कवि, संपादक सुभाष राय का कर्नाटक में 12 वीं शताब्दी की वीरशैव क्रांति पर महत्वपूर्ण काम होगा आप के सामने, दक्षिण की एक खिड़की खुलने वाली है उत्तर में।
12वीं शताब्दी में कर्नाटक के उदुतडि गांव में जन्मी महान और विलक्षण वचनकार, संत और कवि अक्क महादेवी की अनूठी संघर्ष-गाथा आप बहुत जल्द हिंदी में पढ़ पायेंगे। लेखक, पत्रकार, संपादक और कवि सुभाष राय ने अथक परिश्रम से इस जीवंत कथा को अपनी भाषा में प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण काम किया है। इस कथा के अनछुए पहलुओं मसलन वीरशैव आंदोलन, क्रांतिकारी कवि, राजनेता और समाज सुधारक बसवण्णा, उनके सहयोगी और अनुभव मंडप के अध्यक्ष अल्लम प्रभु एवं उस समय सक्रिय अन्य प्रतिभाशाली दलित और स्त्री कवियों के बारे में भी आप इस नयी किताब में पढ़ पायेंगे।
बेशक यह स्त्रियों के सम्मान की कथा है, उनकी अकुंठ प्रतिभा की कथा है। यह स्त्रियों की मुक्ति के लिए उगे अपरिमेय साहस की कथा है। यह स्त्रियों के दुख, उनकी पीड़ा, उनकी यातना, उनके अनादर, उनके अपमान, उनके बहिष्कार की कथा है। यह एक स्त्री के असंभव को चुनने और उसे संभव कर लेने की कथा है। यह कथा सिर्फ अक्क महादेवी की नहीं, उन सारी स्त्रियों की कथा है, जो अपनी अस्मिता के लिए लड़ रही हैं, जो स्त्री को भी मनुष्य की तरह देखे, समझे जाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह स्त्री को देह से परे उसकी सामर्थ्य, उसकी प्रतिभा, उसके बौद्धिक वैभव के सामाजिक स्वीकार के लिए चल रहे युद्ध की कथा है। यह स्त्री के अपने प्रेम को पा लेने की कथा है।
अक्क भले 800 वर्ष पहले हुई हों, लेकिन उनके व्यक्तित्व का उजास आज भी स्त्रियों के लिए प्रेरक है। क्या आज की स्त्री अपने रास्ते चुनने की स्वतंत्रता नहीं चाहती है? क्या आज की स्त्री अपनी प्रतिभा के वैभव के प्रति स्वीकार नहीं चाहती है? क्या आज की स्त्री प्रेम करने और प्रेम पाने की अनवरोध स्वीकृति नहीं चाहती है? क्या आज की स्त्री स्वयं की सत्ता को कमतर आंके जाने की प्रवृत्ति से मुक्ति नहीं चाहती है? क्या आज की स्त्री देह मात्र होने या समझे जाने या इस कारण आने वाली दुर्वह यातनाओं को अलविदा होते हुए नहीं देखना चाहती? यही लड़ाई तो है अक्क के जीवन की भी। फिर अक्क आज की स्त्री के लिए प्रेरक क्यों नहीं होंगी?
महादेवी को महादेवी अक्क बनाने में कुछ महान संत कवियों का भी बड़ा योगदान रहा है। बसवण्णा और अल्लम प्रभु नहीं होते तो अक्क की यात्रा कुछ ज्यादा कठिन हो जाती, उनकी मुश्किलें कुछ और दुरूह हो जातीं। इसलिए बसवण्णा, अल्लम प्रभु, उनके दर्शन, उनके जीवन, उनकी उत्कृष्ट रचनाओं और उनके महादेवी पर प्रभाव को जाने बगैर अक्क को पूरी तरह समझना संभव नहीं हो सकता। वह स्त्री मुक्ति का स्वर्ण काल था। यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि अक्क के समकक्ष प्रतिभा दीप्ति से आलोकित कई स्त्री कवि 12वीं सदी के कल्याण में थीं। अनुभव मंडप में सक्रिय तीन सौ से ज्यादा कवियों में कम से कम 60 स्त्रियां थीं।
कोई भी समय अपने इतिहास से मुक्त नहीं होता। क्या यह जानना अर्थपूर्ण नहीं होगा कि बुद्ध के समय से ही लगातार स्त्रियां अपनी स्वाधीनता के लिए लड़ती आयीं हैं। इस संघर्ष का अपना लम्बा इतिहास है। हर काल में कुछ अत्मदीप्त स्त्रियों ने, आज की स्त्रियों की पुरखिनों ने, स्त्री मुक्ति की अलख जगायी। अवइयार, कराइकल अम्माइयार, आंडाल, ललद्यद, जनाबाई, सहजोबाई से मीरा तक अनेक उदाहरण मौजूद हैं। इन सबकी आत्मा में, शब्दों में स्त्रियों की पीड़ा और उनके मुक्ति संघर्ष की ध्वनियां हैं। मत समझिये कि ये भगतिनें थीं, ये सब विद्रोहिणियां थीं, जिन्होंने अपने लिए असंभव पथ चुने और रास्तों के तमाम जंगलों को पार करते हुए, पत्थरों से टकराते हुए अपने उत्तरवर्तियों के संघर्ष को आसान बनाया। क्या स्त्रियों को इन पुरखिनों के संकल्प से परिचित होने की जरूरत नहीं है?
