाल का जवाब चाहिए… सरकार.