महादेवी के संग्राम में इन सबका संग्राम निहित है। इन स्वतंत्रचेता, अनन्यता के आलोक से भरी हुई स्त्रियों की कथा कहने वाले हैं सुभाष राय । केन्द्र में होंगी महादेवी। महादेवी की अतुलनीय संघर्ष गाथा, उनके संघर्ष का वचन गान, उनका समय, उनके समय के मनुष्यता के पक्षधर क्रातिकारी संत कवि, उनके समय की अनेक जाग्रत स्त्रियां, सामाजिक परिवर्तन में उनकी ज्योतित भूमिका, यह सब कुछ कहने वाले हैं श्री राय।
इस काम का श्रेय आदरणीय अशोक वाजपेयी जी के स्नेह, रजा फाउंडेशन के सहयोग और अनेक कन्नड़ विद्वानों की सक्रिय मदद को जाता है। इंतजार खत्म होने वाला है। कर्नाटक की भूमि से उगे स्वाधीनता के सूर्य का आलोक हिंदी में दाखिल होने वाला है। स्त्री मुक्ति का एक महान अध्याय अपने पन्ने पलटने वाला है। उत्तर में दक्षिण की एक खिड़की खुलने वाली है। एक केशाम्बरा के विकट, अद्वितीय और आकर्षक स्वप्न और संघर्ष की कथा आप के रोम-रोम से टकराकर प्रतिध्वनित होने वाली है। एक साथ एक विद्रोहिणी की कथा और उसके वचनों का गेय भावांतर भी आप तक पहुंचने वाला है। बस याद रखिये और प्रतीक्षा कीजिये। बहुत जल्द हिंदी में अक्क महादेवी की कठिन, मार्मिक और अनूठी गाथा आप के हाथों में होगी।
12 वीं सदी के कल्याण में अनुभव मंडप एक अद्भुत जगह थी, जहां स्त्रियाँ, शूद्र, दलित, अस्पृश्य सभी एक साथ बैठकर संवाद करते थे। समाज में सबको बराबरी के अधिकार थे। उस अनुभव मंडप का कोई अवशेष नहीं है। कहते हैं, वे गुफाएँ ही थीं, जिन्हें अनुभव मंडप में बदल दिया गया था। यहीं अक्क महादेवी का अपने समय के महान मिस्टिक और अनुभव मंडप के अध्यक्ष अल्लम प्रभु से सामना हुआ था। महादेवी ने अल्लम को निरुत्तर कर दिया था। अल्लम ने उन्हें अक्क यानी बड़ी बहन की उपाधि दी थी। तब से वे अक्क महादेवी के नाम से जानी जाने लगीं। बसवकल्याण में आधुनिक अनुभव मंडप बन रहा है। यह कुछ वर्षों में बनकर तैयार हो जायेगा। माडल देखकर लगता है कि यह बेशक एक भव्य और अद्वितीय भवन होगा
अक्क महादेवी के साथ कल्याण में एक साथ 60 से भी ज्यादा प्रतिभासम्पन्न स्त्रियां अनुभव मंडप के संवाद और विमर्श में हिस्सा ले रही थीं। कविताएं लिख रही थीं।कई स्त्री वचनकारों ने प्रेम को बचाने के लिए युद्ध का मार्ग भी चुना। नगलाम्बिके और गंगाम्बिके ने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रेम, भक्ति और शिवत्व को एक नया अर्थ दिया। भक्त मनुष्यता के लिए मनुष्यता की राह चुनता है लेकिन जब मनुष्यता पर ही संकट हो, जब मनुष्यता के साहित्य पर खतरा हो, तब भी क्या उसे ध्यान, भजन में, पूजा-पाठ में ही लगे रहना चाहिए? नहीं, यह गलत होगा। मिथकों में स्वयं शिव भी जरूरत होने पर संग्राम करते हैं, लड़ते हैं, कभी विजयी होते हैं, कभी पराजित भी महसूस करते हैं। भक्त का रास्ता स्वयं शिवत्व धारण करने का रास्ता है। शिवशरणियां कठिन वक्त में स्वयं को साबित करने में पीछे नहीं हटतीं। इन दोनों स्त्री वचनकारों का वचन साहित्य के रख-रखाव और संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान था। जब संकट आया और बिज्जल की सेना और शिवशरणों में युद्ध छिड़ा, उस समय नगलाम्बिके ने शरणों का नेतृत्व किया। बिज्जल के मारे जाने के बाद जब हालात बेकाबू हो गए और शरण इधर-उधर भागने लगे तब उन्होंने शरणों की उस टुकड़ी का मोर्चा संभाला, जो वचन साहित्य को सुरक्षित कल्याण से उलवी ले जा रही थी। उनकी टुकड़ी में चेन्न बसवण्णा और गंगाम्बिके भी शामिल थीं। वे वचन साहित्य को बिज्जल की सेना के हाथों नष्ट होने से बचाने में सफल रहीं।
बसवण्णा ने बिना तोप-तलवार के उस समय जिस तरह लोगों के जीवन में बदलाव उपस्थित किया, वह अभूतपूर्व है। कवित्व में उन्हें कालिदास की तरह देखा जाता है, राजनीति में आद्य समाजवादी के रूप में और भक्ति में सीधे सर्वात्म से तादात्म्य स्थापित करने वाले शिवता के अपूर्व गायक के रूप में। ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी उन्होंने अपनी पहचान एक अछूतपुत्र के रूप में बनायी। वे एक शुद्र वचनकार को अपना पिता कहते हैं और खुद को अस्पृश्य कुल से जोड़ते हैं। दलित चेतना का प्रखर रूप उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है। स्त्रियों का आदर, उनकी स्वाधीनता की प्रतिष्ठा का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए। महादेवी अक्क अपने वचनों में उन्हें बहुत आदर से याद करती हैं और कहती हैं कि उनका सौभाग्य कि बसवण्णा के चरणों में उन्हें जगह मिली। बसवण्णा उन्हें मां कहकर संबोधित करते हैं। डा. एम एम कलबुर्गी कहते हैं कि सामाजिक बराबरी का बसवण्णा का दर्शन बुद्ध से भी महत्वपूर्ण था। कर्नाटक अपने इस समाज नायक के प्रति नतमस्तक है। बसवकल्याण में तो अदना आदमी भी गरीबों, दलितों और स्त्रियों की मुक्ति के इस योद्धा को जानता-पहचानता है। बसवण्णा ने उस अंधकाल में अंतर्जातीय विवाह कराने की कोशिश की थी, जिस कारण उन्हें अपने ही नरेश से टकराना पड़ा । उन्होंने प्रधानमंत्री पद को ठोकर मार दी। बसवण्णा ने ही प्रश्न और संवाद के अद्भुत मंच अनुभव मंडप की स्थापना की। बसवण्णा ने ही इष्टलिंग की अवधारणा प्रस्तुत की, जो एक आध्यात्मिक क्रांति का आधार बनी। वे ऐसे युग परिवर्तक क्रांतियोद्धा थे, जो समूचे समाज की शिवता के लिए आजीवन लड़ता रहा।
इसके पूर्व सुभाष राय की चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका जन्म जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश के एक गांव बड़ागांव (मऊ) में हुआ। प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई गांव की पाठशाला में हुई। आगरा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध साहित्य संस्थान के.एम.आई. से हिंदी भाषा और साहित्य में स्रातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वहीं से विधि की पढ़ाई पूरी की और उत्तर भारत के विख्यात संत कवि दादूदयाल के रचना संसार पर डाक्टरेट पूरी की। आपातकालीन ज्यादतियों के खिलाफ आंदोलन, जेलयात्रा भी की। चार दशकों से पत्रकारिता से जुड़े हैं। कई प्रतिष्ठित दैनिक समाचारपत्रों में शीर्ष जिम्मेदारियां संभालने के बाद इस समय लखनऊ में जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक के रूप में कार्यरत। मासिक साहित्यिक पत्रिका ‘समकालीन सरोकार’ का एक वर्ष तक संपादन। दो कविता संग्रह ‘सलीब पर सच’ और ‘मूर्तियों के जंगल में’, एक निबंध संग्रह ‘जाग मछन्दर जाग’ और संस्मरण एवं आलोचनात्मक लेखों का एक संग्रह ‘अंधेरे के पार’ प्रकाशित। नयी धारा रचना सम्मान, माटी रतन सम्मान एवं देवेन्द्र कुमार बंगाली स्मृति कविता सम्मान से सम्मानित हो चुके है।